बुधवार, 14 दिसंबर 2011

लगे रहो मुन्नाभाई ।
वैसे तो कौन नहीं अपने आपको को ज्ञानी कहलाना चाहेगा।  लेकिन ज्ञानी बनना इतना आसान काम नहीं। वास्तविकता यह है कि अधिकांष लोगों को अधिकांष चीजों की सतही जानकारी होती है। उनके अंदर गहरे ज्ञान का अभाव रहता है। जनसंख्या वृद्धि को हीं ले लीजिए। जनसंख्या वृद्वि के फायदे को आखिर कितने लोग जानते है। सभी लोग आपसे यहीं कहते मिलेंगे कि, जनसंख्या वृद्वि रोके बिना गरीबी दूर नहीं हो सकती। अर्थव्यवस्था की सेहत  सुधर नहीं सकती। ऐसा कहने वाले लोगों में मौलिक सोच का अभाव होता है। वे लकीर के फकीर होते हैं। दुर्भाग्यवष जनसंख्या वृद्वि के संदर्भ में न व्यक्ति दूरदर्षिता का परिचय दे रहा है और न राष्ट्र। जबकि दूरदर्षिता के महत्व को हर कोई जानता है।
न जाने क्यों लोग जनसंख्या वृद्वि को रोकने को इतना आतुर दिखते है। अधिक बच्चे पैदा करने को पिछड़ी मानसिकता का परिचायक मानते हैंै। जबकी दूरदर्षी जानते हैं कि आने वाले दिनों में जनसंख्या वृद्वि के लिए लोगों को सरकार की ओर से प्रोत्साहन पैकेज दिया जाएगा। अधिक बच्चा पेदा करने वाले को सम्मानित किया जाएगा। अबतक जनसंख्या वृद्वि रोकने के लिए न जाने कितनी नीतियां बन चुकी है। अरबो-खरबो रूपया जनसंख्या रोकने के नाम पर फूंका जा चुका है। लेकिन नतीजा षुन्य रहा है। आखिर रहेगा क्यों नहीं  प्रकृति विरूद्ध काम का नतीजा तो यहीं  होगा न। लोग यह क्यों नहीं जानते कि विष्व में आने वाली आगामी मंदी जनसंख्या क्षेत्र में हीं होगी। क्योंकि विष्व का अधिकांष देष परिवार नियोजन का पालन कर रहंे हैं। ऐसे में चुपचाप जनसंख्या वृद्वि करने में हीं बुद्विमानी है। जब और देषों में जनसंख्या का अकाल हो जाएगा, तो दूसरे देषों में जाकर यहां के लोग ऐष कर सकते हैं। जिस तरह चांद पर बसने की संभावना है। ठीक उसी प्रकार आने वाले दिनों में भारत के लोगों की दूसरे देष में जाकर बसने की संभावना है। और वहां के सरकार इसके लिए तमाम तरह की रियात देगी। आपके मन में यह प्रष्न उठ रहा होगा कि क्या जनसंख्या वृद्धि को बढ़वा देकर हम अप्रगतिषील नहीं कहाएंगे। आखिर हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। इसपर मेरा कहना है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ेगा हीं न। जीरो रिस्क वाली बात तो किसी भी काम में नहीं होती। हां मैं आपको जरूर यह आष्वस्त कर सकता हूं कि आप घाटे में नहीं रहेंगे। एक दूसरा प्रष्न भी आपके मन में उठ सकता है। क्या दूसरे देषों को मूर्ख बनाना इतना आसान है। तो मेरा कहना है क्यों नहीं जब पाकिस्तान अमेरिका सहित पूरे विष्व को मूर्ख बना सकता है तो भारत क्यों नहीं बना सकता? जैसा कि वह  दिखावे के लिए आतंकवाद के विरूद्व लड़ाई लड़ सकता है और पूरा विष्व उसे मान सकता है। तो भारत क्यों नहीं चुपचाप जनसंख्या वृद्धि कर सकता है।
 दूसरी बात कि अपने देष के  बुद्विजीवियों के आक्रमण से बचने के लिए भी आपको उपाय सोचने होगें। बाहर से देष दिखाए कि वह जनसंख्या वृद्वि रोकने के लिए बहुत सीरियस है। आवष्यकता हो तो इसके लिए सौ-पचास जबर्दस्ती नसबंदी भी करा दे। लेकिन अंदर हीं अदंर लोगों को जनसंख्या बृद्वि के लिए खूब प्रोत्साहित करे। जनसंख्या वृद्वि के कुछ और फायदे है। जैसे
जनसंख्या वृद्धि व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी है। क्योंकि
व्यक्तित्व विकास के लिए समाज का होना जरूरी है। बालक का समाज से परिचय परिवार के रूप में होता है। बालक सामाजिक होना परिवार से सिखता है। अतः परिवार जितना बड़ा होगा व्यक्ति उतना हीं अधिक सामाजिक होगा।

जनसंख्या वृद्धि से व्यक्ति चुनौतियों का सामना करना सिखता है। कई पुत्र होने से परिवार में अगर खाने को नहीं होगी तो मारा -मारी होगी। ऐसा होना बच्चों के मानसिक विकास के लिए बहुत अच्छा होगा। क्योंकि उनके आगे के जीवन में कितना भी अभाव आ जाए वे समस्या का रोना नहीं रोएंगे। वे लड़ झगड़कर दूसरे का हक मारकर अपना हक प्राप्त हीं कर लेंगे।
सुरक्षा के भाव के लिए जनसंख्या वृद्धि जरूरी- अधिक बच्चे माता पिता में सुरक्षा का भाव पैदा करते है। जिसका एक बच्चा होगा उसको हमेषा चिंता रहेगी ,अगर वह उसके बुढ़ापे का सहारा नहीं बनेगा तो क्या होगा। वहीं जिसके कई पुत्र होगें वह यह सोच सकता है कि एक नहीं करेगा। दूसरा तो करेगा न। भले हीं कोई न करे।
बड़ा परिवार सुखी परिवार - अगर आप पड़ोसियों के बीच धाक जमाना चाहते उन्हें अपने सामने झुकाना चाहते हैं। तो क्रिकेट टीम खड़ा कर हीं दीजिए।  आपके बच्चों को देखकर हीं पड़ोसियों को नानी याद आ जाएगी। पड़ासियों को आपके परिवार की ओर आंखें उठाने की हिम्मत नहीं होगी। यानी हर जगह आपकी तुती बोलेगी। तो फिर देर किस बात की लगे रहो मुन्नाभाई ।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

लोकपाल बकवास है

देष अपना है
सरकार अपनी है
नेता अपने हैं
भ्रष्ट्राचार सपना
कोरी कल्पना है
लोकपाल बकवास है
इसे लागू करना
लोकतंत्र का उपहास है
अज्ञानजनित द्वन्द है
हर कोई स्वच्छन्द है।
नेताओं की मौज है
बेरोजगारों की फौज है
पैसा भगवान है।
बिक रहा ईमान है।
कुतों का मान है
गया-गुजरा इनसान है
फलफूल रहा जयचंद्र हैं।
चैहान के लिए दरवाजे सारे बन्द है
इंडिया खूब षायनींग कर रहा है
चन्द लोगों की तिजोरियां भर रहा है
पर भारत कंगाल है।
जनता लाचार है
देष की आत्मा गावों में बसती है मगर
बस वहां भूख का साम्राज्य है।
बिचौलियों का राज्य है।
पाक के साथ षिष्ट्राचार है।
कसाब बना मेहमान है।

चांद कहां निकला वो तो मैंने तेरी घूंघट उठायी है।

बदली नहीं छायी तेरी जुल्फ की परछायीं है।
चांद कहां निकला वो तो मैंने तेरी घूंघट उठायी है।
सरगम की ये धुन नहीं ये तेरी सासों की षहनायी है।
हुआ कहां सबेरा वो तो गोरी मुस्कुरायी है।

यौवन में नहाया हुआ तुम्हारा ये गुलाबी बदन

यौवन में नहाया हुआ तुम्हारा ये गुलाबी बदन
प्यार बरसाता हुआ तुम्हारा ये षराबी नयन
उसपे चले जब वासंती पवन
 फिर सुने कोई जब चुडि़यों की खनक।
क्या काफी नहीं है बताओ तुम्हीं
दिल पे बिजली गिराने के लिए ये सितम।

रविवार, 11 दिसंबर 2011

तेरा रूप देख चांद भी सरमाया होगा

तुमने बालों को जब गालों पे लहराया होगा ।
तेरा रूप देख चांद भी सरमाया होगा
तुम समझती हो कि उसे मैंने उकसाया होगा।
बात मानो उसे देख के नषा छाया होगा।

हास्य कविता

भ्रष्ट्राचार आज आचार बन गया है।
नेताओं का षिष्टाचार बन गया है।
दिन-दुनी रात चैगुनी उन्नति का आधार बन गया है।
जाने क्यों अन्ना इसके खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं।
जबकि लाखों बेरोजगारों का यह रोजगार बन गया है।

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

कौन अन्ना को कितना प्यार करता है?

बात पुरानी है लेकिन रोचक कहानी है। जीं हां मैं बात कर रहा हूं अपने दिग्गी राजा के बारे में जो अपने नित नये बयानों से विकिलिक्स को भी पछाड़े रहते हैं। आइए अब हम विड्ढय पर आते हैं।
दिग्गविजय सिंह जी केे कुछ दिन पूर्व दिए बयान से मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि ,वे अन्ना से दिलोजान से प्यार करते हैं। उनके इस कथन पर कोई विष्वास करे या ना करे, मैं षत प्रतिषत करता हूं। मेरा तो यहां तक कहना है कि वे अन्ना से सबसे अधिक प्यार करते हंै। अन्ना स्वयं कह चुके हैं कि दिग्गी राजा उनका पांव छूते थे। यानी सिंह साहब उनका पहले से सम्मान करते रहे हैं। उनका प्यार कोई नया नहीं है। इसके अलावे वे समय-समय पर उनको प्रेम पत्र भी लिखा करते हैं। दिनभर उनकी हीं बारे में बाते किया करते हैं।
अभी यह अस्पष्ट नहीं हो पाया है कि कांगे्रस ने उनको उत्तर प्रदेष का प्रभार दिया है कि अन्ना का प्रभार दिया है। कारण कि अक्सर प्रेस से उनकी हीं बाते किया करते हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि वे अन्ना को ज्यादा प्यार करते हैं कि रामदेवजी को ज्यादा, क्योंकि रामदेवजी के आंदोलन के दौरान  वे केवल रामदेव की बातें किया करते थे। 
 अन्ना से प्यार करने वाले में दूसरा नम्बर कपिलजी का आता है। जिनका प्यार अन्ना के प्रति षाष्वत है , पवित्र है ,क्योंकि वह अन्ना, रामदेव, एवं स्वामी अग्निवेष तीनों पर समान रूप से बरसता है।  सच्चा प्रेम भेद नहीं जानता। उसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उसे दोस्त और दुष्मन की पहचान नहीं होती। अन्ना को प्यार करने वालों में तीसरा नम्बर मनीष तिवारी का आता है। जो उनके प्यार में इतना भाव-बिभोर हो जाते हैं कि उनको भ्रष्टाचार में आंकठ डूबे हुए बताकर स्तुती करते हैं। तब अति भावुक देखकर कांग्रेस याद दिलाती है कि टू मच हो गयाजी। बस करो अब हजम नहीं होगा। तब जाकर वे सार्वजनिक रूप से खेद जताते हैं और कहते हैं अन्ना एवं उनके समर्थक उन्हें बालक समझकर मांफ कर दें।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

