मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मोदी का राजतिलक के लिए अनुष्ठान।

विगत दिनों मोदी के एक बाद एक उपवास ने मुझे इस निष्कड्र्ढ पर पहंुचने को मजबूर कर दिया कि ,अगर अन्ना के आंदोलन ने सबसे ज्यादा किसी को प्रभावित किया है तो वह हैं नरेन्द्र मोदी। भले हीं लाखो लोग अन्ना के समर्थन में सड़कों पर उतर आयें हों। या मैं हूं अन्ना तू है अन्ना का लोग गीत गायें हों, लेकिन नरेन्द्र मोदी के आगे सब फीके हैं। भले अन्ना अरबिंद केजरीवाल या किरन बेदी को अपना नजदीक बताएं या कोई अन्य उनके आगे-पीछे मड़राए। लेकिन नरेन्द्र मोदी उनके सबसे अधिक करीबी हैंैं, क्योंकि वे उनके आंदोलन को अबतक जीवित रखे हुए हैं। वे उनके अनषन से इतना अधिक प्रभावित हुए हैं कि उनका महीने का आधा दिन उपवास में बीत रहा है। वैसे मैं भी अन्ना के उपवास से कम प्रभावित नहीं हुआ था, लेकिन निगमानंदजी का हाल देखने के बाद मैंने अनषन न करने में हीं अपनी भलाई समझी। मुझे लगा कि उनकी तो लोग खबर भी पा गए, मेरे स्वर्ग सिधारने को लोग जान भी पाएंगे की नहीं। एक दूसरी बात भी मैं आपको बता दूं, कि मोदीजी के अनषन सेेे सबसे ज्यादा अगर कोई प्रभावित है तो वह हैं बघेलाजी। कांग्रेस को भले हीं बघेलाजी पर षक नहीं हो रहा हो, लेकिन मुझे तो हो रहा है जी क्योंकि बघेला जी मोदीजी के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। कभी भी बघेलाजी एवं मोदीजी मिल सकते हैं। इतिहास कभी भी इस सदी की सबसे बड़ी दुर्घटना का साक्षी बन सकता है। और इस दुर्घटना के बाद मोदीजी बघेलाजी के षिष्य बनेंगे कि बघेलाजी मोदीजी के, मैं कुछ कह नहीं सकता । मोदी के विरोधियों का कहना है कि उनका अनषन राजतिलक के लिए हो रहा है। मुझे यह नहीं पता कि वे अनुष्ठान कर रहे हैं या आत्मषुद्धि या फिर आडवाणी जी कोे किनारे लगाने के  लिए कुछ और। कुछ लोगों का कहना है कि उनमें अषोक की तरह  वैराग्य का भाव आ चुका है।
अगर वो राजतिलक के लिए अनुष्ठान करा रहे हैं तो आडवाणी जी चिंतित हों , गडकरी जी चिंतित हों, सुड्ढमा जी चिंतत हों, जेटलीजी चिन्तित हों। कांग्रेस में राहुलजी चिंतित हों, सोेनिया जी चिन्तित हों,  मनमोहन सिंह चिंतित होकर क्या करेंगे।
मेरा काम सूचना देना है, आप माने या ना माने चेते या ना चेते । ये आपकी मर्जी। यह कांग्रेस या भाजपा का सरदर्द है। मेरा नहीं। कुछ दिन पूर्व मोदीजी के साथ श्री-श्री मुलाकात के बाद भी मुझे कुुछ-कुछ होने लगा था। आडवाणी जो को हुआ था कि नहीं।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

समझावन गुरू

ईष्वर प्रत्येक व्यक्ति को षक्ति सम्पन्न बनाता है। किसी के साथ अन्याय नहीं करता। यह अलग बात है कि कोई उसकी दी हुई क्षमताओं का उपयोग कर पाता है और कोई नहीं। यह अपनी क्षमताओं का उपयोग हीं करना है कि कोई किसी को करोड़ो का चूना लगा देता है और कोई मूंह ताकता रह जाता है। यह क्षमता की हीं बात है कि कोई हीरा की चोरी कर मौज करता है और कोई खीरे के चोरी के आरोप में जेल की हवा खाता है। किसी को जेल में भी पकवान मिलता है तो कोई घर पर भी भूखों मरता है। अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार कोई इंजीनियर बन जाता है तो कोई डाॅक्टर बन जाता है।  उसमें से विषेड्ढ प्रतिभावान इंजीनियर  दुष्मन देष को टेक्नोलाॅजी बेंचने लगते हैं और विषेड्ढ प्रतिभा सम्पन्न डाॅक्टर किड़नी बेंच कर लोगों का दूख दूर करने लगते हैं। इसी प्रकार अतिविषेड्ढ तेलगी और हड्र्ढद मेहता बन जाते हैं। अमर सिंह जी और कलमाड़ीजी आदि भी विषेष क्षेत्र के विषेड्ढ प्रतिभावान हैं। मुझे भी एक विषेड्ढ प्रतिभासम्पन्न के सानिध्य में रहने का सौभाग्य मिल चुका है, जिसके बारे में मेरा दावा है कि  आज नहीं कल वे अपने व समझाने की क्षमता के चलते पूरे विष्व में जाने जाएंगे। आइए उनके बारे में थोड़ा बात करते हैं। यह षख्स अपनी समझाने की क्षमता के चलते अपनी बीवी से लेकर आॅफिस के कर्मचारी के दिलों पर राज करता है। अपनी बीबी से वह 20 साल बड़े थे। लेकिन उन्होंने उसे ऐसा समझाया कि घर से बगावत कर बैठी। वह केवल उनके नाम की माला जपने लगी। माता-पिता के समझाने का कोई असर नहीं हुआ। फिर क्या था परिवारवालों ने चट मगनी पट षादी कर दी तब जाकर बगावत थमी।
 मेरा तो पक्का विष्वास है कि अगर उनके समझाने की क्षमता का उपयोग किया जाए तो पाकिस्तान आतंकवादियों को भेंजना भूल जाये। और चीन अरूणाचल में घुसना भूल जाए। अगर अन्ना समझावन गुरू के प्रतिभा को उपयोग करते तो उन्हें 13 दिनों तक अनषन नहीं करना पड़ता और नहीं रामदेवजी को डंडे खाने पड़ते। अभी भी समय नहीं गुजरा अन्ना एण्ड कम्पनी यह समझे कि  कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने से नहीं, समझावनगुरू की सेवा लेने से लोकपाल बिल पास होगा। अगर अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव को समझाने के लिए समझावन गुरू को भेंजा गया होता तो  सरकार को इतनी फजीहत नहीं हुई होती। सरकार की गलती यह रही गई कि उसने कपिल सिब्बल जैसे नेताओं की प्रतिभा पर भरोसा किया। जो केवल अब तक स्वामी अग्निवेष को समझा पाये हैं।  रामदेवजी को नहीं समझाने के कारण सरकार को  रामलीला मैदान जैसा अलोकप्रिय कदम उठाना पड़ा।

आइए हम समझावन गुरू के साथ अपने स्वयं के अनुभव कोे साझा करते हैं। बात उन दिनों की है जब मैं उनके यहां नौकरी करता था। मैडम तो अक्सर टूर पर रहती थीं। समझावन गुरू के हवाले हीं आॅफिस से लेकर फील्ड की देख- रेख था। सुबह हमलोगों को फील्ड में एक-दो घंटे कार्य के बाद कोई कार्म काम नहीं बचता था। लेकिन समझावन गुरू हमें मुफ्त की रोटी तोड़ना नहीं देना चाहते थे। इसलिए सुबह से लेकर षाम तक समझाते थे।
वह हमलोगों घर में समझाते । बाग में समझाते । आॅफिस में समझाते। कोर्ट पहनकर समझाते। टाई लगाकर समझाते, लुंगी बहनकर समझाते। माइक हाथ में लेकर समझाते। सोते हुए समझाते। बैठते हुए समझाते। कविता कहकर समझाते। गाना गाकर समझाते। चाय पिलाकर समझाते,  खाना खिलाकर समझाते थे।  हम लोगों का आठ घंटा का कार्य समझना था और उनका काम समझाना था। हमलोग समझने के बदले पगार पाते थे। और वो मैडम का प्यार या दुत्कार। लोगों का कहना था कि हमदोनों अर्द्ध बेरोजगार थे। आपका क्या कहना है ?
वैसे समझावन गुरू के प्रतिभा को पहचाना जाने लगा है। और पहला आॅफर स्वर्ग लोक से आया है। खबरों के अनुसार स्वर्ग से भारत रत्न नहीं  पाने वाली कुछ अतृप्त आत्माओं ने उनसे संपर्क किया है और कहा है कि जीते जी न सही मरणोपरांत  भारत रत्न देने के लिए सरकार को तो समझा हीं दो। वैसे  ओबामा की ओर से भी उन्हें आॅफर आया है कि दोबारा राष्टपति बनाने के अमेरिकी जनता को वे समझायें। मेरा राजनेताओं से भी कहना है कि समझावन गुरू की सेवा लीजिए जूते की जगह फूल बरसने लगेंगे।


गुरुवार, 24 नवंबर 2011

इन्द्र का विलाप


इन्द्र का भगवान विष्णु के घर आगमन। त्राही माम् त्राही माम् कहकर उनके चरणों में लोट जाना। भगवान का आष्चर्य चकित होना और सोचना आखिर इन्द्र को यह क्या हो गया है। बचाओ -बचाओ का स्वर फिर इन्द्र के मुंह से फूट पड़ना। क्या हुआ इंद्र किससे तुम्हें बचाऊं। यहां तो नारद के सिवाय कोई नहीं है।  वो भी अपने स्वभाव के विपरीत चुपचाप बैठे हैं। फिर कुछ सोचकर इन्द्र राक्षस फिर से आक्रमण कर दिए हैं क्या? । नहीं भगवान मृत्युलोक के लोग घनघोर तपस्या कर रहें । उनके तपस्या से जब मेरा इंद्रासन डोलने लगा तो मै आपके पास दौड़ा चला आया। आखिर आपहीं तो मेरा आश्रयदाता हैं। माई-बाप हैं। मेरी हर मुष्किल घड़ी में आखिर आपहीं ने तो साथ दिया है। सच है जगत के और संबंध मिथ्या है। प्रभु से प्रीत लगाने में हीं जीव की सार्थकता है। फिर इन्द्र ने षंका जाहिर किया लगता है भगवन वे इन्द्रासन पर कब्जा करने के लिए तपस्या कर रहे हैं। व्रत एवं उपवास कर रहे हैं। खासकर नरेन्द्र मोदी जी एवं बघेला जी से मैं खाषा चिन्तित हूं। वे दोनो प्रतिस्पर्धा पर व्रत एवं उपवास कर रहे। यहीं नहीं उत्तर प्रदेष में भी नेता थोक के भाव में अनुष्ठान करा रहे हैं। स्थिति यहां तक पहंुच चुकी है कि पंडितों की एडवांस बुकिंग हो गयी है। सामान्य भक्तों को पूजा-पाठ कराना मुष्किल हो रहा है। राजनेताओं के घर अनुष्ठान को देखकर, मुझे प्रतीत हुआ कि यह राजसत्ता के लिए हीं हो रहा होगा। वो आपको पाने के लिए थोड़े अनुष्ठान कर रहे हैं।  हे नटवर मेरा डर काल्पिक कैसे हो सकता है। अगर नेता चुनाव के वक्त अनुष्ठान करा रहा है तो वह राजसत्ता के लिए करा रहा होगा न। वैसे भी नेताओं की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं से आज परचित कौन नहीं है। नेताओं के बढ़ती महत्वाकांक्षा से मैं विषेड्ढ चिंतित हूं नटवर। वे जेल यात्रा को इतना सहज ले रहे हैं,  मानो जेल नहीं किसी पर्यटन स्थल पर जा रहे हों।  । इससे मेरी चिंता और बढ़ गयी है मुरली मनोहर। मैं यह सोचकर भयभीत हूं कि अगर कभी वे आपसे इन्दासन मांग लिए । और आपने प्रसन्न होकर उन्हें दे दिया तो मेरा क्या होगा कृष्ण कन्हैया। क्या ऐषो -आराम के बिना मैं एक दिन भी रह सकूंगा। यहीं सोंचकर हमें नीद नहीं आ रही है दुनिया के दाता। यहीं नहीं नटवर उनकी बीबीयां भी आपको मनाने के लिए अनुष्ठान कर रही हैं। ऐसे में मेरा डरना स्वभाविक है कि नहीं। आखिर नारी षक्ति के आगे हर कोई नतमस्तक हुआ है। आपभी हो सकते हैं। दूसरी बात सामुहिक पूजन का फल भी अधिक कहा गया है। मुझे डर है भगवन कहीं आप जनमत से प्रभावित न हो जाएं। ठीक वैसे जैसे धरती पर नेता बहुमत को ध्यान में रखकर हर फैसले लेते हैं। वैसे भी आप सरल हृदय हैं आपको लोग  बहला फुसला जल्दी लेते हैं। इसलिए उत्तर प्रदेष चुनाव तक कृपया आप मुझे अपने साथ रखें।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

नीतीश भयग्रस्त हैं

खबर है कि सुषासन बाबू भयग्रस्त हैं। और इस कारण वे अति व्यस्त हैं।  धड़ाधड़ विकास कार्यो में तल्लीन हैं। उनके व्यस्तता से लगता है चुनाव उत्तर प्रदेष में न होकर बिहार में हो रहा है। इतना तो बहन मायावती भी नहीं व्यस्त हैं, जिनके राज्य में चुनाव होने जा रहा है। उनके विरोधियों का कहना है कि अगर वह भयग्रस्त नहीं होते तो पटना में बैठकर सत्तासुख भोगते, राज्य में घूम-घूमकर उपद्रव नहीं करते। हालांकि बहन मायावती भी व्यस्त हैं । लेकिन वे दूसरी तरह से व्यस्त हैं। वे पार्कों एवं मुर्तियों के उद्घाटन एवं निर्माण में व्यस्त हैं। मंत्रियों का क्लास लेने में व्यस्त हैं। नीतीष कुमार को लग रहा है कि वे अभी से व्यस्त नहीं रहेंगे तो लालू अतिव्यस्त होकर कहीं जनता का कान न भर  देेें। फिर तख्तापलट में देर नहीं लगेगी, कारण कि जनता विकास कार्य को भूल जाती है। जाति को याद रखती है। लेकिन नीतीष के व्यस्त होने से राज्य के अधिकार एवं बाबू त्रस्त हैं। कारण कि वे अपनी वीवीयों के यहां टाइम से हाजिरी नहीं दे पा रहे हैं। आधिकारियों को वीवीयों और नीतीष दोनों की डाॅट सहनी पड़ रही है।  नीतीषजी अधिकारियों को उपदेष पिलाने में व्यस्त हैं तो अधिकारी बाबूओं को हड़काने में व्यस्त हैं। नीतीष व्यस्तता में थोक के भाव में आदेष दे रहें ,जिसको वे देर राततक पूरा नहीं कर पा रहे हैं। वे षेड्ढ कार्यों को सपनों में निपटा रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि जिस राज्य में व्यक्ति को सपनों में भी स्वतंत्रता प्राप्त न हो, उसे तानाषाही कहना ठीक होगा, सुषासन नहीं।
यह भी कहा जा रहा है कि  लालू का भूत अभी नीतीष का पीछा नहीं छोड़ रहा है। विक्कीलीक्स के खुलासे के अनुसार मुख्यमंत्री रात में सोते वक्त बार-बार जाग जाते हैं। कारण कि वे स्वप्न में लालू यादव को अपनी कुर्सी पर बैठा पाते हैं।
एक दुसरी खबर के अनुसार वे जब कभी फुर्सत में रहते हैं। तो दूसरे लोक में गमन करने लगते हैंैं और लालू यादव के मुख्यमंत्री के कुर्सी पर बैठे रहने के बारे में मनन करने लगते हैं, और उसके बाद उनके मुंह से बरबस निकल पड़ता है, कभी कुर्सीं छूट गई तो हम जीकर क्या करेंगे।
बस इसी गम को भुलाने के लिए राज्य का ताबड़तोड़ दौरा कर रहे हैं।
ऐसा नहीं केवल नीतीष व्यस्त हैं। नरेंद्र मोदी भी व्यस्त हैं। सूत्रों के अनुसार मोदी व्यस्त हैं इसलिए नीतीष भी व्यस्त हैं। हालांकि कुछ लोगों का इसके उल्टा भी कहना है।
एक अन्य खबर के अनुसार नीतीष कुमार नरेंद्र मोदी के चुनौती को स्वीकार करके व्यस्त हैं न कि लालू यादव के कारण व्यस्त हैं। नरेंद्र मोदी को अंगया देकर बीजे गायब करने के बाद मोदी ने  नीतीष को गुजरात की तरह विकास करके दिखाओ की चुनौती दी थी, जिसे नीतीष ने सहड्र्ढ स्वीकार लिया था और उसी समय से व्यस्त हो गये थे। लेकिन बीजेपी नेताओं ने मोदी को खूब कोसा था कि उनके कारण, वे नीतीष के ब्रम्हभोज से वंचित रह गए।
सूत्रों के अनुसार अमेरिकी प्रषासन द्वारा मोदी की तारीफ से और टाइम मैगजीन द्वारा नीतीष की तारीफ से दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा चरम पर पहुुंच गयी है।


प्रसिद्ध राजनीतिक विष्लेड्ढक लालू यादव का कहना है कि अगर नीतीष इसी तरह अधिकारियों को व्यस्त रखे तो राज्य को सौ साल पीछे जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। उनका कहना है कि अधिकारी दबाव में जी रहे हैं। उनका कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है। वे कार्य स्थल पर हीं सो जा रहे हैं।

मुझे कुर्सी दे दो नाथ।

हे कृपा निधान , हे भगवान, मैं अपने आपको तुम्हें समर्पित कर रहा हूं। कृपया मुझे कुर्सी दे दो नाथ। फिर जीवन भर जोडूंगा तेरा हाथ। हे नाथ तुने सबकी इच्छाओं को पूरा किया है। तेरी कृपा से लंगड़ा पर्वत चढ़ जाता है ,अंधा देखने लगता है, बहरा सुनने लगता है, गूंगा बोलने लगता है। तेरी कृपा मात्र से आदमी को क्या कुछ नहीं मिल जाता है। हे नटवर तुमने अपने भक्तों को यह बचन दिया था कि  तेरी षरण में जो आ जाता है, उसके तुम सारे दुख हर लेते हो । उसे तुम मनोवांछित फल प्रदान कर देते हो। तुमने भक्तों से अहंकार छोड़ने को कहा है, मैंने अहंकार छोड़ दिया है। मैं अब तुम्हारी षरण में हूं। मैं अपने बल पर यह चुनाव नहीं जीत सकता नटवर। तुम भक्तों के कल्याण के लिए धरती पर जन्म तक ग्रहण कर लेते हो। क्या तुम मेरी चुनावी नैया पार करने के लिए एक चमत्कार तक नहीं कर सकते। तुमने दूसरे के भलाई के बारे में सोंचने को कहा था, इसलिए मै दूसरे के बारे में सोच रहा हूं। मेरे विरूद्ध चुनाव लड़ रहा षख्स माया केे वषीभूत है नाथ। उसे हित अनहित का ध्यान नहीं है। मैं नहीं चाहता कि वह चुनाव लड़कर माया के अधीन हो। इसलिए उसे माया से दूर करना चाहता हूं। पर वह मेरी सुनता हीं नहीं। चुनाव में मुझसे जो उसकी बढ़त दिखाई दे रही है वह क्षणिक सुख है। जिसे वह स्थायी समझने की भुल कर रहा है। मैं नहीं चाहता कि मेरा विरोधी माया ग्रस्त हो। माया बड़ी बलवती है। जब वह भगवान को नहीं छोड़ती तो भला उसे कैसे छोड़ेगी। उसे तुम माया से मुक्त कर दो नाथ। वह मेरी बात नहीं सुन रहा है नटवर। मैंे उसे षाम- दाम -दंड- भेद दिखाकर थक गया हूं। वह नहीं माना। अब तुमपर हीं आस टिकी है ,तेरी कृपा पर हीं मेरी सास टिकी है।  हे कृष्ण कन्हैया तुम मुझे मेरे विरोधियों से मुक्ति प्रदान कर दो। उसे तुम त्याग का उपदेष पिला दो। उसे तुम बता दो कि यह जीवन नष्वर है।  इसके लिए मोहग्रस्त होना कहां की बुद्धिमानी है? इसके लिए वह क्यों माया- मोह कर रहा हैं । वह क्यों दूसरे के हक को छीनने की कोषिष कर रह है। क्यों सांसारिकता में उलझ रहा है। अन्त समय कोई उसके साथ नहीं जाएगा। उन्हें यह बता दो कि सिंकन्दर विष्व विजयी होकर भी इस संसार से खाली हाथ हीं गया था। उसे तुम यह बता दो कि हर जीव में वह खुद को देखेगा तो उसका द्वैत मिट जाएगा, दूसरे की उपलब्धि अपनी नजर आएगी। फिर उसे चुनाव लड़ने कि आवष्यकता हीं नहीं महसूस होगी। मैं चुनाव हार कर कहां मंुह दिखाउंगा कृष्ण कन्हैया। इसलिए सन्यास ले लूंगा। लेकिन मेरा सन्यास मजबूरी में लिया गया होगा। क्या यह कायरता नहीं होगी ? क्या यह अध्यात्म के मूल सिद्धान्त के विरूद्ध नहीं होगा? अध्यात्म की पुस्तकों में कहा गया है कि, सन्यास का भाव हृदय से उठना चाहिए। और सन्यास गृहस्थ आश्रम में रहकर भी फलीभूत हो सकता है। समस्याओं से भागकर जंगल चले जाना भगेड़ूपन है। मेरी लाज अब तेरे हाथ में है गिरिधर। और तेरी लाज मेरे हाथों में, क्योंकि अगर यह चुनाव मैं हार गया, तो तुम्हारे इस कथन पर कोई विष्वास नहीं करेगा, कि जो अपने आपको तुम्हें समर्पित कर देता है, उसके तुम सारे कष्ट दूर कर देते हो।

श्री श्री रथ पर सवार चले रे।


सब लोग टीवी पर नजर गड़ाए हंै। टीवी पर खबरें प्रसारित हो रही है। खबरें भगवान विष्णु को व्यग्र कर रही है। भगवान ंिचंता के मारे कमरे में चहल कदमी षुरू कर दिए हैं। लोगों को यह नहीं समझ में आ रहा है, कि भगवान इतना व्यग्र क्यों हो रहे हैं। समाचारवाचक ने ऐसी कौन सी खबर सुना दी, जिससे भगवान व्यग्र हो गये। श्री श्री रथ हीं तो निकाल रहे हैं। आडवाणी जी ने भी तो रथ निकाला था, रामदेवजी ने भी तो निकाला था तब तो भगवान इतना व्यग्र नहीं हुए थे। श्री श्री तो उनके भक्त हैं। उनके लिए तो यह खुषी की बात होनी चाहिए , कि श्री श्री रथ पर सवार होकर उत्तर प्रदेष का भ्रमण कर रहे हैं।  उनका एक भक्त तरक्की कर रहा है। आॅलराउंडर बन रहा है।  उपलब्धि हासिल कर रहा है।  क्या भगवान भी सामान्यजन की तरह ईष्या एवं द्वेष के वषीभूत हैं? क्या भगवान को भी अपने भक्त की तरक्की पसंद नहीं है? वे तो भक्तों के कल्याण के लिए षरीर तक धारण कर लेते हैं। फिर श्री श्री का रथ पर सवार होना उनको क्यों नहीं सुहा रहा है। भगवान को यह रोग कब से लग गया? क्या मृत्युलोक के लोगों का प्रभाव उनपर पड़ रहा है।
अब भगवान के पदचाप के सिवा कमरे मंे एकदम सन्नाटा छाया है। कोई कुछ नहीं बोल रहा है। अन्ततः भगवान ने हीं चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि देखो न नारद आखिर श्री श्री भी माया के अधीन हो हीं गए। मुझे उनसे यह उम्मीद नहीं थी। अब भला बताओं ना नारद जब श्री श्री रथ की सवारी करेंगे तो अन्ना हजारे एवं सरकार में सुलह कौन कराएगा।  रामदेवजी को कौन जूस पिलाएगा। अन्ना एवं सरकार में सुलह कराने के लिए श्री श्री ने कितना प्रयास किया था। सरकार की रूख तो तुम देख हीं चुके हो। निगमानंदजी का क्या हश्र हुआ तुम जानते हीं हो। मुझे उन लोगों की चिंता है जो अनषन कर रहे हैं या भविष्य में करने वाले हैं। आखिर मै हीं तो सबका भरण-पोषण करता हूं। सबके हित में सोचता हूं। कहीं ऐसा न हो कि अनषनकारियों की कोई खोज- खबर हीं न ले। उनके अनषन तोड़वाने के लिए कोई पहल हीं न करे। श्री श्री निगमानंद जी का अनषन तोड़वाने का पहल नहीं किए तो थे तो क्या हुआ ? वीआईपी का अनषन तोड़वाने का जिम्मा तो ले हीं चुके हैं न। नहीं तो वो काम भी मुझे हीं करना पड़ता। वैसे भी मुझपर यह आरोप लग रहा है कि मैं पालकी वाले भक्तों का ज्यादा सुनता हूं। उनको कौन समझाये अगर मैं उनकी नहीं सुनुंगा तो क्या वे मेरी सुनेंगे। आखिर उनके पास किस चीज की कमी है। जो मुझे भाव देंगे। सामान्य भक्त मजबूर हैं मुझे याद रखने के लिए । लेकिन वीआईपी भक्तों की आखिर क्या मजबूरी है।
 नारद तो श्री श्री का जगह ले नहीं सकते। क्योंकि उनको तो मैं पहले हीं उत्तर प्रदेष चुनाव की रिर्पोटिंग की जिम्मदारी सौंप चुका हूं। उनके बिना तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। आखिर कौन मिर्च मसाला लगाकर खबरों को सुनाएगा।
 मैं श्री श्री को भी दोड्ढ नहीं दे सकता। आखिर सब बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं, तो उन्होंने धोकर कौन सा अपराध कर दिया है।  मैं श्री श्री को रोकने वाला भी कौन होता हूं। जो वो रथयात्रा निकालने से पहले  मुझसे पूछते। क्या श्री श्री रथ निकालने में समर्थ नहीं है। जो समर्थ होता है कहां मुझसे पूछता है। क्या रामदेव ने मुझसे पूछा था। क्या मैं रामदेव को रोक पाया था।
अगर मेरी बात रामदेव माने होते तो क्या उन्हें सलवार कमीज पहननी पड़ती। एक हीं झटके में वे गेरूवा वस्त्र को उतार फेंके होते । क्या उन्हें यह भान नहीं होता कि आत्मा अजर-अमर अविनाषी है। उसे कोई मार नहीं सकता, पानी गला नहीं सकती अग्नि जला नहीं सकती। उनका डर तो यहीं बता रहा है न कि वे अभी भी अपने को षरीर हीं मान रहे हैं।  अगर उन्हें मेरे उपर भरोसा होता तो न तो वे तम्बू के नीचे छूपते। न हीं औरतों एवं बच्चों की सुरक्षा घेरा बनाने की बात करते । हां मैं स्वामी अग्निवेष को अपना सच्चा षिष्य मानता हूं जो मेरे आदेष से इन दिनों बिग बाॅस में प्रवचन कर रहे हैं। वे श्री श्री का जगह ले सकते हैं।


