सोमवार, 7 मई 2012

मै सोलह श्रृंगार कर ली


क्रीम पोतकर मै  सोलह श्रृंगार कर ली 
 काजल लगाकर मै  उनको प्यार कर ली 
मुझे देखकर  उनके प्राण पखेरू उड़ गए 
तब उनकी अंतरात्मा की शांति के लिए
मैने  हनुमान चालीसा की पाठ  कर दी        

शनिवार, 5 मई 2012

जय हो निर्मल बाबा की

तंत्र चले ना  मंत्र 
ना  रहे दुखों का घेरा 
भाग्य उदय  हो जायेगा 
बस नोटों का बंडल तू देता ज़ा  चेला 


शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

बन गया भगवान मै अपने भक्तों का देखकर दुःख

बन गया भगवान मै अपने  भक्तों का देखकर दुःख 
आचार  एवं विचार में असमानता की
  मेरे भक्तों को अब रहेगी छूट 
घूम- घूमकर बोलो तुम सारे जग में झूठ 
भक्त बनने मेरा तुम्हे मिलेगा 
 जग को लूटने की जीभरकर छूट  
आदर्शवादी  बनने से
 तेरे भाग्य जायेंगे तुझसे रूठ 
बनकर बहुरुपिया तू  भोले- भालों पर टूट 
गिरगिट की तरह रंग बदलो 
और बन जाओ आले दर्जे का धूर्त 
मानव  जन्म को सार्थक कर ले  रे मानव मूर्ख 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

कामनी और कंचन को हाथ नहीं लगाता हूँ

भटके हुए प्राणियों को रास्ता दिखाता हूँ 

कामनी और कंचन को हाथ नहीं  लगाता हूँ 

भक्तों को माया से दूर रखने के लिए 

उनकी गाढ़ी कमाई को मुफ्त में उड़ाता हूँ  

उज्जवल भविष्य का इंश्योरेंस लाया हूँ

उज्जवल भविष्य का  इंश्योरेंस लाया हूँ 
किस्मत चमकाने का स्योरेंस लाया हूँ
मुझपर अविश्वास करके पाप का भागी न बन 
टीवी वाला बाबा हूँ,  चुना लगाने का लाइसेंस लाया हूँ  

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चुनाव के वक्त गाए जाने वाले प्रमुख राग


चुनाव के माध्यम से जनता केवल अपनी मनपसंद सरकार का चुनाव हीं नहीं करती है, बल्कि अपना रचनात्मक विकास भी करती है। इस दौरान नेताओं का भी रचनात्मक विकास होता है।  माननीय सदस्यगण चुनाव के वक्त कुछ अलग करने को सोचते हैं, और लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी सारी उर्जा लगा देते हैं। यह समय भारतीय संगीत के विकास का भी स्वर्णीमकाल माना जाता है, क्योंकि इस दौरान भारतीय संगीत का खूब विकास होता है। यह वह काल है जिस दौरान विविध रागों का जन्म होता है। भारतीय संगीत को समृद्व करने में चुनाव का योगदान सराहनीय है। नेतागण इस समय विविध रागों का गायन करते हैं। इस प्रकार वे जनता को अपने मधुर गायन द्वारा स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं। देष में संगीत एवं कला को पर्याप्त महत्व दिया जाता है। षास्त्रीय संगीत के रूप में देष में संगीत की बहुत बड़ी विरासत रही है। अनेको रागों का जन्म इस धरती पर हुआ है, जिसमें से अधिकांष रागों का जन्म मेरे अनुसार चुनावों के दौरान हीं हुआ होगा।
उत्तर प्रदेष चुनाव के दौरान भी विविध रागों की खोज एवं गायन हुआ। इस चुनाव में सर्वाधिक चर्चित राग बटलाहाउस इनकांउटर राग रहा। इस राग की खोज का श्रेय कांग्रेस के नेताओं को जाता है।  पार्टी के प्रमुख नेताओं ने इस राग का गायन उत्तर प्रदेष चुनाव के दौरान पूरे मनोयोग से किया। पार्टी नेताओं का मानना है कि इस राग के गायन से मुस्लिम वर्ग भाव विभोर हो जाता है, और जमकर पार्टी के पक्ष में मतदान करता है। पार्टी का मानना है कि हर राग का एक निष्चित प्रभाव होता है। रागों के प्रभाव से दीपक तक जल जाता है, फिर रागों के द्वारा जनता को मतिभ्रम करना और अपने पक्ष में मतदान कराना कोई मुष्किल काम नहीं है। पार्टी का मानना है कि बटलाहाउस इनकांउटर राग का प्रभाव मुस्लिम वर्ग पर खूब पड़ेगा। पार्टी का दावा कितना सही है इसका पता तो चुनाव परिणाम बाद चलेगा। लेकिन सभी पार्टियां अपने राग को श्रेष्ठ बता रही हैं अपने राग का प्रभाव जनता पर सर्वाधिक होने का दावा कर रही हैं।
बटलाहाउस इनकांउटर राग को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिग्गिराजा एवं सलमान खुर्षीद जैसेे बड़े नेताओं को जाता है। इस राग के बारे में कहा जाता है कि यह एक गम प्रधान राग है। जो चुनाव के वक्त नेताओं का रागयुक्त कर देता है। इस राग को गानेवाला इतना भाव प्रधान हो जाता है कि वह अपने पराये का भेद भूल जाता है। दिग्गिराजा भी आजमगढ़ में इस राग को गाते वक्त इतना भाव विभोर हो गए थेे कि अपने हीं पार्टी के प्रधानमंत्री एवं एवं गृहमंत्री को  कटघरे में खड़ा कर दिए थे। वैसे अक्सर वे कोई कोई राग गाते रहते हैं और गाते -गाते भाव विभोर भी हो जाते हैं।
 इस राग के बारे में कहा जाता है कि इसको सूनने वाले के ऑखों से गंगा-जमुना की धारा बह निकलती है। सलमान खुर्षीद का दावा है कि इस राग ने पार्टी अध्यक्ष को रोने को विवष कर दिया था। हालंाकि इस राग के विरोधियों का कहना है कि इस राग का प्रभाव व्यापक नहीं होता है। इसका प्रभाव एक वर्ग विषेड्ढ पर आंषिक होता है। कुछ पर तो इस राग का साइड इफेक्ट भी देखा जा रहा है।  इस राग के विरोधियों का एक वर्ग का कहना है कि इस राग की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसे चुनाव जैसे उत्सव के वक्त हीं गाया जा सकता है। साथ हीं यह राग एक वर्ग विषेड्ढ को प्रभावित करने की हीं क्षमता रखता है, सबको नहीं। यद्यपि दूसरे दल भी इससे मिलते-जुलते राग गाते हैं। बटलाहाउस राग का गायन समाजवादी पार्टी भी जानती है। लेकिन इस राग के गायन में इस चुनाव में वह पिछड़ चुकी है। भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी पार्टियों नेे इससे मिलते-जुलते राग की खोज कर रखी हैै। और सभी अपने अपने राग का गायन जोर-षोर से चुनाव के वक्त करे रही हैं।
 भाजपा का राग कांग्रेस, बसपा एवं समाजवादी पार्टी से एकदम भिन्न है। राममंदिर निर्माण राग एवं बांग्लादेषी घुसपैठी राग पार्टी का प्रमुख राग है। इन रागों की खोज पार्टी द्वारा बहुत पहले कर ली गई थी। और हर चुनाव में पार्टी इसका हीं गायन करती है। विरोधियों का कहना है कि इस राम मंदिर निर्माण राग को सुनसुन कर जनता बोर हो चुकी है। इसलिए इस राग के गायन का प्रभाव जनता पर नहीं देखा जा रहा है। उनका यह भी कहना है कि जनता के प्रभावित नहीं होने का कारण यह है कि इस राग के गायन का फल अबतक नहीं मिला है। और दूसरी बात यह है कि बीजेपी अपने षासन काल में इसका राग का गायन भूल जाती है।
इस चुनाव में अन्ना एण्ड कंपनी भी एक राग गा रही है। वह घुम घुमकर लोकपाल नामक राग गा रही है। हालांकि इस राग का व्यापक प्रभाव लोगों में पहले देखा जा चुका है। देखना यह है कि यह राग चुनावों में वहीं प्रभाव छोड़ता है जो आंदोलनों के दौरान छोड़ा था।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

हास्य कविता

चुम्बन करने में लीन हो जाओ
प्यार के व्यापार में तल्लीन हो जाओ
सबसे लंबा चुंबन रिकॉर्ड अपने नाम करके
वेलेनटाइन डे के दिन पंच तत्व में विलिन हो जाओ

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

नेताजी का गुस्सा

नेता नयन सुख को बात -बात पर गुस्सा आ रहा था। कभी बीवी पर गुस्सा उतारते तो कभी सेक्ररेटरी को हड़काते तो कभी चाय वाले से भींड़ आते। बाद में सॉरी कहकर सारी बातों का निपटारा करते। नेताजी को आष्चर्य हो रहा था कि बात-बात पर उन्हें गुस्सा का क्यों आ रहा है। उन्होंने पत्नि से अपनी समस्या कह सुनाई। पत्नि से समझाया कि देखिए आपका गुस्सा न तो कोई राष्ट्ीय समस्या है और न नहीं अंतराष्ट्ीय समस्या है जिसपर टीवी वाले चर्चा करेंगे और आपको लोकप्रियता मिलेगी। और न हीं आपके गुस्से से आपको कोई चुनाव लाभ मिलने जा रहा है। इसलिए मेरा तो मानना है कि आपको डॉक्टर की आवष्यकता है। उन्होंने उन्हें हिदायदत देते हुए कहा कि थोड़ा समझदारी से काम लो नही ंतो अपने गुस्से के चलते मेरे हाथों तो पिटोगे हीं बाहर भी पिट जाओगे। उन्होंने कहा कि अगर तुम बाहर पिटे तो मुझे मोर्चा संभालना पड़ेगा क्योंकि ऐसा नहीं करने पर मेरी इज्जत मिटटी में मिल जाएगी। फिर उन्होंने कहना जारी रखा कि देखो मुझे इन दिनों बुझा रहा है कि इन दिनों तुम नेता बनने के गुण खोते जा रहे हो।  कारण कि तुम दबाव एकदम नहीं सहन कर पा रहे हो। जब तुमसे थोड़ा सा दबाव सहन नहीं होता तो घोटाले का दबाव कैसे सह पाओगे। तिहाड़ यात्रा का दबाव कैसे सह पाओगे।
पत्नी के उपदेष का उनपर असर दिखा और वे डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो गए। डॉं ने उन्हें गौर से देखा और कहा कि आपके चेहरे पर दबाव की स्पष्ट रेखा दिखाई देती है कहीं आप नैतिकता पालन का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं। फिर डॉक्टर ने उनकी धर्मपत्नी से कहा कि आपके पति स्वच्छन्दता में जीने के आदि रहे हैं। और लगता है कि चुनाव आयोग के कड़ाई से वे अति दबाव में आ गये हैं। लगता है कि अन्ना एवं रामदेव से भी आप कुछ प्रभावित हुए हैं।
फिर डॉक्टर ने पूछा कि क्या आपको रामदेव या अन्ना हजारे को कोसने का मौका नहीं मिला। चुनाव प्रचार के दौरान भी आपको संयम बरतना पड़ रहा होगा। षराब की पेटियां जब्त हो जाने के कारण मौज-मस्ती की भी संभावनाएं कम हो गई होगी। यहीं दमित इच्छा उनका हाजमा बिगाड़ रही है।
डॉक्टर ने उनकी पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि चिंता करने की बात नहीं है । वे ऑपरेषन भड़ास में कंजूसी न करें। ज्यादा गुस्सा आ रहा हो तो कुर्सी का फेंका- फेंकी कर लें। संसद न चल रहा हो यह क्रिया बाहर भी किसी के साथ किया जा सकता है। लोकपाल के एक प्रति हरदम हाथ में लिए रहें। और गुस्सा आए तो उसे फाड़ दिया करें। 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

विधान सभा में ब्लू फ़िल्म देखना अपराध नहीं

आप सरकार बनवाइए हम मंदिर बनवाएंगे: गडकरी - केवल इसबार विश्वास कर लीजिए, विश्वास बड़ी चीज होती है 

यूपी को बदलने आया हूँ : राहुल - यकीन मानिए राजनीति. से  मेरा दूर - दूर का वास्ता  नहीं है 

भारतीय टीम का रवैया आक्रामक ही रहेगा- चाहे हार पर हार  हीं क्यों न मिले 

नहीं दूंगा इस्तीफा :  क्योंकि विधान सभा में ब्लू फ़िल्म देखना  अपराध नहीं  है,  विधान सभा  भी और जगहों की हीं तरह है  

दरियादिली नहीं दिखाएगी राज्य सरकार - क्योंकि वह एकाएक अपना रूप नहीं बदल लेगी

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

उत्तर प्रदेश में मतदाताओं पर जादू चला रहे हैं स्टार प्रचारक

नियम तोड़ने में महिलाएं भी पीछे नहीं - आज महिलाएं पुरुषों से किसी भी  मामले में कम थोड़े हैं 

फ्रांस के राजदूत का बैग  व जापानी महिला का पर्स झपटा - मतलब चोर ने देश का नाम रौशन कर दिया. 

उत्तर प्रदेश में मतदाताओं पर जादू चला रहे हैं स्टार प्रचारक - मतलब जादू अन्धविश्वास नहीं है 

फिर वहीं दागी - धीरे बोलो नहीं तो बन जायेंगे बागी 

संघ ने की अन्ना हजारे की खिंचाई - कि उन्होंने जानबूझकर संघ से दूरियां बढाई

एक साथ आवाज बुलंद करेंगे अन्ना एवं रामदेव - हम साथ- साथ हैं, 

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

राजा का किया भुगतेगी प्रजा

मुजफ्फरपुर से पकड़ी  गयी  बच्ची  की मां -माता कभी कुमाता नहीं होती 

कुर्सी पाना ही लक्ष्य  नहीं होना चाहिए - क्योंकि कुर्सी तो दुकान से भी  पाई जा सकती है 

गरीबों की मौत पर गरमाएगी सियासत - चुनाव होने वाला है क्या 

नकली मिनरल वाटर के धंधे का भंडाफोड़ - मतलब सरकार पानी की कमी को पूरा नहीं होने देना चाहती 

राजा का किया भुगतेगी प्रजा - राजा के प्रति प्रजा का भी तो कुछ कर्त्यव्य बनता है 

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

अभिव्यक्ति पर फिर प्रहार

गंदगी से बुरा हाल , अतिक्रमण बना जंजाल - पर कर रहा है कितनों को मालोमाल 

स्कूल के सामने लगा है कूड़े का ढेर - ताकि क्षात्र सफाई के महत्व को जान सके 

अभिव्यक्ति  पर फिर  प्रहार  , तस्लीमा  जद में - यानी सरकार है मद में 

व्यस्त  समय में मेट्रो ने आधे घंटे तक रुलाया- तो धन्यवाद दीजिये मन हल्का हो गया होगा 

महिला ने जुड़वां   बेटियों को नहर में फेंका - त्याग का अनुपम उदाहरण पेश करते हुए / कुच्छ तो मजबूरियां रही होगी वर्ना अपनों को कोई यूं जुदा नहीं करता  

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

ओबामा से सीखो वोट मांगना

अपने यहां वोट मांगने के तरीके निराले हैं। यहां मागने में भी बाहुबल का प्रयोग होता है।  ऐसा नहीं कि नेता हीं केवल वोट बाहुबल से मांगते हैं बल्कि आमजनों को बाहुबल के द्वारा मांगते देखा गया है। यहां नेतागण गला फाड़ फाड़ कर वोट मांगते हैं। कींचड़ उछालने का काम खुलेआम करते हैं। जबकि अमेरिका में यह काम षालीनता एवं सभ्य ढंग से किया जाता है। यानी किंचड़ उछालो मगर प्यार से। मेरा मानना है कि भारतीय नेताओं को ओबामा से वोट मांगने की कला सीखनी चाहिए। हमारे नेता कह सकते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है हम क्यों जाएं किसी और से सीखने। क्या अमेरिका वाले हमसे बुथ कैपचरिंग करना सीखे थे। अगर अमेरिका में बुथ कैपचरिंग प्रचलित होता तो क्या चुनाव आयोग भारत में बूथ कैपचरिंग को असंभव  बना देता। मेरा मानना है कि सीखने में बुराई नहीं है। ज्ञान कहीं से भी सीखा जा सकता है। वैसे भी हमारे नेता जब घोटाला करने सीख जाते हैं। तो वोट मांगने की कला सीखने में बुराई क्या है। 
वैसे भी अपुन की सरकार अमेरिकी नीतियों पर अमल करती हीं रहती है या करने का आरोप इसपर लगता है। और बार-बार सरकार को सफाई देनी पड़ती है कि ऐसी बात नहीं माननीय सदस्यों को कनफयूजन हो गया है। हम तो चीन या पाकिस्तान को बैलेंस केवल बैलंसे कर रहे हैं जैसा कि पाकिस्तान के नेता चीन यात्रा कर भारत एवं अमेरिका को बैलेंस करते हैं। 
अब आइए हम आपको अमेरिका ले चलते हैं जहां हमारे संवाददाता बड़ी खबर के साथ मौजूद हैं । वे आपको बताएंगे कि ओबामा चुनाव जीतने के लिए वहां क्या-क्या कर रहे है। लीजिए सुनिए उन्हीं की जुबानी। ओबामा अमेरिकी लोगों को बता रहे हैं कि भ्रष्टाचार के टीके की खोज अमेरिका के लिए अति आवष्यक है। 
क्या अमेरिका नए साल में यह कारनाम कर पाएगा? क्या विष्व राजनीति में वह फिर धाक जमा पाएगा। क्या ओबामा अपने नागरिकों को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए लोगों को मना पायेंगे। क्या विजय का परचम एक बार फिर ओबामा फहरा पायेंगे। इसका उत्तर भ्रष्टाचार के टीके की खोज में निहित है। अगर भ्रष्टाचार के टीके की खोज अमेरिका के लिए संभव हुआ तो नया साल अमेरिका होगा, नया साल ओबामा का होगा। नही तो बाजी कोई और मार ले जायेगा।
 भ्रष्टाचार के टीके की खोज ओबामा को अपनी उपलब्धि गिनाने के लिए आवष्यक है । हालांकि उनकी लोकप्रियता में पहले की अपेक्षा इजाफा हुआ है लेकिन ओबामा इसे जीत के लिए पर्याप्त नहीं मानते। अमेरिकी ओसामा के मारे जाने को उपलब्धि मानने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में ओबामा चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के टीके की खोज जल्द से जल्द हो जाए। उनको डर है कि अगर भ्रष्टाचार के टीके की खोज  प्रतिद्वन्दी राष्ट् चीन ने कर दी तो उनकी लोकप्रियता  पाताल लोक को छू सकती है।
उनका यह भी मानना है कि भ्रष्टाचार का टीका अमेरिकी नागरिकों में यह एहसास जगाएगा कि विष्व राजनीति में उनका अभी वर्चस्व समाप्त नहीं हुआ है। और चीन के सम्राज्य विस्तार की बात हवा हवाई से ज्यादा कुछ नहीं है।
ओबामा ने अपनी योजना को अमलीजामा पहराने के लिए टीम भी गठित कर दी है। टीम ने 24 घंटे में 24 मीटींग करके भ्रष्टाचार के टीके के खोज को इमरजेन्सी घोड्ढित कर दिया है। साथ हीं एक स्वर से अमेरिकी नागरिकों को भारत यात्रा न करने की सलाह दी है।  क्योंकि यहां अन्ना भ्रष्टाचार के टीके की खोज में जोर-षोर से लगे हैं। ऐसे में अगर विरोधी पार्टी का कोई सदस्य भ्रष्टाचार के टीके की टेक्नोलॉजी सीख लेगा तोे क्रेडिट वह ले जाएगा ।
यह भी कहा जा रहा है कि ओबामा को डर है कि उसके नागरिक भारत यात्रा के दौरान भ्रष्टाचार के वाइरस संक्रमित हो सकते हैं। ओबामा यह भी चाहते हैं कि अमेरिकी नागरिक जहां तख्ता पलट हो चुका है या होने की संभावना है वहां सावधानी से यात्रा करें।
कहा जा रहा है कि अमेरिका को डर है कि अगर पाकिस्तानी नागरिकों की तरह अमेरिकी प्रदर्षनकारीे भी कभी अन्ना हजारे को अमेरिका आकर भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन कीे अगुवायी करने का निमंत्रण दे दिया तो वह फिर किस मुंह से अन्ना रोकेगा। पाकिस्तान तो रॉ का एजेंट बताकर अन्ना को रोक सकता है लेकिन अमेरिका क्या कहकर रोकेगा।





बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

शाहरुख़ ने फरहा के पति से की मारपीट

सीबीआई अफसर बनकर लोगों को ठगा - तो क्या प्रतिभा प्रदर्शन अपराध है?

