शुक्रवार, 17 जून 2011

क्या अन्ना तानाशाह हैं ?


बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से राजनीतिक दल पूरी तरह आतंकित है। देश का कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदार नहीं है वरना इसके खिलाफ अबतक कोई प्रभावकारी कानून बन गया होता। राजनेताओं के हाल के दिनों में आए बयानों से जाहिर होता है कि वह पूरी तरह से घबड़ा गए है। कारण की केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों द्वारा जिस तरह अन्ना हजारे को तानाशाह एवं रामदेवजी को साम्प्रदायिक घोषित किया जस रहा है। उससे साबित होता है कि सरकार की मंशा मूल मुद्द सेे लोगों का ध्यान हटाने की है।
अगर सरकार यह सोंचती है कि ऐसा करके वह लोगों का ध्यान मूल मुद्दों से भटका देगी तो यह उसकी भूल है। क्योंकि जन आंदोलनों को ज्यादा दिन तक दबाया नहीं जा सकता है। जनआंदोलन अपनी परिणति तक अवश्य पहुंचते हंै। चाहे इसके बीच में कितने हीं पड़ाव क्यों न आए।
अगर सरकार यह सोंचती है कि संसद की सर्वोच्चता की बात करके भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की धार को कमजोर कर देगीे तो यह उसकी भूल है। कारण की जनता इस आधार पर नेताओं को मनवाकिफ करने की छूट नहीं दे सकती है। दूसरी बात संसद की गरिमा को किसी ने सबसे ज्यादा धूमिल की है तो वह स्वयं राजनेता हैं । चाहे वह संसद में अशोभनीय मुद्रा में आरोप-प्रत्यारोप हो या भ्रष्टाचार में उनकी संलिप्तता।
ऐसा नहीं कि देश का हर राजनेता भ्रष्ट है लेकिन ईमानदार नेताओं की संख्या बहुत कम है। यह भी हकीकत है कि सरकार स्वेच्छा से भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून नहीं बनायेगी। क्योंकि शायद हीं कोई नेता चाहेगा कि उसके अधिकार एवं प्रभाव क्षेत्र में कमी हो। ऐसा नहीं राजनेता भ्रष्टाचार की गंभीरता से अनभिज्ञ हैं । देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसकी गंभीरता को स्वीकारते हुए कहा था कि सरकार द्वारा जारी एक रूपया में से 15 पैसा हीं जनता तक पहुंचता है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज देश के किसी दल के पास इसके विरूद्ध प्रभावकारी कानून बनाने के पहल करने की इच्छा शक्ति नहीं है।
अच्छा तो यह होता कि सरकार एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ने वालों के बीच कोई सम्मानजनक समझौता हो जाता। लेकिन ऐसा होता प्रतित नहीं हो रहा है।यह कहना अभी जल्दीबाजी होगी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन जन आंदोलन बन चुका है। लेकिन यह हकीकत है कि भ्रष्टाचार से जनमानस त्रस्त है। जरूरत है तो लोगों को शिक्षित करने की।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वालों को यह ध्यान रखना होगा कि सत्याग्रह के मूल सिद्धान्तों का वे जितना पालन करेंगे उतना हीं आंदोलन की सफल होने की संभावना अधिक होगी। सत्याग्रह जितना शादगीपूर्ण एवं शुद्ध आत्मा से होगा वह उतनी हीं प्रभावकारी होगी। निश्चित तौर पर अनशन स्थल पर जरूरी नागरिक सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए लेकिन अनशन स्थल इतना भी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित न हो कि सत्याग्रह स्थल कम पांच सितारा होटल ज्यादा लगे। उन्हें यह भी समझने की आवश्यकता हैै कि राजनीतिक दलों के सहभागिता से उनके आंदोलन की धार कमजोर होगी। कारण कि सरकार को इसे दबाने का नया रास्ता मिल जाएगा। अगर सत्याग्रह के मूल सिद्धान्तों का अक्षरशः पालन किया जाएगा जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था तो निश्चित तौर पर वह राजसत्ता को हिला देगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें