शुक्रवार, 24 जून 2011

दिल्ली विश्वविद्यालय की कॅट आॅफ लिस्ट


आज मेरे बेटे ने मेरे मुंह पर कालीख पोत दी। मैं कहीं का नहीं रहा। किसी को मूंह दिखाते हुए मुझे शर्म आती है। सुबह पार्क जाना भी छोड़ दिया है। अकेल बेटा है इसलिए दूसरे से आशा करना हीं व्यर्थ है। आज अगर दूसरा बेटा होता तो इस तरह आशा नहीं टूटती। पहला नही ंतो दूसरा पिता के अरमानों को पूरा कर हीं देता। इस तरह मेरे जितने अधिक पूत्र होते उतना मेरा सर उंचा रहने की संभावना होती। इसलिए मैं लोगों से दूसरा बच्चा पैदा करने की अपील करता हूं। मैंने समाज हित में यह अपील कर रहा हूं, नहीं मानोगे तो पछताओगे।
आप यह सोंचते होंगे कि आखिर मेरे बेटे ने ऐसा क्या कर दिया कि मेरा सर शर्म से गड़ गया। तो लीजिए मैं रहस्य से परदा हटा हीं देता हूं। उसका चयन दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित ंिहंदू कालेज में नहीं हुआ। जबकि पड़ोसी चंदूलाल के बेटे ने बाजी मार ली। अब आप हीं बताइए। क्या चंदूलाल के सामने मेरा सर शर्म से झूक नहीं जाएगा? क्या वे मेरे सामने डींग नहीं हांकेंगे। वह पूत्र क्या जो पड़ोसियों के सामने पिता का सर झूकादे।
लेकिन ऐसे बेटे होंगे तो क्या पिता का सर शर्म से नहीं झूक जाएगा। नालायक दिन रात पढ़ाई करता था और 99 प्रतिशत मार्कस लाया। आखिर मैंने उसके लिए क्या कुछ नहीं किया।। मेरे जीवन का एक हीं उद्देश्य था उसके भविष्य का निर्माण करना। अब जब उसको अपने भविष्य की चिंता नहीं तो मैं क्या कर सकता हूं। अब छोटा तो है नहीं उसको डाॅटूं- फटकारूंगा। पत्नी कहती है कि बेटे को कुछ मत कहिएगा वह अब बड़ा हो गया है। कुछ कह देगा तो इज्जत चली जाएगा। अब पत्नी को कौन समझाए कि इज्जत रही हीं कहां कि जाएगी।
ईश्वर के विधान भी अजब-गजब होता है। आखिर मेरे चढ़ावे क्या कमी रह गई थी। मैं और पत्नी दोनों ने शत्प्रशित अंक के लिए चढ़वा चढ़ाया था। पर उनके दरबार में सुनवाई नहीं हुई। और तो और नाश्तिक चंदूलाल के बेटे पर कृपा बरसा दी।
मैं आज आपको एक बात और बता देता हूं कि मैं हमेशा से परिवार नियोजन के खिलाफ रहा हूं। लेकिन मेरा श्रीमतीजी के सामने एक नहीं चलती। यकीन मानीए अगर मैं अपनी पत्नी की बात नहीं मानी होती तो आज इतना हताश-निराश नहीं होता। कहीं- कहीं पत्नीव्रता होना नूकसानदेह भी होता है। मैं जब भी टीम इंडिया खड़ा करने की बात पत्नी से कहता, वह हमेशा मेरा मुंह यह कहकर चूप करा देती की जब तुम एक बच्चे को खिला नहीं सकते तो तुम्हे दूसरा बच्चा पैदा करने का क्या हक है ? उस नासमझ को कौन समझाए हम किसी को खिलाने वाला कौन होते हैं। सबका पालन पोषण करने वाला भगवान है। ईश्वर के विधान में हस्तक्षेप करना कहां कि बुद्विमानी है ? मैं अपना अनुभव बताऊं, आपके जितने अधिक बच्चे होंगे। उतना आपका का भविष्य सूरक्षित होगा। बूढ़ापे में एक अगर दूत्कारेगा तो दूसरा पूचकारेगा। अगर सारे के सारे अच्छे हो गए तो समझो पांचों अंगूलियां घी में। अधिक बच्चे होने की स्थिति में आप अपनी राजनीति भी चमका सकते हैं। यानी एक को पूरस्कृत करके दूसरे को तिरस्कृत करके अपनी दाल- रोटी की व्यवस्था की जा सकती है।अगर एक आपका अरमान पूरा नहीं करेगा तो दूसरा कर देगा।
मैं करियर कांउसलर से भी इस संदर्भ में सलाह ली। पूछा आखिर कहां कमी रह गई उसकी पढ़ाई में तो वह मुझे हीं लगा समझाने। कहने लगा उसमें कहीं कोई कमी नहीं है। कमी है तो आपकी अपेक्षाओं में। उसका बेटा नहीं है न। देखऊंगा जब वह अपने बेटे से अपेक्षा नहीं रखेगा। उसका अपना बेटा होता तो इस तरह वह मूफ्त सलाह नहीं दे देता। दूसरों का उपदेश देना आसान है। जब अपने पर बात आती है तो नानी याद आ जाती है।

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