सहवाग कप्तानी के योग्य नहीं : अकरम  - क्योंकि वे पाकिस्तान के खिलाफ कुछ ज्यादा हीं आक्रामक हो जाते हैं 

भारतीय टीम अच्छी है - बस वह इसी तरह हारती रहे

शाहरुख़ ने फरहा के पति से की मारपीट - फिल्मों के लिए रिहर्सल कर रहे होंगे

भारी मतों का निष्कर्ष मुश्किल - चुनाव लड़ रहे  दलों को छोड़कर 


कांग्रेस देगी एक लाख रोजगार - अन्ना एवं रामदेव के विरोधियों को 

रविवार, 29 जनवरी 2012

कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं।



कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं।
यानी माहौल को वेवजह खराब कर रहे है
काल्पानिक अनहोनी से हमें सावधान कर रहे हैं।
देष को वेवजह बदनाम कर रहे हैं।
भय भूख बेरोजगारी का नाम जप रहे हैं।
यानी जानबूझकर वे सावन के अंधे बनने का काम कर रहे हैं।
लोक परलोक की चिंता किए बिना सफेद झूठ बोल रहे हैं
लाखों लोग भूख से मर रहे हैं कहते फिर रहे हैं।
जबकी हकीकत है कि लाखो टन आनाज
आज भी सरकारी गोदामों में सड़ रहा है।
आदमी क्या जानवर भी उसे नहीं पूछ रहा है
किसान कर्ज के चलते नहीं
मुक्ति के लिए जन्नत की सैर कर रहा है
 क्योंकि दुखों से निवृत्ति का
सरकार की ओर से यहीं हरदम ऑफर पा रहा है।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

2011 की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज



2011 की  सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज क्या थी। इस प्रष्न पर भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न- भिन्न राय हो सकती है। अमेरिका के लिए ओसामा का मारा जाना ब्रेकिंग न्यूज हो सकता है। तो भारत के लिए अन्ना का भ्रष्टाचार के विरूद्ध बड़ा आन्दोलन खड़ा करना। पाकिस्तान के लिए जरदारी का तख्तापलट रोकने के लिए अमेरिकी गुहार। लेकिन मेरे लिए बीते साल की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज रही मनमोहन सिंह का गिलानी को षांति पुरूड्ढ की संज्ञा देना।


मनमोहन सिंह के इस धमाका के आगेे दिग्गिराजा के सारे धमाके फीके पड़ गये । मनमोहन सिह ने गिलानी के षांति पुरूड्ढ का अवॉर्ड देकर उनके सारे गिलवे सिकवे दूर कर दिए। वहीं गिलानी कृतज्ञता में यह कहने पर मजबूर हो गए कि जल्दी हीं वह इसका णिं सीमा पार से भारी गोलीबारी करवा कर चुकता कर देगें।
मनमोहन सिंह ने लोगों के इस सवाल का धमाकेदार जवाब दिया कि वे कोमल हैं पर कमजोर नहीं । आवष्यकता पड़ने पर वे भी वाजपेयी की तरह इतिहास रच सकते हैं। क्योंकि इतिहास रचने का अधिकार केवल व्यक्ति विषेड्ढ या पाटी विषेड्ढ को नहीं है। मनमोहन ने गिलानी को षांतिपुरूष कहकर विरोधियों को यह भी बता दिया कि वे वाजपेयी एवं इंदिरा गांधी से कहीं अधिक परिपक्व राजनेता हैं। क्योंकि उनकी तरह वे मदहोसी का इंजेक्षन नहीं लगाना जानत थेे।
हालांकि सूत्रों के अनुसार मनमोहन सिंह का दर्द भी उनके इस कथन में झलका। जो कम बोलता है वह जब बोलता है तो धमाका करता है।  विषेड्ढज्ञों की नजर में उनका यह कथन दबाव से निकलने की एक तरकीब हो सकती है। वे विरोधियों के दबाव से इतना दब गए थे कि उन्हें यह बताना जरूरी हो गया था कि उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में ख्वाब देखने की स्वतंत्रता है। वे केवल रबर स्टंप प्रधानमंत्री नहीं है। उन्होंने आकाषवाणी करके लोगों को यह याद दिलाया कि कभी-कभी हीं सही सोनियां गांधी स्वयं विदेषी दौरे के दौरान उन्हें विदायी दे चुकी हैं। अतः सोनियां के दबाव की बात कहना हवाहवाई से ज्यादा कुछ नहीं है। वे कार्य करने में पूरी तरह स्वतंत्र हैं।
हालांकि विरोधी पार्टियों का कहना है कि गठबंधन दल के नेता अपने कार्यव्यवहार द्वारा प्रधानमंत्री पद का अवमूल्यन कर रहे थे और उनके पार्टी के नेता भी उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि उनका गुस्सा गिलानी को षांतिपुरूड्ढ कहकर फुट पड़ा। अधिक दबाव का नतीजा था कि प्रधानमंत्री को ऑपरेषन भड़ास विदेषी धरती पर करना पड़ा। क्योंकि वहां न तो ममता थी और न  मैडम हीं।
कुछ लोग के अनुसार प्रधानमंत्री अपने दुख को कभी-कभी इन षब्दों में भी व्यक्त करते हैं। क्या मुझे इतिहास रचने का अधिकार नहीं है। मुझे लोकपाल पर क्यों नहीं आगे बढ़ने दिया जा रहा था यह बात तो समझ में आती है। लेकिन पाकिस्तान से संबंध बढ़ाने पर देष में हाय तौबा मचाना  मेरे समझ से परे है। भला मै कोई गोलीबारी थोड़ी कर रहा था जो पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ जाता। पाकिस्तानी नेताओं को गाली देने से क्या समस्या का हल निकल पाएगा। बाप रे बाप कुछ नहीं कहने पर तो वे इतनी गोलीबारी करवाते हैं। कुछ कह देने पर तो वे परमाणु बम हीं फेंक देंगे। मनमोहन सिंह का यह भी कहना है कि यह तो सामान्य समझ का व्यक्ति भी समझ सकता है। जो काम प्रेम से करवाया जा सकता है वह लड़-झगड़कर तो कतई नहीं करवाया जा सकता है। मैंने कोई नया काम थोड़े किया। वैसे भी इस देष में  षांति जाप की षाष्वत परंपरा रही है। अबतक का सुपरहिट षांति मंत्र रहा है हिन्द-चीन भाई-भाई। जो अबतक बहुत हीं फलदायी रहा है। वे चाहते हैं कि इस देष में षांति जाप की परंपरा कायम रहे। क्योंकि आदिकाल से हमारा राष्ट परंपरा प्रधान रहा है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि विदेषी धरती मनमोहन अपने को स्वतंत्र महसूस करते हैं। बाहर उन्हें मैडम से भय वाली बात नहीं होती। इसलिए वे कभी- कभीे ऐसा बोल जाते हैं जो ऐतिहासिक की श्रेणी में आता है।
कुछ लोगों का कहना है कि मनमोहन सिंह एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह कदम उठाए थे। मोस्ट फेवरेस्ट नेषन का दर्जा पाकिस्तान की ओर से नहीं मिलने के बाद वे एक सोची-समझी नीति के तहत यह वक्तव्य दिए। दरअसल प्रधानमंत्री की योजना गिलानी को मदहोसी का इंजेक्षन लगाने से था। क्योंकि वे जानते हैं कोई भी पाकिस्तान का प्रधानमंत्री पुरे होषोहवाष में भारत के साथ षांति बहाली का प्रयास नहीं कर सकता क्योंकि उसको अंजाम का भय सतायेगा। मनमोहन चाहते हैं कि गिलानी को मदहोषी का इंजेक्षन लगाकर वो काम करा लें जो अबतक उनके पूर्ववर्ती नहीं करा पाए हैं।
जैसा मुख वैसी बातें। आप भी विषेड्ढज्ञ हैं आप अपनी राय हमें लफुआ एट द रेट डॉट काम पर भेज दें आपकी बात मिर्च मसाला लगाकर प्रकाषित की जाएगी।