लोकलाज छोड़ने वालों के पास अवसर हीं अवसर होता है

अवसर की कमी उसके लिए  है जिसकी प्रतिभा औसत दर्जे की है या उससे भी कम है। जिसके पास प्रतिभा का विस्फोट है उसको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। चाहे कितनी बड़ी मंदी क्यों न आ जाए। आप यह कह सकते कि यह कैसे जाना जाए कि किसके पास प्रतिभा का बिस्फोट है। तो मेरा कहना है घोटाले करने वाले और अपहरण करने वाले या कराने वालों के पास प्रतिभा का बिस्फोट होता है।
मंदी से अवसर की कमी हम क्यों मान लें। क्या मंदी के दौरान अपराध में गिरावट आ जाती है। क्या तस्करी रूक जाती है। क्या मानव अंगों का व्यापार नहीं होता है। क्या जाली नोटों का कारोबार रूक जाता है। क्या चोरी- चमारी, छीना -झपटी बैंक डकैति आदि में गिरावट आ जाती है। नहीं न, तो फिर कैसे मान लिया जाए कि मंदी से बेरोजगारी बढ़ जाती है। अर्थ व्यवस्था तबाह हो जाती है। क्या मंदी से अपहरण उद्योग में जान नहीं आ जाती है? हां यह जरूर कर्मचारियों की अदला-बदली जरूर हो जाती है। तस्करी, अपहरण और जाली नोटों के कारोबार वाले उद्योगों में लोगों का विष्वास जरूर बढ़ जाता है। जो लोग नैतिकता की बात करते हैं या ईमान की इजाजत नहीं देने की बात करते हैं। वे भूखों मरते है। ये परिवर्तन को जल्दी नहीं स्वीकार करने वाले लोग होते हैं। ये लोग मल्टीटास्क कतई नहीं होते हैं और बेरोजगार रह जाते हैं। और बेरोजगारी का खूब रोना भी रोते हैं।
 आज के दौर में जब आॅलराउण्डर नहीं बनेंगे तो रोजगार क्या खाक मिलेगा। जब हर जगह मल्टी टाॅस्क की मांग हो। छिनैती जब फायदे का धंधा न रह जाये तो अपहरण उद्योग में षिफ्ट हो गये, उसमें भी अवसर न दिखे तो जाली नोटों का कारोबार करने लगे।
परंपरागत उद्योगों में रोजगार ढ़ूढोगे तो काम कहां मिलने वाला है। कुछ हट करना होगा। इसके लिए आपको संकोच छोड़ना होगा। लोकलाज को तिलांजली देनी होगी। जो इस बात का छोड़ दिया कि, लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे उसको फिर अवसर हीं अवसर है। फिर वह भीख मांग कर भी अपने तथा अपने परिवार का भरण-पोड्ढण कर लेगा। फिर उसे दुनिया कि कोई ताकत आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
इसी प्रकार मानव अंगों की तस्करी करने वाले को भी कहां कानून का डंडा रोक पाता है। प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर जूता चलाने वाले जांबाज भी आखिरकार तमाम बाधाओं एवं विरोध के बीच अपना स्थान हैं। उनकी राह कोई आसान नहीं होती। लोक निंदा जैसे बाधा उन्हें कहां रोक पाती है।
प्रेरक प्रसंग हर जगह मौजूद हैं। आवष्यकता है उसको पहचानने की। घोटाला करने को हीं ले लें। क्या सामान्य मनोदषा वाला व्यक्ति घोटाला कर सकता है। घोटाला को वहीं खराब कहता है, जिसके पास इसे करने की हिम्मत नहीं होती। इसी प्रकार
भ्रष्ट्राचार करने के लिए भी अदम्य साहस एवं दृढं इच्छा षक्ति की आवष्यकता होती है। इसलिए मैं भ्रष्ट्राचारियों को सर्वोच्च सम्मान देने की वकालत करता हूं। सामान्य मानसिक दषा वाले व्यक्ति को घोटाला करने की सोचने मात्र से नानी याद आ जाएगी। हार्ट अटैक हो जायेगा। सीबीआई एवं जेल जाने का भय सताएगा। इसके समर्थन में लफुआ एण्ड कंपनी ने मेरे नेतृत्व में एक रैली भी निकाली है। जिसको संबोधित करते हुए मैंने सरकार से इसे लीगलाइज करने की मांग उठायी है। लफुओं को संबोधित करते हुए मैंने कहा कि भ्रष्ट्राचार सरकार की अर्कमण्यता के चलते आज गैरकानूनी है। परिणामस्वरूप करोड़ो रूपये पानी की तरह जांच के नाम पर बहाना पड़ता है।
मेरे नेतृत्व में एक षिष्टमंडल अन्ना हजारे से भी मिलेगा और उनसे राष्ट्र को गुमराह नहीं करने की अपील करेगा।

पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने बाजी मार हीं ली।

बात कुछ दिन पहले की है जब कुछ पाकिस्तानी क्रिकेटरों को सट्टेबाजी के जुर्म में जेल की सजा सुनाई गयी।  इस फैसले से  पाकिस्तान ने पड़ोसी देष पर बढ़त हासिल कर ली।
वैसे तो पाकिस्तान एवं भारत में युद्ध अक्सर होता रहता है। युद्ध के मैदान न सही खेल का मैदान में हीं सही। दोनों ओर के खिलाड़ी जंग जितने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। पिछले कुछ दिनों से पाक क्रिकेट संकट के दौर से गुजर रहा था। कारण कि कोई भी देष  वहां जाकर खेलने को तैयार नहीं था। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को कोई उपाय हीं नहीं सुझ रहा था कि इस विड्ढम परिस्थिति से कैसे निपटा जाए। लेकिन एक अप्रत्यासीत घटना ने  न केवल पाकिस्तानी क्रिकेट का गौरव वापस लौटाया ,बल्कि उसे पड़ोसी देष पर बढ़त भी दिला दी। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार जेल जाकर पड़ोसी देष के खिलाडि़यों ने आखिरकार भारत को पछाड़ हीं दिया। बहुत दिनों से उसकी ख्वाहिष थी कि पड़ासी देष उससे मात खाए। लेकिन मौका नहीं मिल रहा था। आखिरकार पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने अपने देष के गौरव में चार चांद लगा हीं दिया। उन्हें डर था कि भारत एवं कोई अन्य देष ने अगर बाजी मार लिया तो, उनके देष में उन लोगों की काफी ऐसी-तैषी होगी। हो सकता है कयानी के अदालत में पेष होना पड़े। विष्व क्रिकेट के इतिहास में पहली बार पाकिस्तानी क्रिकेटर जेल का सफर तय करेंगे। इसके पहले पाकिस्तानी क्रिकेटर अपने सरल एवं सौम्य व्यवहार के लिए जाने जाते थे। अपुष्ट खबरों के अनुसार आईएसआईका पाकिस्तानी क्रिकेटरों पर कुछ नई उपलब्धी राष्ट्र के नाम हासिल करने का दबाव था। आएसआई का मानना था कि श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर गोलीबारी की घटना काफी पुरानी हो चुकी है। और विष्व कप भी भारत जीत कर ले गया। ऐसे में कोई नई उपलब्धि हासिल करने की एकदम इमरजेंसी थी। सीमा पार से भी पाकिस्तानी सेना सीमापार से भी उतनी धुआंधार गोलीबारी नहीं कर पा रही है। क्योंकि अमेरिका पहले की तरह खामोष नहीं बैठता। ऐेसे में इज्जत बचेगी तो कैसे ? तालिबान को भी पाकिस्तान खुलेआम समर्थन नहीं दे पा रहा था। ऐसे में पाकिस्तान के सामने नाक बचाने का प्रष्न खड़ा हो गया था।
अपुष्ट खबरों के अनुसार राष्ट्रªपति जरदारी ने सेना प्रमुख कयानी के दबाव में पाकिस्तानी क्रिकेटरों को इस उपलब्धि पर बधायी दी है। कहा जा रहा है कि अगर जरदारी ऐसा नहीं करते तो उनका तख्ता पलट होना निष्चित था।