शनिवार, 19 नवंबर 2011

परिवर्तन जीवन का अटल सत्य है।

 मेरे एक मित्र ने मुझसे पत्र लिखकर पूछा है कि मैं रोज अपना नाम क्यों बदलता हूंूं। इसपर मेरा कहना है कि भाई साहब आप मेरे षुभ चिन्तक हैं कि दुष्मन। क्या आप मुझे तरक्की करते  देखना नहीं चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि मैं एक हीं जगह स्थिर रहूं? आगे नहीं बढ़ूं। आसमान की बुलंदियों को टच न करूं। वैसे आपकी इसमें कोई गलती नहीं है। दरअसल आप आदर्षवादी किस्म के जीव है। आप जैसे लोगों को थोड़ा सा परिवर्तन भी पहाड़ सा लगता है। ऐसे जीव-जन्तु भीड़-भाड़ से दूर षांत वातावरण में रहना पसंद करते है। मेरी आपको सलाह है कि आप बर्हीमुखी बने। लोगों के साथ घुलने मिलने का प्रयास करें। इसके लिए आप कोई क्लब ज्वाइन करें या जूआ खेलनेे वाले से संगत कर लें। वीयरबार या तषेडि़यों या गंजेडि़यों के संगत से भी आपमें समाजिकता आ सकती है।  आप परिवर्तन कोे सहज रूप से लें। याद रखें आप इक्कीसवीं सदी में रह रहें। पाड्ढाण युग में नहीं कि किसी भी चीज  को बदलनें में हजार या लाख वड्र्ढ लगेगा। ऐसा प्रष्न आपको उपहास का पात्र हीं बनाएगा। कारण कि ऐसे प्रष्न आपके आधुनिक नहीं होने की निषानी है। जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलने की बानगी है। याद रखें अगर आप क्वारें हैं तो जीवन भर आप क्वांरें रह जाएंगे। भला ऐसे लड़के से कौन अपनी लड़की की षादी करेगा। जो 21वीं सदी में रहकर भी आदिम युग में जी रहा हो। ऐसा पति अपने आपको बीवी की इच्छा के अनुसार तेजी से बदल नहीं पाता।
 क्या वह सुबह उठकर बीवी को चाय बनाकर पिला पाएगा। अगर आप फिल्म देखते होंगे तो आप जानते होंगे कि फिल्मों के हीरो अपना नाम बदलते हैं। बहुत से ज्योतिड्ढियों को आपने यह दावा करते सुने होगें कि बस आप अपना नाम बदल दें ंहम आपकी किस्मत चमका देंगे। जगत का हर चीज परिवर्तनषील है। नदी की धारा प्रतिक्षण बदलती रहती है। स्थिरता भ्रम है, जबकि नवीनता हीं जीवन है। दूसरी बात यह है कि सृष्टि का प्रत्येक चीज परिवर्तनषील है। अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आदमी को प्रतिक्षण बदलना पड़ता है। जो नहीं बदलता है वह अपना अस्तित्व खो देता है। विकासवाद का सिद्वान्त भी यहीं कहता है। जब नैतिक और सामाजिक मूल्य तेजी से बदल रहा हैं तो फिर आपको बदलने में क्यों परेषानी हो रही है। भाई साहब मेरा नाम बदलना आपको क्यों ब्रेकिंग न्यूज लग रहा है। यह बात मेरे समझ में नहीं आ रही है।