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

अमीर -गरीब की खाई को नेताजी देगें पाट

अमीर -गरीब की खाई को नेताजी देगें पाट

देश की जमापूंजी को  वे कर देगें बंदरबांट 

जनता के कल्याण के  लिए कर रहे हैं जातपात

मुस्लिम वर्ग के कल्याण के लिए

 सेकुलरवाद का कर रहे हैं हरदम जाप

उनकी दशा को देखकर बहा रहे हैं आंसू आठ

बटलाहाउस एनकाउंटर को वे कर रहे हैं  हरदम याद

रंग बदलने में तो  वे दे रहे हैं गिरगिट को भी मात

शनिवार, 14 जनवरी 2012

नेताजी का गुण गाता जा प्यारे


बेरोजगारी  का  भय नहीं सताएगा
नेताजी का गुण गाता जा प्यारे   
वे भवसागर पार लगायेंगे
तुम्हें  नोटों की गड्डी पर  सुलायेंगे 
तेरे दुःख दूर करने को घोटाला रचाएंगे
तिहाड़   में दिन बिताएंगे 
पैसा पानी की तरह बहायेंगे
तेरी किस्मत चमकायेंगे  
चुनाव जीतने पर क्षेत्र में झाँकने नहीं आएँगे 
पर  चमचों पर रहमत लुटाएँगे
तेरे माध्यम से वे  शासन को  चलाएंगे
उनकी  चुनावी नैया  पार लगाने को
तू दर- दर भटका जा प्यारे 
यहीं वह वक्त  है
तू बन  जा  नेताजी के आँखों का तारे  

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कुशवाहा का हो रहा गृहप्रवेश है

मौकापरस्ती नहीं
ये पार्टी  विद डिफरेंस है
नया राष्ट्र बनाने का यहीं सेंस है
समय के साथ बदलता पार्टी का वेश है
बाबु सिंह कुशवाहा के प्रति
लोगों में बेवजह रोष है 
कुछ पार्टी नेताओं  में भी  जोश है 
क्योंकि उनको परिणाम का नहीं होश है 
विपक्षी पार्टियों के नैतिकता पर
 दिए प्रवचनों से वे मदहोश  हैं 
 उनमें कुछ आक्रोश  है 
लेकिन उत्तर प्रदेश में प्राप्त करना जनादेश है
इसलिए कुशवाहा का हो रहा गृहप्रवेश है 