सुख-दुख एक हीं सिक्के के दो पहलू हैं।

मैं घोर भाग्यवादी हूं। मेरा मानना है इनसान के जो भाग्य में होगा वह मिलेगा हीं, चाहे वह हाथ-पर हाथ धरा क्यों न रहे। कहा भी गया है कि जब ईष्वर देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। मैं छप्पर फटने का इंतजार कर रहा हूं। लेकिन मेरे इंतजार को ,मेरी पत्नी मेरा आलसीपन मानती है। आखिर क्यों न माने, तुलसी बाबा पहले हीं लिख गये हैं, जाकी रही भावना जैसी, हरी मूरत देखी वह तैसी। मैं भाग्यवादी  होने के साथ गहरे अर्थों में अध्यात्मिक भी हूं। मै ज्ञानीजनों के इस बात से सहमत हैं कि सुख- दुख मिश्रित है, अर्थात सुख के बाद दुख, दुख के बाद सुख। पर मेरी पत्नी मुझे ज्ञानी नहीं मानती। पड़ोसियों की नजर में भी मैं गंवार हूं।  मानेगी भी कैसे, कहा भी गया है, घर की मुर्गी दाल बराबर। जब लोग तुलसीदास की तरह मुझे घर- घर पूजने लगेंगे, तब सबको मेरी महानता मालूम होगी। तब न पत्नी मुझे भाव देगी। तब न पड़ोसी मेरे यहां दरबार लगाएंगे। फिलहाल पत्नी की नजर में मैं आरातलबी हूं, आलसी हूं, निकम्मा हूं, तभी तो मैं  ज्यादा कमाना नहीं चाहता । जबकी मेरा जीवन दर्षन यह है कि यह दुनिया दो दिन का मेला है। इस दो दिन की जींदगी में हाय हाय क्या करना।  मौज मस्ती कर लिया जाए। कौन मकान और घर लेकर इस संसार से जाता है। सिकन्दर भी तो खाली हाथ हीं गया था। मेरे पत्नी को अभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुयी है, कोई बात नहीं हो जाएगी, क्योंकि उसको ज्ञानी पति जो मिला है।  मैं हूं न उसको उपदेष पिलाने को ा  आखिर मेरा ज्ञान किस काम आयेगा। वह ज्ञान किस काम का जो अपने के हीं काम न आए। लेकिन मेरे प्रवचन से परिवार की षांति व्यवस्था को खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। लाठी चार्ज की भी नौबत आ सकती है। लेकिन इससे क्या मुझे उपदेष नहीं देना चाहिए। खतरा किस काम में नहीं ? क्या बिना खतरा उठाये आज की दुनिया में कुछ हो सकता है। मेरे प्रवचन के दौरान बेलन एवं झाड़ू बरसने की प्रबल संभावना है। लेकिन अगर मैं झाड़ू से डर जाऊंगा तो क्या कायर नहीं कहलाऊंगा। उसे समझाना भी तो मेरा फर्ज है। मैं झाड़ू बेलन से डरता नहीं,  क्योंकि मैं सत्याग्रही हूं सत्याग्रह करना जानता हूं। रामलीला मैदान में लाठी डंडा खा चुका हूं। छात्र जीवन में पुलिस वाले के हाथों में पिटा चुका हूं। कोई पहली बार नहीं मेरे साथ यह हादसा होगा। दूसरी बात यह है कि वह नासमझ है कि ,जो पति परमेष्वर पर हाथ उठायेगी, लेकिन मैं तो ज्ञानी हूं न। मैं हाथ नहीं उठाऊंगा। वरना किस मुंह से उससे खुद को बड़ा कहुंगा। उसके और मुझमें फिर अंतर हीं क्या रह जाएगा। मैं उससे उम्र में एवं अनुभव दोनों में बडा हूं।  उसे समझाना मेरा फर्ज है। उसे कर्तव्यबोध कराना जरूरी है। मेरा ज्ञान कह रहा है कि मेरी पत्नी माया के वषीभूत है ,वह ज्यादा धन मुझसे कमवाकर अपने अहंकार का विस्तार करना चाहती है। अपने सहेलियों में प्रभाव जमाना चाहती है। पड़ोसियों को जलाना चाहती है। लेकिन मैं ऐसा होने दूंगा। उसको माया में पड़़ने नहीं दूंगा। आखिर मैं उसका पति हूं उसका हित-अनहित सोंचना मेरा कर्तव्य है।  अगर मैं नहीं सोचूंगा तो आखिर दुनिया क्या कहेगी। न मैं ज्यादा कमाऊंगा और न उसे किसी चीज का अहंकार होगा। न वह पड़ोसियों का जलायेगी। वह नहीं पढ़ी है तो क्या। मैं तो पढ़ा-लिखा हूं न। मैं यह पढ़ा हूं कि  साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय। आखिर मैने उससे जनम- जनम साथ निभाने का वादा किया है। उसके प्रति भी तो मेरा कुछ कर्तव्य बनता है।
उसे यह नहीं पता है कि दुख के बाद सुख का अहसास होता है। वह केवल सुख हीं सुख चाहती है ,अगर मैं केवल उसे सुख के हीं वातावरण में रख दूं तो क्या वह उब नहीं जाएगी।  फिर उसे असली सुख का अहसास कैसे होगा। वह चाहती है कि मैं कुछ कमाकर बाल- बच्चों के लिए रखूं। सब तो रख हीं रहे हैं। मैं क्यों माया में पड़ूं। क्यों न मैं कुछ अलग करूं। मेरी बचपन से इच्छा कुछ अलग करने की रही है। सो मैं कुछ अलग कर रहा हूं। अपने बच्चों को कुछ कमाकर नहीं रख रहा हूं। और घर का माल उड़ा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चेे स्वयं स्वालंबी बने। अगर सब मैं हीं कर दूंगा तो वे क्या करेंगे। उन्हें करने के लिये भी तो कुछ चाहिये वरना वे मेरे जैसे बैठे बैठे रोटी तोड़ेंगे। इससे उनका जीवन बेमजा हो जाएगा। फिर उनकी प्रतिभा कैसे निखरेगी। चुनौतियों का सामना करने से न।   ओषो ने कहा था कि काॅपी का उतना महत्व नहीं यूनिक चीज हीं मूल्यवान होती है। इसलीये मैं यूनिक बन रहा हूं। ठीक कर रहा हूं न ?






मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

जलवायु परिवर्तन ऐसे रोकें।

 जलवायु परिवर्तन को रोकना असंभव नहीं, अगर विकाषील राष्ट्र  विकसित देषों के सुझावों पर अमल करंे तो। विकसित देषों के सुझावों पर अमल कर जलवायु परिवर्तन को आसानी से रोका जा सकता है। विकसित देषों का कहना है कि विकासील देष अगर हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगा देंगे, तो विकसित देष चाहे कितना भी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कर लें उससे क्लाइमेट चेन्ज नहीं होगा। इसको इस तरह से समझा जा सकता है। जिस प्रकार परमाणु क्लब में षामील राष्ट्रों को छोड़कर अन्य देषों के परमाणु हथियार बनाने से हथियारों की होड़ षुरू हो जाएगी। लेकिन परमाण राष्ट्रों के अपने परमाणु हथियारों के खत्म किए बिना हीं विष्व से परमाणु हथियारों का खात्मा माना जाएगा। जैसे कि अमेरिका के नेतृत्व में नाटों देष चाहे दूसरे देषों पर कितना भी बम बरसा लें उस  देष की संप्रुभता पर कोई खतरा उत्पन्न नहीं होगा। लेकिन अगर भारत पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों से बाज आने की चेतावनी भी दे दे तो साउथ एषिया का षक्ति संतुलन बिगड़ जाएगा।  षांति व्यवस्था खतरे में पड़ जायेगी। हथियारों की होड़ षुरू हो जाएगी। अमेरिकी विदेष मंत्री का दौरा षुरू हो जाएगा। भारत को संयम रखने का उपदेष पिलाया जाएगा। इसको इस तरह से भी कहा जा सकता है कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न राष्ट्र चाहे जितना परमाणु हथियार बनाना लें, विष्व के सुरक्षा व्यवस्था को कोई खतरा नहीं उत्पन्न होगा। और कोई देष बनाने की कोषिष करे तोे खतरा हीं खतरा नजर आएगा। जिस प्रकार विकाषील राष्ट्ों द्वारा अपने  किसानों को दी जाने वाली सब्सीडी कम या बंद कर देने से विष्व से मंदी दूर हो जायेगी। विष्व व्यापार संतुलित हो जाएगा। जिस प्रकार ओसामा के मारे जाने से विष्व से आतंकवाद खत्म हो जाएगा। जिस प्रकार आरक्षण लागू कर देने से समाज के एक वर्ग की किस्मत चमक जाएगी। दहेज कानून बन जाने से बहुओं की होली नहीं जलायी जाएगी आदि।
इसी को बात को विकसित राष्ट्रों ने एक मार्मिक अपील द्वारा विकाषील देषों को अपनी बात समझानी चाही है।
प्रस्तुत है उस अपील का सारांष-

विकसित राष्ट्रों की मार्मिक अपील - प्रिय विकाषील राष्ट्रों आप विकसित देषों की मांगों  पर उदारतपूर्वक विचार करें । चीन के कहा में मत आओ जी ,इतना निष्ठूर भी मत बनो जी। आखिर मानवता भी तो कुछ चीज होती है।  हमारी तुलना अपने आपसे क्यों करेते हो जी। हमें दुखों में रहने का कहां अनुभव है, लेकिन आपके साथ तो ऐसी बात नहीं है जी। हमें तो उपभोग का नषा है। लेकिन क्या आप के साथ भी ऐसा है। लोग कहते हैं कि पष्चिम उपभोग से उब चुका है। अब अध्यात्म की ओर लौट रहा है। लोगों की बातों में मत आओ जी। लोगों का तो काम है कहना। पुरानी आदत जल्दी कहां छुटती है। हमलोग एकदम मजबूर हैं जी।  लेकिन आप की धरती से तो संयम उपदेष गुंजा है। भारत जैसे देष में तोे पेड़-पौधों एवं नदियों तक को देवता कहा गया है। पर्यावरण का नुकसान पहंुचाकर अपने देवता का अपमान करोगे। आप पर्यावरण को नुकसान पहंुचाकर अपने देष का नाक मत कटवाइए। अपनी तुलना हमसे मत करो जी हम एडिक्ट हैं एडिक्षन इतनी जल्दी कहां छुटती है। आप षराब पीने वाले को कह दीजिए कि आज से वे षराब पीना छोड़ दें तो मुष्किल हो जाएगी जी। लेकिन आपने तो अभी षुरूआत की है जी, आप तो छोड़ सकते हो जी। इसलीए जलवायु परिवर्तन रोकने का जिम्मा ले लो जी। हमसे मत अपेक्षा रखो जी।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

