गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

फेंकना हीं है तो नोटों की गड्डियां फेंको

नारदजी के चेहरे पर चिंता का भाव स्पष्ट देखा जा सकता था। कारण की स्वर्ग लोक से उनका संबध विच्छेद हो गया था। वे बार-बार विष्णुजी से पुछ रहे थे कि भगवन क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं। लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आ रहा था। इसका सीधा सा अर्थ था कि स्वर्ग लोक से उनका संबध बिच्छेद हो गया था। काफी प्रयास करने के बाद भी जब संबध स्थापित नहीं हुआ तो उन्होंने सोंचा क्यों न इस बीच कलमाड़ी जी का हालचाल ले लिया जाए। सुना है राहु -केतु उनपर गजब ढा रहे हैं।वैसे नारदजी भी कई दिनों से लगातार रिर्पोटिंग कर-कर केे थक गए थे। सोंचा थोड़ा अगर निंदा रस का पान हो जाए तो थकावट छू मंतर हो जाएगी।
फिर क्या था वे नारायण-नारायण कहते कलमाड़ी जी के अंगना पहुंच गए। देखा कलमाड़ी जी निराषा की मूद्रा में दोस्त-दोस्त ना रहा प्यार-प्यार ना रहा गा रहे हैं । निराषा का आलम यह था कि मुनीश्रेष्ठ के आगमन का भी उन्हें भान नहीं हुआ। नारदजी कुछ देर तक बैठे रहे। जब देखा कलमाड़ी जी इस समय अपनी हीं धुन में खोए हुए हैंे। और उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है तो बोले बेटा कलमाड़ी तुम कहां खोए हो। तुम इसी तरह खोए रहे तो सीबीआईवाले जांच के नाम पर टेबल कुर्सी तक तुम्हारे घर से उठा ले जाएंगे। और तुम मुंह ताकते रह जाओगे। तुम जैसे धीर-वीर पुरूष को निराषा षोभा नहीं देती मेरे बच्चे। आखिर जब तुम पाक-साफ हो तुम्हे किस बात का डर। कैसा अधैर्य ? कलमाड़ीजी ने देवर्षि से मांफी मांगी कि वे आतिथ्य नहीं कर पाए।
फिर उन्होंने नारदजी का अभिवादन किया और उचित आसन पर बैठाया। और बोले हे मुनीश्रेष्ठ मुझे भी सन्यास की दीक्षा दे दो। इस दुनिया से मेरा जी भर गया है। नारदजी ने कलमाड़ी की मनोदषा भांपकर समझाना षुरू किया। हे राजन दुख-सुख षाष्वत नहीं होता। दोनो एकहीं सिक्के के दो पहलु हैं। दुख के बाद सुख, सुख के बाद दुख यहीं सृष्टी का विधान है। ज्ञानीजन दुख आनेपर षोक नहीं करते और सुख आने पर इतराते नहीं। आप धैर्यधारण करें आज नहीं तो कल फिर तुम्हे किसी खेल का आयोजन करने का मौका मिल हीं जाएगा।
कलमाड़ी जी थोड़ा आष्वस्त हुए और कहना षुरू किया लेकिन हे मुनीश्रेष्ठ अपने लोक जब परायापन दिखाने लगे तो षोक तो होता हीं हीं है न। बताइए न देवर्षि मैने अपनापन निभाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। काॅमनवेल्थ गेम के समापन समारोह का दो तिहाई समय स्तुतिगान में हीं बिता दिया। फिर भी किसी का दिल नहीं पसीजा। लेकिन मेरा दिल फिर भी नहीं माना और अपनों के पास जाना नहीं छोड़ा। पर जहां भी गया लोग मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है गाते मिले। ऐसे में भला आप हीं बताइए मैं क्या कर सकता हूं?
और तो और पड़ोसी अन्नाजी भी ने अपनापन नहीं दिखाया । वे जंतर-मंतर पर भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोट गए। उनको भी लोटवास अभी लगनी थी।
कलमाड़ी जी ने कहना जारी रखा कि देखिए न मुनीश्रेष्ठ लोग घोटाला घोटाला का जाप कर रहे हैं क्या घोटाला केवल मेरे हीे काल में हुआ है। जो इतना हो हल्ला मचाया जा रहा है। मेरे काल में तो केवल उस षाष्वत परंपरा का पालन हुआ है। जो वर्षों से इस देष में चली आ रही है। लोग पहले भी स्विस बैंक में पैसा जमा करते थे और आज भी कर रहे हैं।
उन्होंने कहना जारी रखा हे मुनीश्रेष्ठ कुछ लोगों को वहम हो गया है कि वे भ्रष्टाचार को मिटा देंगें। जबकि हर कोई जानता है कि ं होना जाना कुछ नहीं है। फिर क्यों ढ़ोल पिंटकर लोग मुझे बदनाम कर रहे हैं।
कल एक सिरफिरे ने मेरे उपर चप्पल फेंक दी। अरे फेंकना हीं है तो नोटों की गड्डी फेंको। लेकिन ऐसे लोगों को कौन समझाए। अभी नया खून है न ईमानदारी का भूत चढ़ा है रोटी-दाल का भाव मालूम होते हीं फुर्र हो जाएगा।
फिर नारदजी ने कहा कि हे कलमाड़ी अब मैं चलता हूं मुझे देर हो रही । मुझे यहां की घटनाओं का लाइ्र्रव टेलीकास्ट विष्णुजी को करनी है। जबसे मृत्युलोक में चहुंओर भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार षोर मचा है भगवान् भी थोड़ा विचलित हो गए हैं और पल-पल की खबर ले रहे हैं। आखिर धर्म की हानी होने पर हीं अवतार लेने की बात तो उन्हो अपने भक्तों से कही थी।