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

लंका की हसीन षाम




काषी में अगर अस्सी की षाम प्रसिद्ध है तो लंका की षाम भी कम रंगीन नहीं है। जी हां यहां कि एक षाम के लिए लोग अपने जीवन तक को कुर्बान करने को तैयार रहते हैं। युवाओं में तो लंका की षाम का जादू सर चढ़कर बोलता हीं है। वृद्ध भी लंका भ्रमण के मोह को त्याग नहीं पाते। लंकेटिंग के षाम के षौकिन षहर के चाहे किसी भी भाग में हों षाम को लंका दर्षन के मोह को नहीं त्याग पाते हैं। यह भी देखा गया है कि लंकेटिंग के षौकिन पति या पत्नी अपने हमसफर को छोड़कर चुपके से लंका भ्रमण को निकल पड़ते हैं।
आपके मन में प्रष्न उठ सकता है कि आखिर ऐसा क्या है लंका की षाम में जो लोग इसके दीवाने होते हैं तो इसका उत्तर यह है यह अनुभव का विषय है षब्द उसकी महिमा को वर्णन करने में असमर्थ है, षब्द वहां के सौन्दर्य का वर्णन करने में असमर्थ है। लंका की दीवानगी लोगों में ऐसी होती है कि औरतें इसे अपना सौतन समझ बैठती है। मेरा तो यहां तक कहना है कि जिसने लंकेटिंग नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है। उसका दुनिया भर की टूर का कोई अर्थ नहीं।
जिसने लंकेटिंग नहीं किया वह लंकेटिंग के सुख को क्या जाने। वो क्या जाने लंका जाना गोवा के किसी पिकनिक स्पॉट जाने से कम नहीं है। वो क्या जाने कि यहां के षाम का दृष्य किसी हसीन वादियों से कम नहीं। मेरी तो इच्छा है कि जीवन की अंतीम सांस भी लंका पर किसी परी को निरेखते हुए गुजरे।
वैसे तो मुझे विष्वविद्यालय छोड़े एक दषक से काफी समय हो गया है लेकिन मन अभी भी लंका की वादियों में कहीं विचरण करता है। बिद्यार्थी जीवन में सड़कछाप कमेंट में जो आनंद था वह वीवी के प्याार में कहां। बीवी तो जमा धन है जबकि लंका पर भ्रमण करती नवयौवना बहता हुआ स्रोत है। जिसे देखकर हीं बंदा ओतप्रोत है।
दोस्तों के साथ सड़क छाप कमेंट छोड़ना किसी अलौकिक सुख से कम नहीं है। सीधे सपाट लोग इस सुख को क्या जाने। वे तो स्वच्छंदता के सुख को क्या जाने। वो तो अपना जीवन यहीं सोचने में गुजार देते हैं कि भला लोग क्या कहेंगंे या सोंचेंगे। मेरी सलाह माने तो चुपके से गंगा स्नान कर आएं वरना पछताने सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा। जीवन का असली सुख तो लोकलाज की परवाह नहीं करने वाला को मिलता है।
पढ़ाई के दिनों में मैं और मेरी मित्रमंडली लंकेटिंग की दीवानी थी। हमलोगों का लंका जाना दिनचर्या में षुमार था। किसी कारणवष अगर हमलोग लंका नहीं जा पाते तो सबकुछ खोया-खोया सा लगता था। लगता जैसे जीवन का कोई अर्थ नहीं था। जीवन में कोई रस हीं नहीं है रावण को भी षायद अपनी लंका उतनी प्यारी नहीं होगी जितना प्यार हमलोगों को अपनी लंका से था। लंकेटिंग के रूप में हमलोगों को जीवन का उद्देष्य मिल गया था। क्लास करने तो हमलोग मजबूरी में जाते थे लेकिन लंका में तो हमलोगों की जान बसती थी।
लंका के प्रति हमलोगों की दीवानीगी में हम लोगों का कोई हाथ नहीं था बल्कि लंका की वादियों का यह कमाल था। मैंने यह अनुभव किया कि महामना के इस तपोस्थली में प्रवेष लेते हीं छात्रों में अदम्य साहस, धैर्य एवं बल का उदय हो जाता है। वे अपने को तीसमार खां समझने लगते हैं। वे दूसरे लोक में विचरने लगते हैं। यह बात मैं अपने में आई अलौकिक षक्ति के आधार पर कह रहा हूं। कुछ में  सौन्दर्यबोध बढ़ जाता है। बालाओं को देखकर काव्य की धारा फूट पड़ती है। बहरे सुने मूक पूनी बोले वाली बात आ जाती है। ब्रॉन्डेड कपड़ों का महत्व समझ में आ जाता है।