नेताजी का चिंतन

उत्तर प्रदेष चुनाव किसी के लिए राजयोग लेकर आया है तो किसी के लिए स्वाथ्यय योग। तो अनेकों के लिए कंगालयोग भी । राजयोग एवं कंगाल योग की चर्चा बाद में होगी। आइए पहले हम  स्वास्थ्य योग की चर्चा करता करते हैं। लफुआ एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार देष के ज्यादातर वीआईपी हैवी वेट के षिकार हंै। चाहे मंत्री हो, सांसद हों, विधायक हों, या फिर अधिकारी सभी की एक हीं बीमारी है। लेकिन आषा है कि इसमें से नेताओं की अधिकांष बीमारी का इलाज उत्तर प्रदेष चुनाव में हो जाएगा। कारण कि उनको इस चुनाव में खूब परिश्रम करना होगा। खूब पसीना बहाना होगा। परिणाम घोड्ढित होने पर षाॅक थेरेपी एवं हड्र्ढ थेरेपी दोनों हो जाएगी। झोलाछाप डाॅक्टरों का इसके विपरीत मत है। उनका कहना है कि उत्तर चुनाव के दौरान उनके सेहत में सुधार न होकर उनके स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की जायेगी। झोलाछाप डाॅक्टरों का तर्क है कि इसका कारण यह है कि चिंतन करके परिश्रम तो वे लोग पहले से कर रहे हैं। क्षेत्र भ्रमण उनके लिये ओवर डोज हो जायेगा। इस पर कुछ लोग चुटकी लेने से भी नहीं चूकते और कहते हैं कि आखिर नेताओं को चिंता नहीं होगी तो किसे होगी। आखिर घोटाले के तरीके जो उन्हें सोचना होता है। घोटाला करके बचाव जो करना होता है।  घोटाला करने वाला भी चिन्तित है और नहीं करने वाला भी। यह तो वह बात हुई न जो खाये वो भी पछताए जो न खाये वो भी पछताए। जिन्हें घोटाले नहीं करने का मौका मिला है वे भी चिंंितत हैं और जिन्हें मिला है वे भी चिन्तित हैं। मेरे क्षेत्र के नेताजी की इस बीमारी से हालत सीरियस है।  उनके लिए चिंता एवं चिंतन एक हीं है।
नेताजी की कर्मठता आलम यह है कि वे रात-दिन क्षेत्र के विकास के लिए चिंतित रहते हैं। चिंता से उनका वजन 65 किलो से 105 किलो का हो गया है। पिछले कुछ वड्र्ढों में क्षेत्र हित में वे इतना चिन्तित रहे हैं उन्हें पता हीं नहीं चला कि पांच साल कैसे गुजर गया। षुरू से उनकी इच्छा रही है कि ,उनके क्षेत्र का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो। इसके लिए पूरे पांच साल चिंतन किए हैं। उनका का कहना है कि क्षेत्र को विष्व मानचित्र पर लाने के लिये पांच साल का चिंतन काफी नहीं है। उन्हें पांच साल और मौका दिया जाना चाहिए। जनता आखिर नेताजी के त्याग को किस मूंह से भूलेगी कि उन्हें मौका नहीं देगी। चिंतन में निमग्न रहने के चलते वे पांच वड्र्ढ में पांच बार भी क्षेत्र में दर्षन नहीं दिये हैं।  लोग अब अखिंया हरिदर्षन की जगह नेताजी के दर्षन को प्यासी गा रहें हैं।  नेताजी ने पत्नी से साफ कर दिया है कि, जब वे जनता का हित चिंतन करते हों तो कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे। आखिर जनता के हीं पुण्य प्रताप से वे फल-फूल रहे हैं। दिन दूनी रात चैगुनी उन्नति कर रहे हैं। पहले साईकिल पर चलते थे। अब कार एवं हवाई जहाज की षैर करते हैं।  उनका कहना है कि आज भी वे साइकिल पर चलना चाहते हैं लेकिन जनता की इज्जत का ख्याल कर ऐसा नहीं करते। आखिर जनता की नाक जो कट जाएगी उनके साइकिल पर चलने से। उनके चिंतन से भाभीजी यानी नेताजी की धर्मपत्नी जी डबल चिंतित हैं। भाभीजी के बार-बार अपील करने पर भी वे परिश्रम करना नहीं छोड़ते।  ज्यादा परिश्रम करने का नतीजा है कि वे हैवी वेट का षिकार हो गये हैं। और डायबीटीज जैसी बीमारी हो गयी है। वे डायबटीज का षिकार होकर इस मिथक को तोड़ दिए हैं कि डायबटीज परिश्रम करने वाले को नहीं होता। आखिर चिंतन परिश्रम में नहीं आता है तो किसमें आता है? आषा है कि उनके हित चिन्तन का परिणाम इस चुनाव में जरूर मिल जाएगा। इसके पहले भी कई रिकाॅड उनके नाम है। जैसे नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं होती। सत्य मिथ्या कल्पना है आदि। इस चुनाव में वे जनता सेे वादा किये हैं कि अगर वे चुनाव जीत गये तो जनता के प्यार के कर्ज को चुका देंगे यानी तिहाड़ जाकर उनका नाम रौषन कर देंगे। वे इस क्षेत्र के उपलब्धि में एक अध्याय जोड़ने के लिए प्रयासरत है। कामना कीजिए वे सफल हों।