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

नेताजी का बायोडाटा

अन्ना की नीयत में है खोट- सरकार का कहना है कि वह भ्रष्टाचार को लेकर एकदम सख्त है। इसका ताजा प्रमाण है कि वह लोकपालस्तोत्र का संसद के हर सत्र में पाठ करती है। और विष्वास करती है कि वह लोकपाल बिल इस जनम में नही तो अगले जनम में पास करवा हीं देगी। लेकिन अन्ना हजारे के अधैर्य ने सब गुर गोबड़ कर दिया। वैसे तो ये महानुभाव अपने को संत कहते हैं लेकिन धैर्य के मामले में गृहस्थ से भी गए गुजरे हैं। कारण कि जब सरकार बिल पास होने का चालिस-पचास साल इंतजार कर सकती है तो क्या वे संत हो कर एक-दो जनम नहीं कर सकते।

नेताजी का बायोडाटा- न जाने नेताओं को कौन-कौन सा दिन देखना पड़ेगा। अभी भ्रष्टाचार का षोर थमा हीं नहीं कि सुनने में आ रहा है कि उत्तरप्रदेष चुनाव में नेताओं को टिकट पाने के लिए पार्टी हाईकमान के पास बायोडाटा लेकर जाना पड़ रहा है। जीहूुजुरी का एफिडेविट प्रस्तुत करना पड़ रहा है। इतनी मेहनत तो नेताजी विद्यार्थी जीवन में भी नहीं किए थे। लेकिन नेजाजी सब दिन होत न एक समाना गाकर संतोष कर ले रहे हैं। और दंगा-फसाद कराने की अपनी क्षमता को पार्टी हाईकमान को समझा रहे हैं।

ज्यादा विनम्र होते हैं पुरूष- अबतक पुरूषों को अक्खड़ कहकर नाहक बदनाम किया जाता रहा है लेकिन ये पूरा इंडिया जानता है कि पुरूषों की बीवी के सामने बोलती बंद हो जाती है। षुक्र्र है क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्च की जो पुरूषों की लाज रख दी। जो कहती है कि नम्रता पुरूषों का स्वभाविक गुण है। कारण कि वे अब लोगों को और खुद को समझा सकते हैं कि उनकी विनम्रता बीवी के डर के कारण नहीं है बल्कि बिनम्रता पुरूषों का स्वभाव है इसलिए है।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

अन्ना की नीयत में है खोट

अन्ना की नीयत में है खोट

कह रही सरकार
अन्ना की नीयत में है खोट
वरना वे देते नोट
बढ़ा रहे हैं बेवजह लड़ाई
काटने नहीं दे रहे
नेताओं को मलाई
बाबूओं पर भी है
षामत आई
पत्नियां कर रहीं हैं
रोज पिटाई
बताइए पतिदेव
कैसे होगी मोटर पर चढाई
बहता हुआ स्रोत हीं
जब चला जाएगा
नौकरी करने का
भला मजा क्या रह पाएगा
बिना नुमाईष की
पड़ोसन भी नहीं जलने वाली
बता देती हूं हां
बिना मोटरकार के मैं
घर से नहीं निकलने वाली
जाना पड़े तो जाओ जेल
या करो कुछ घालमेल
पर बजट न बिगड़े भाई
वरना है तुम पर मुसिबत आनेवाली
रात को मैं खाना नहीं बनानेवाली
बेचारे षर्माजी की बीवी के हाथों
हो चुकी है पिटाई
मुझे भी अपनानी पड़े न वहीं दवाई।