यह भी समझ में आ जाता है कि पिताजी का बैंक बैलेंस लंकेटिंग के लिए किया था। आखिर माता-पिता को अपने पुत्र का सुख हीं तो सबसेे प्यारा है। पुत्र का अगर दिखावेपन में असली सुख पाता हो तो माता-पिता को क्यों आपत्ति होनी चाहिये। षायद यहीं कारण था कि पिताजी हमसबों को मुंह मांगी रकम भेंज रहे थे और हमलोग भेंजी हुई रकम को  ब्रांडेड कपड़ों पर खर्च कर रहे थे। ताकि हम लोगों की हैसियत कुछ ज्यादा दिखे और बालिकायें हमें प्यार भरी नजरों से निरेखें। दूसरी बात यह थी कि हम लोग पिताजी के इज्जत का ख्याल कर रहे थे। और नहीं चाहते कि उनका लाड़ला किसी से कम दिखे।  पिताजी ने कभी षहर नहीं देखे तो क्या हम लोग तो देखे हैं न। वे षहरों के रहन-सहन से परिचित नहीं थे तो क्या हुआ हमलोगों को तो षहरांे का रहन-सहन मालूम है न। जीवन बहुत कुछ नया हो रहा था नए मित्र बन रहे थे। नए गर्लफ्रेंड बन रही थी।  तब भी हमलोग पिताजी द्वारा बताये गये समय के महत्व को भूले नहीं थे। हमलोग समय के इतने पाबंद थे कि 6 बजे लंका पर जाने से कोई माई का लाल हमें नहीं रोक सकता था। बारीष तूफान एवं परीक्षा जैसी बाधायें हमारी रास्ता नहीं रोक पाती। या किसी परिचित की षादी- व्याह या बीमारी जैसी बाधा।
एक हसीन षाम जब हमलोग हॉस्टल से निकलकर
 पिया मिलन चौराहे से गुजर रहे थे। तभी देखते हैं कि कुछ हमारे सहपाठी पुलिसवालों के सामने उठक- बैठक कर रहे हैं। सहसा तो यह यकीन नहीं हुआ। लगा कि हमलोग सपना देख रहे हैं। क्योंकि ये वीर बहादुर तो ऐसा कर हीं नहीं सकते हैं। ये मर जाएंगे लेकिन किसी के सामने उठक-बैठक नहीं करेंगे।  मैं उनको बहादुर मानता था। क्योंकि उनकी बातों एवं हाव-भाव से ऐसा लगता कि वे वाकई मर्द हैं। वे मर मिंटेंगे लेकिन झूकेंगे नहीं। मुझे यह भी लगता कि देष में जब तक ऐसे रणवाकुरे रहेंगे देष को चीन एवं पाकिस्तान से डरने की आवष्यकता नहीं है। देष चीन की अतिक्रमण एवं पाकिस्तान के हरकतों को नजरअदंाज कर सकता है। मन में आया षायद इसी से भारत सरकार इन देषों के नापाक हरकतों को गंभीरता से नहीं लेती। क्योंकि ये रणवाकुरे जब चाहें उनकी नापाक हरकतों का मुंहतोड़ जबाब दे सकतें है। उनमें जवानी का जोष ऐसा था कि वे दीवाल ढाहते चलते। मतलब कि जब वे चल रहे हों और दीवाल सामने आ जाएगी तो वे उससे बचकर नहीं निकलेंगे बल्कि उसे अपने बाहुबल से गिरा देंगे। किसी रिक्षेवाले को मारे जोष के लतिया देंगे। आखिर वो जवानी -जवानी नहीं जिसकी कोई कहानी न हो। इन्हें देखकर मुझे समझ में आ गया था ऐसे हीं युवकों के चलते यह कहा जाता है कि किसी भी राष्ट के तरक्की का दायित्व युवकों के कंधों पर होता है। ऐसे जवानी का क्या अर्थ जो किसी पानवाले को हड़काया न हो किसी चायवाले को गरियाया न हो।
 ऐसी दषा में उन्हें देखा तो दिल को बड़ी राहत मिली कि आखिरकार उंट आया तो पहाड़ के नीचे। कमसे कम ये लोग तो हमलोगों के सामनें षेखी नहीं बघारेंगे। हमलोग का दिल इस कहानी को उपन्यास बनाने के लिए बैचैन हो उठा। मन किया कि लंकेटिंग के टूर को बीच में हीं स्थगित कर इस कहानी को मित्रों से षेयर करें। लेकिन विधाता को तो कुछ और मंजूर था। बस एक दुर्घटना ने सबकुछ बदलकर रख दिया। प्रिय मित्रों ने उठक-बैठक करते हुए हमलोगों की ओर कातर नजरों से देखना जारी रखा। बस क्या था हमलोगों को दया आ गयी और हमलोगों कैंपस प्रवेष कर गये। फिर क्या था पुलिस वाले उन्हें छोड़कर हमलोगों को उठक- बैठक कराने लगे।  और उठक-बैठक करने वाले प्यारे मित्र मुस्कुराने लगे और हम षर्माने लगे।
इस एक दुर्घाटना ने भविष्य में मिलने वाले सारे सुख पर पानी फेर दिया। कहा भी गया है कि सावधानी हटी की दुर्घटना घटी। हमलोगों को यह भी समझ में आ गया बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताय। अगर हम लोग इस कहावत पर ध्यान दिए होते तो निंदा रस से मिलने वाले सुख से वंचित नहीं होते। आखिर जीवन का वास्तविक सुख दुसरे की निंदा में हींे तो छुपा हैै।
हमलोगों को इस कहानी को सुनाने के लिए मन में कचोट उठती लेकिन किस मंुह से यह कहानी दूसरों को सुनाते क्योंकि हमलोग स्वयं भी तो उठक-बैठक किये थे।
कहानी सुनाने का अवसर हाथ से नहीं लगने के बाद हमलोगों ने प्यारे मित्रों से उनकी कहानी सुनाना हीं बेहतर समझे कि क्यों उन्हें उठक-बैठक करनी पड़ी।
वे अपनी कहानी इस प्रकार सुनाये। उन्होंने कहा कि हमलोग हॉस्टल के कैंपस में प्रवेष कर अभी अपने प्रेमी युगलों के साथ जीने मरने की कसमें  खा हीं रहे थे कि पुलिस आ गयी। बस हमारी गर्लफ्रेंड हॉस्टल के कमरे में चली गई। और पुलिस वाले हमलोगों से उठक-बैठक कराने लगे।