मेरे नाम बदलने में क्या रखा है। आज व्यक्ति अपना गांव और गांव की यादों को सहजता से भूल जा रहा है। मां-बाप के प्यार को भूल जा रहा है। ग्रर्लफ्रेन्ड रोज बदल रहा है। मूंछ मूडवाकर मोछमुडा बन जा रहा है। लड़कियों जैसा बाल बढ़ा रहा है। लड़का अपने को लड़की के रूप में दिखाना चाह रहा है और लड़की अपने को लड़के के रूप में। अब तो पति एवं पत्नी का बदलना फैषन हो गया है। नेता असानी से पार्टी बदलता है। जो जितना पार्टी बदलता है वह उतना फायदे में रहता है। एक हीं जाॅब करने से क्या आपको तरक्की मिलेगी। कभी बहुरूपिया लोगों का मनोरंजन का साधन हुआ करता था । आज हर कोई बहुरूपिया हो गया है, इसलिए बहुरूपिए में कोई रस नहीं रह गया है। कल तक लोगों को दलाल कहकर अपमानित किया जाता रहा है। आज दलाली कमाऊ पूत बन गया है। भला षेयर दलाल को कौन नहीं सम्मान से देखेगा। कल तक दलबदलू से पार्टियां दूर रहती थी क्योंकि अन्य सदस्यों को यह रोग लग सकता था लेकिन आज उनको पटाकर रखा जाता है, क्योंकि विपत्ति के वक्त वहीं काम आते है। नोटों की गडिडयां बंटवाते हैं। बहुमत जुटाते हैं।
 परिवर्तन से भगवान भी अछूते नहीं है, तो हमारे और आपमें क्या रखा है। आखिर एकहीं ईष्वर कभी राम बनकर तो  कभी ष्याम बनकर आते हैं।  परिवर्तन का महत्व नहीं होता तो क्या वे अपने भक्तों को एकहीं रूप नहीं दिखाते।
भगवान हीं नहीं भगवान के भक्त भी बदल गए हैं। पहले वे  नंगे पांव चलते थे। जगंल में रहते थे। कंदमल- फूूल खाते थे। जमीन पर सोते थे। गरीब-अमीर को समभाव से देखते थे। कामिनी कंचन से दूर रहते थे  तब जाकर भगवान प्रसन्न होते थे।
आज अगर वह पालकी में नहीं सवारी करेंगे, एयरकंडीषन में नहीं निवास करेंगे,  अमीरों पर अपना स्नेह नहीं बरसाएंगे,  कामीनी कंचन से दूर रहेंगे तो क्या वे भगवान पर कोई प्रभाव छोड़ पाएंगे।
 अध्यात्मिक व्यक्ति आप से कह सकता सकता है कि नाम रूप में क्या रखा है। लेकिन जानकार मानते हैं कि नाम और रूप में हीं सबकुछ है।