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

अन्ना के खिलाफ राजनेताओं का हल्ला बोल

ब्रेकिंग न्यूज और बड़बोलन गुरू का कमेंट
अन्ना के खिलाफ राजनेताओं का हल्ला बोल-क्योंकि अन्ना ने उनके जीवन में दिया है जहर घोल।
बाबा रामदेव चले अन्ना की राह- तू जहां-जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा।
विजयी लय बनाए रखने के लिए जमकर मेहनत करो संगकारा- जैसा कि भारत के खिलाफ फाईनल में किया था।
शराब के नशे में धुत पुलिस वालों ने की थी धोनी की टीम की सुरक्षा- मतलब कि जहां वारदात होते हैं वहां पुलिस वाले नशे में नहीं होते।
लोकतंत्र में कोई शार्टकट नहीं होता -बशर्ते की आप किसी राजनीतिक घराने से ताल्लुक न रखते हों।
खटास पर झटपट तलाक नहीं- बल्कि और खटपट करने की आवश्यकता है।
मन का लुभाते भी हैं चंबल के बीहड़- खासकर डांकुओं को।
लव गुरू मटुकनाथ का पटना में साष्टांग मार्च-मुझको तेरे प्यार ने क्या-क्या बना दिया।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

अन्ना तुम्हें तरस न आए

अन्ना तुम्हें तरस न आए
नेताओं के परिवारों पर
कैसे संत हो नजर रख रहे हो
कोठा-अटारी वालों पर
जीव मात्र के लिए
क्या तुम्हारी दया यहीं है ?
भ्रष्टाचारियों को दुख पहुंचाना
क्या हिंसा नहीं है ?
क्यों नेताओं एवं बाबुओं की तरक्की
तुम्हे सुहाती नहीं है।
क्यों उनके संघर्ष की कहानी
तुम्हें याद आती नहीं है।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

मैं स्वास्थ्य दिवस क्यों मनाऊं।



मैं स्वास्थ्य दिवस नहीं मनाऊंगा क्योंकि मै जानता हूं कि इस दिन मेरे कुछ और अधिकार छिन जाएंगे। मुझपर कुछ और ताने कसे जाएंगे। सरकार मनाती है तो मनाए। घर वाले मनाते हैं तो मनाएं। मैं सरकार का क्यों साथ दूं। आखिर सरकार ने मेरे लिए किया हीं क्या है? सरकार के करतूत के चलते मेरे मुंह पर ताले पड़ गए हैं। मेरी बीवी अब परायी हो गयी है। मेरे बच्चे मेरे बच्चे नहीं रहें। ऐसा नहीं कि वे मुझे छोड़कर कहीं चले गए हैं। और मेरे लड़के किसी दूसरे के लड़के हो गए हैं । लेकिन अपने जब अपनापन न दिखाए तो उसे गैर कहना हीं ठीक होगा। वे इसी घर में मुझपर हुक्म चला रहे हैं। और में कही एफआईआर भी दर्ज नहीं करा सकता। आप कहेंगे कि मैं यह क्या बकवास कर रहा हूं। आपके यह भी मन में होगा कि कहीं मैने पी तो नहीं रखी है। नहीं यार मैं शराब क्या चाय नहीं पी सकता। मुझे मधुमेह होने के बाद बीवी ने मेरी तख्ता पलट दिया है। मेरी सत्ता जाती रही। मेरी इच्छाओं का गला घोंट दिया गया। मेरे अरमानों कुचल दिया गया। लोकतंत्र में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंतत्रा तो सबको है लेकिन अपनी पसंद का खाना खाने की सबको क्यों नहीं आजादी है ? आखिर अन्न जल पर तो सबका समान अधिकार कहा गया है। आखिर बीवी को यह क्यों विशेषाधिकार मिले कि वह शौहर के खाने-पीने पर नजर रखे। लोग नारी कि दयनीय स्थिति के बारे में चर्चा करते नहीं थकते हैं। कोई यहां आकर तो देखे कि नारी की स्थिति खराब है कि पुरूष की।
मैं सरकार से सख्त नाराज हूं। आखिर सरकार डाॅक्टरों के खिलाफ क्यों कारवाई नहीं करती जो मधुमेह रोगियों खाने के अधिकार को छिनने पर तुले हुए हैं। वह मनगढंत रिसर्चों के द्वारा नित नई पाबंदियों की सिफारिस कर रहे हैं। और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
और कुछ भले हीं अनिश्चित है लेकिन यह निश्चित है कि इस स्वास्थ्य दिवस के बाद मधुमेह रोगियों के अधिकारों में और अधिक कटौती हो जाएगी। आप माने या न माने अन्ना हजारे के बाद जंतर-मंतर पर अगला विशाल प्रदर्शन मधुमेह रोगी हीं करने जा रहे हैं। मधुमेह रोगी को सबकुछ खाने की मांग को लेकर जंतर-मंतर धरना देंगे जिसमे लाखो मधुमेह रोगी भाग लेंगे। मेरी बात को आज सरकार भले हीं अवहेलना कर दे लेकिन भविष्य में नहीं कर पाएगी। क्यों आने वाले दिनों में मेरी यानी मधुमेह रोगियों की संख्या इतनी बढ़नेवाली है कि हम जिसे चाहे गद्दी पर बैठा सकते हैं जिसे चाहे उतार सकते हैं। आने वाले कुछ हीं समय में मधुमह रोगी आपको घर-घर में मिल जाएंगे। अगर राजनेताओं ने उनकी मांग नहीं मानी तो वे मत बहिष्कार करेंगे।
आप कहेंगे कि सरकार पर क्यों बेवजह आरोप लगा रहा हूं आखिर सरकार ने क्या किया है? तो सुन लीजिए कि उसने मधुमेह उन्मूलन के नाम पर लोगों को गुमराह करना शुरू कर दिया है उसने गली मुहल्ले में मधुमेह के बारे में लोगो को अवगत कराने के लिए खम्भे गाड़ दिए है। मधुमेह रोगी क्या खाएं क्या नहीं खाएं बताया जा रहा है। सरकार के इसी बाचालता के चलते आज बच्चे-बच्चे जानते हैं कि मधुमेह रोगियों को क्या नहीं खाना चाहिए। मैं क्या खाऊंगा इसको सरकार निर्धारित करने वाली कौन होती है।
मधुमेह के दुष्प्रचार ने पूरे परिवार के अनुशासन को भंग कर दिया है। आज मेरा परिवार मेरा कहा नहीं मानता है। जब मैं कहता है कि बेटा जाकर थोड़ा रशगुल्ला लाओ तो कहती है कि आपको रसगुल्ले मना है पापा। बताइए मैं बड़ा हूं कि वह। क्या वह मुझसे ज्यादा जानती है?
हमारे यहां विष को विष का औशध बताया गया है। मतलब कि अगर मुझे शुगर हो गया है तो वह शुगर खाने से हीं जाएगा। लोगों को आता जाता तो कुछ है पर लगते हैं ज्ञान बघारने। मै उनको कैसे समझाऊं कि मै बड़ा विद्वान हूं।
ठीक हीें हुआ सुगर ने सबकी परीक्षा ले ली। अब मुझे ज्ञान की प्राप्ती हो चुकी है।
बताइए डाॅक्टर ने मुझे तीन मील की दौड़ लगाने की सलाह दी है। भला बीमार आदमी को दौड़ लगाना चाहिए कि आराम करना चाहिए।
मैं कहता हूं कि मैं बिल्कुल स्वस्थ्य हूं मुझे कोई रोग नहीं हुआ है। कारण कि आधुनिक विज्ञान के चिकित्सा शोधों से यह साबित हो चुका है कि अधिकांश रोग मनोदैहिक होते हैं। अर्थात उस रोग के बीज मन में मौजूद होते हैं। जब इस बात का पता नहीं था तो लोगों ने खुब मधुमेह रोगियों पर अत्याचार किया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। क्योंकि मैं अपने को बिल्कुल स्वस्थ्य मान चुका हूं। जब मन खुद को रोगी नहीं मानता तो शरीर कि क्या मजाल की वह रोगी रह जाए।
यह सच है कि दुख की घड़ी में अपने भी साथ छोड़ देते हैं। इस यर्थाथ का पता मुझे तब चला जब बीवी ने मेरे हाथ से लड्डु छिन लिए। उसका जनम-जनम का साथ निभाने का वादा झूठा था। उसके कसमे-वादे सब फरेब थे। तुलसी बाबा ठीक हीं कह गए हैं धीरज, धर्म और मित्र और नारी आपत काल परिखहू चारू।

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

नीतीश हीं विकास पुरूष क्यों?

वैसे तो विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों में खुद को विकास पुरूष के रूप में साबित करने की होड़ मची हुई है, इस दौड़ में कभी चंद्रबाबू नायडू रहे तो कभी अशोक गहलोत एवं दिगविजय सिंह। कई मुख्यमंत्रियों को विकास पुरूष का तमगा हजम नहीं हुआ जैसे कि चंद्र बाबू नायडू, दिग्विजय सिंह एवं अशोक गहलोत आदि। फिलहाल विहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और गुजरात के मुख्यमंत्री के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस बीच मेरे द्वारा किए गए एक स्टिंग आॅपरेशन में यह बात खुलकर सामने आयी है कि पिछले वर्ष पटना में बीजेपी कार्यकारणी मीटिंग के दौरान नीतिश ने बीजेपी नेताओं को अंग्या देकर जो बीजे गायब किया था वह मोदी के साथ फोटो वाला विज्ञापन न होकर इसी प्रतिस्पाद्र्धा का नतीजा था।
वैसे मैं विहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की प्रतिभा का कायल हूं। कारण की राज्य की जनता उनके चलते खूब फिल गुड कर रही है। ऐसा फिल गुड तो अटल जी के भी जमाने में भी देखने को नहीं मिला था। हालांकि उनदिनों फिलगुड का ढ़ोल खूब बजा था। नीतीश जनता को तो पांच साल से फिलगुड करा हीं रहे थे अपने दूसरे कार्यकाल में विधायकों को भी फिल गुड करा दिया। दरअसल देखा जाए तो मंत्री तो संत्रियों के सलाम और उपहार से फिलगुड कर लेते हैं लेकिन बेचारे विधायकों को हीं कोई नहीं पूछता, यहां तक की बीबी के फीलगुड से भी उन्हें वंचित रहना पड़ता है। कारण यह है कि प्याज, टमाटर एवं पेट्रोल की मंहगाई ने न केवल आम लोगों का बिगाड़ा है विधायक जी जैसे कुछ खास लोगों को भी इस कारण बीवी के कोप का भाजन होना पड़ा है। नीतीश ने विधायकों दर्द को समझा और विचार किया कि विधायकों के समर्थक वैसे हीं साथ छोड़ते जा रहे हैं। अगर बीवी ने भी साथ छोड़ दिया तो वे क्या करेंगे। समर्थकों का साथ छोड़ने का कारण यह था कि नेताजी ने मंहगाई के चलते समर्थकों को चाय-पान कराने और मोटर पर घुमाने की क्षमता खो दी थी। राज्य विकास करे और नेता गरीब रहें यह विरोधाभास क्या राज्य की छवि को धूमिल नहीं करेगी? नीतीश ने इसको समझा और इस कमी को वेतन में तीनगुना वृद्धि कर दूर किया। यानी नेताजी वेतन भत्ते सहित करीब एक लाख पाएंगे और बदले में मुख्यमंत्री के गुण गाएंगे।
वैसे वेतन वृद्वि की खुशी विधायकों से ज्यादा उनके समर्थकों में अधिक देखी जा रही है। उनके समर्थक यह सोंचकर खुश हैं कि पहले नेताजी यह कहकर टरका देते थे कि जब इतने पैसे में वे बीवी की डिमांड नहीं पूरी कर सकते तो तुम लोग की कैसे कर सकते हैं। अब नहीं कर पाएंगे।
मैं वर्षों पहले कांग्रेस के एक नेता का एक आर्टिकल पढ़ा था जिसमें उन्होंने विधायकों एवं सांसदों के वेतन वृद्धि की घनघोर वकालत की थी। उन्होंने विदेशी सांसदों की उच्च वेतन का हवाला देते हुए कहा था कि कैसे इससे वहां के सांसदों में इससे भ्रष्टाचार कम हुआ है। वैसे सांसदों की वृद्धि की वकालत नहीं भी करते तो भी वेतन वृद्धि तय थी। क्योंकि हमारे नेताओं में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर भले हीं अनेकता दीखती हो लेकिन वेतन वृद्धि के मुद्दे पर गजब की एकता देखने को मिलती है। यह बात भविष्य में हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ साबित होने जा रही है।
उक्त नेता के तर्क का निष्कर्ष यह है वेतन वृद्धि से हमारे नेता अधिक ईमानदार हो जाएंगे। इसका निष्कर्ष यह भी है कि पैसे वाले अधिक ईमानदार होते हैं। जैसा कि तेलगी, हर्षद मेहता आदि।
वैसे आपको मैं एक बात बता देता हूं क्योंकि आप अपने आदमी है। मुझे कुछ लोग सावन का अंधा कहते हैं क्योंकि नीतीश के काल में भी मुझे राज्य में कोई विकास नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि मेरे क्षेत्र की सड़कें चकाचक है। रात को मैं निश्चिंत घूम सकता हूं और मेरी बेटी साईकिल से स्कूल जाकर बहुत खुश है, पहली बार राज्य के लोगों में यह विश्वास जगा है कि विहार तरक्की कर सकता है। ऐसे में पाठक हीं बताएं क्या इसी को विकास कहते हैं ?