अगर विश्व राजनीति में विकिलीक्स ने भूचाल ला दिया है तो भारत में भी दिग्गीलीक्स ने कमाल कर दिया है। नित नए खुलासे और सलाह के लिए लोग दिग्गीलीक्स डाॅटकाॅम पर जाना नहीं भूलते। आप कहेंगे कि मैं ये क्या पहेली बुझा रहा हूं। तो लो भाई मैं असली बात पर आ रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं अपने दिग्गविजय सिंह जी की। भले हीं दिग्गीदादा कोई बुरा कहता हो लेकिन मेरे विचार में वे एक संवेदनशाील व्यक्ति हैं। उन्हें दूसरों का दुःख देखा नहीं जाता। जो कोई दुखी दिखा उसपर सहानभूति दिखा देते हैं। चाहे ओसामा को ओसामाजी कहना हो या अन्ना को अनशन न करने की सलाह देेना हो। उनका ताजातरीन खुलासा यह है कि अगर अन्ना ने अनशन किया तो उनका हश्र बाबा जैसा होगा। इसके पहले उन्होंने अन्ना को सलाह दी थी कि अन्ना की सेहत के लिए अनशन ठीक नहीं है। हालांकि उस समय कुछ लोगों को यह बड़ा अजीब लगा था लेकिन मुझे यह बड़ा सजीव लगा। क्योंकि मैं भी दिग्गीदादा की तरह अन्ना का हितैषी हूं। जो लोग अन्ना को प्रोत्साहित कर रहे हैं वे अन्ना को बाबा रामदेव और निगमानंद बनाना चाहते हैं। आखिर अन्ना को भी बाबा रामदेव एव निगमानंद का हश्र का ख्याल क्यों नहीं आ रहा है? क्यों अन्ना सरकार के कभी नरम एवं कभी गरम रूख को देखकर आने वाले तूफान को नहीं भांप रहे हैं। दूसरी बात देश में दिग्गीदादा के सिवा दूसरे को अन्ना की सेहत का क्यों ख्याल नहीं आया? आखिर उनकी उम्र का ख्याल तो लोगों को करनी हीं चाहिए। अन्ना के अनशन करने से नहीं रोकने से प्रतीत होता है कि हमारे समाज में बड़े-बूढ़ों के प्रति सम्मान कम हो रहा है। माना कि अन्ना जिद्द कर रहें हैं। लेकिन उनको मनाया भी तो जा सक सकता है। क्या बूढ़ापे में बाल एवं वृद्व में कोई अंतर रह जाता है। क्या बच्चे जिदद् करने पर मान नहीं जाते। अब सरकार और अन्ना दोनों हीं जिद्द करेंगे तो बात कैसे बात बनेगी। दिग्गीदादा से भला कौन बेहतर जानता है कि सरकार अन्ना के मामले में भी जिदद् करेगी। इसलिए एडवान्स में उनके सेहत को लेकर चिन्तित हैं। उन जैसे संवेदनशाील लोगों के अभाव के चलते देश में बड़े-बूढ़े आंदोलन की राह पकड़ लेते हैं। और समाज उनकी सेहत एवं उम्र का ख्याल किए वगैर प्रोत्साहित करता है।
भला अनशन स्थल पर लाखों की भीड़ अन्ना को गुमराह करने के लिए हीं न जुट रही है। आप कहेंगे की जनता अन्ना के व्यक्तित्व से प्रभावित ये लोग भ्रष्टाचार के विरूद्व एकजुट हुए हैं। भईया इतना भी व्यक्तित्व से प्रभावित मत हो कि अपनी सेहत का ख्याल न रहे। क्योंकि जान है तो जहान है।
आप कह सकते हैं कि अन्ना देश की सेहत के लिए अपनी सेहत का ख्याल नहीं कर रहे हैं। यह भी कोई बात हुई। क्या भगवत् भजन के समय में भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार भजना ठीक है ? क्या अन्ना माया के वशीभूत नहीं हैं? क्या अन्ना यह दोहा नहीं सुने हैं राम-नाम की लूट है लूट सके तो लूट वरना अंत समय पक्षताएगा जब प्राण जाएंगे छूट। अपना काम दिग्गीदादा की तरह समझाना है अगर नहीं मानेगे तो खुद सबक सिख जाएंगे। जैसा कि निगमानंदजी और बाबा रामदेवजी सीख गए। वैसे मैं अपनी बात बता दूं मैं हमेशा विजेता के पक्ष में रहा हूं। जिसकी बात बनती नजर आएगी उसी की तरह हो जाऊंगा। मतलब अन्ना का जलवा रहा तो अन्ना की और अगर सरकार ने डंडा फटकारा तो सरकार की ओर क्योंकि भैया मुझे डंडा नहीं खाना है। मुझे डंडे से बड़ा डर लगता है।
बहुत सही कहा सर आपने....... दिग्गी लीक्स की महिमा ...मुझे तो कभी कभी संदेह होता है .की जिस तरह वे बयान बदलते हैं क्या उन्हें याद रहता है की उन्होंने कल क्या कहा था....
जवाब देंहटाएंबडे दिनों बाद अच्छा व्यंग्य पढ़ा....जो हसाए और सोचने पर विवश भी कर दे ...शुभकामनाये