कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं।
यानी माहौल को वेवजह खराब कर रहे है
काल्पानिक अनहोनी से हमें सावधान कर रहे हैं।
देष को वेवजह बदनाम कर रहे हैं।
भय भूख बेरोजगारी का नाम जप रहे हैं।
यानी जानबूझकर वे सावन के अंधे बनने का काम कर रहे हैं।
लोक परलोक की चिंता किए बिना सफेद झूठ बोल रहे हैं
लाखों लोग भूख से मर रहे हैं कहते फिर रहे हैं।
जबकी हकीकत है कि लाखो टन आनाज
आज भी सरकारी गोदामों में सड़ रहा है।
आदमी क्या जानवर भी उसे नहीं पूछ रहा है
किसान कर्ज के चलते नहीं
मुक्ति के लिए जन्नत की सैर कर रहा है
क्योंकि दुखों से निवृत्ति का
सरकार की ओर से यहीं हरदम ऑफर पा रहा है।
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
जवाब देंहटाएंबसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकिसान कर्ज के चलते नहीं
जवाब देंहटाएंमुक्ति के लिए जन्नत की सैर कर रहा है
करार व्यंग है भाई..बधाई...
नीरज