शनिवार, 15 अक्तूबर 2011
अपुन अमेरिका को महाशक्ति नहीं मानेगा
दिल्ली बम बिस्फोट के बाद काफी हो-हल्ला किया गया। मानो और विस्फोटों को सहने की हमारी क्षमता जवाब दे गयी हो। मानो राष्ट् पर बहुत बड़ा संकट आ गया हो। ऐसी हीं बाते विदेषियों में हमारी छवि को खराब करती है। जबकि ऐसे समय में संदेष यह दिया जाना चाहिए था कि इससे बड़े विस्फोटों को सहने में हम समर्थ। इससे बड़े विस्फोटों को सहने को हम तैयार हैं। विस्फोट के बाद यह टीवी पर बहस का मुख्य मुददा हो गया। चाय-पान की दुकानों पर बहस का मुख्य विड्ढय था। कुछ लोगों की नजर में एक साजिष के तहत इसे बहस का मुद्दा बनाया गया। नही तो यह बहस का मुददा था हीं नहीं जी। बम विस्फोट तो दुनिया भर में होता है। पचास-सौ लोग तो रोज ऐसे विस्फोट में मरते हैं। इससे इतना आतंकित होनेवाली क्या बात है? बम बिस्फोट को बहस मुददा बनाया जा रहा है उनलोगों द्वारा जिनके दिन की शुरूआत हीं बुद्वि बिलास द्वारा होती है। कहा यह जा रहा कि अन्ना के आंदोलन के समय से इस वर्ग की कुम्भकरणी निद्रा टूट चुकी है। स्वतंत्रता के बाद इस वर्ग ने लंबी छुट्टी ले ली थी। यह वर्ग रोटी कपडा मकान की चिंता से मुक्त है। इसलिए खाली मन में ऐसे विचार तो चलेगा हीं न। यह वही वर्ग है जो टीवी पर जमकर बहस करता है। अखबारों में लेख लिखता है। सेमिनारों में जमकर भड़ास निकालता है। और चुनावों में सबसे कम मतदान करके लोकतंत्र में अपनी गहरी आस्था भी व्यक्त करता है। इस वर्ग के लिए चुनावों में सक्रिय भाग लेना संकट मोल लेने जैसा है। वैसे अगर इन्हें नेता बनने का मौका दिया जाए तो इन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा। यह वर्ग अपनी निजता का ध्यान तो रखता हीं है दूसरे की निजता का भी ख्याल रखता है। यानी पड़ोसी के भूखा सोने या भूखा मरने पर उसकी कोई खोज खबर नहीं लेता। क्योंकि उसकी मदद कर देने से उसकी प्राइवेसी समाप्त हो जाएगी। वैसे हमारे राजनेताओं का परफॉरमेंस एकदम बेजोड़ रहा है। वह लोगों की आकंक्षाओं पर शतप्रतिशत खरे उतरे हैं। यहीं कारण है कि हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह मानने लगा है कि कोई नृप होय हमें का हानी। और लोकतंत्र के इस महापर्व के प्रति उनके मन में उदासीनता झलकने लगी है। पुलिस का कड़ा कदम नहीं उठाने के पीछे अपना हीं तर्क है। उसका कहना है कि नेता जब कठोर कदम उठाने से हिचक रहे हैं तो हम सबसे तेज बनके क्या करेंगे। आखिर हमारी लगाम तो उन्हीं के हाथों में रहती है। लोगों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम नहीं उठाने के चलते हमारी छवि एक नरम राष्ट की बन गई है। ऐसा तर्क उन्हीं लोगों द्वारा दिया जा रहा है जो क्षमा के महत्व को नहीं जानते। मारने वाले से बचाने वाला महान होता है इसलिए हम अफजल गुरू को बचा रहे हैं।। क्षमा करके हम बड़प्पन का परिचय दे रहे हैं। करोड़ो की राषि उसपर खर्च करके हम अपने देष की अतिथिदेवो के परंपरा को मजबूत कर रहे हैं। हमारी संस्कृति में कष्ट सहने को तप कहा गया है। हमें नरम बताने वाले यह नहीं जानते कि कठोर कदम नही उठाने का मुख्य कारण यह है कि हम तप कर रहे हैं। इतने विस्फोंटों के आघात सहने के बाद भी क्या लोगों का संदेह है कि हम कमजोर हैं। हमारे तप यानी विस्फोटों के आघात सहने के कारण हमारी प्रषंसा होनी चाहिए। कष्टों का चुपचाप सहन करना तो हमें मजबूत साबित करता है। प्रतिउत्तर तो कमजोर देता है।। जैसा कि अमेरिका ने दिया था। अमेरिका को भले कोई महाषक्ति मानता हो लेकिन अपुन की नजर में वह एक कमजोर राष्ट् है। पेंटागन पर आक्रमण के बाद तो वह इतना डर गया कि उसे हर जगह ओसामा हीं ओसामा नजर आने लगा। और अन्ततः ओसामा को ठिकाने लगाकर हीं माना। पाकिस्तान को दो टूक सुना दिया कि दुष्मनी एवं दोस्ती में से कोई एक चुन लो। सड़क छाप व्यक्ति को भी आप तमाचा मारियेगा तो बदले में तमाचा मारेगा। जबकि बड़ा व्यक्ति अपना दूसरा गाल आगे बढ़ा देगा। अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सियां हमारे मंत्रियो तक के कपड़े उतरवा लेती हैं। क्या यहीं उनका षिष्टाचार है। वे किस बात के सभ्य हैं। अरे सभ्य तो हम हैं जो संसद पर आक्रमण करने वाले तक को भी माफ कर देते हैं। मानवतादवाद के क्षेत्र में भी हमारा कोई षानी नहीं है। हमें क्या कोई मानवाअधिकार का पाठ पढ़ाएगा। सामान्यजन क्या हम आतंकवादियों के मानवाअधिकार भी रक्षा करते हें। देखना हो तो विभिन्न घोटाले के आरोप में जेल जाने वाले कैदियों का देख लो। कैसे वे जेलों में वे सारी सुख-सुविधाओं का भोग कर रहे हैं। गांधी के इस देष में कुछ लोग हिंसा को बढ़ावा देना चाहते हैं। यहीं कारण है कि वे आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कारवाई की मांग करते है। जिसका हमें हर हाल में विरोध करना चाहिए। हमें बताना होगा कि हम अहिंसा छोड़ने वाले नही हैं। हम उनके हृदय परिवर्तन तक इंतजार करेंगे। गांधी भले अंतिम विकल्प के रूप में हिंसा की अनुमती देते हों लेकिन हम नहीं देने वाले हैं जी।
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भाई कुछ बड़े विस्फोटों की जरुरत है |
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई ||
आँखें वो खोलने वाली पोस्ट
जवाब देंहटाएंमारने वाले से बचाने वाला महान होता है इसलिए हम अफजल गुरू को बचा रहे हैं।। क्षमा करके हम बड़प्पन का परिचय दे रहे हैं। करोड़ो की राषि उसपर खर्च करके हम अपने देष की अतिथिदेवो के परंपरा को मजबूत कर रहे हैं।
सटीक विष्लेषण आभार कृपया
टिपप््णी से माडरेषन हटायें अटपटा लगता हैं
कृपया मुझे भी आर्शिवाद दे ! आभारी रहूँगा !!
प्रेरक पोस्ट...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
भाई गोपाल जी बहुत ही उम्दा पोस्ट बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी और सुन्दर है आपकी जानकारी लोगों को जरुर जागृत करेगी बधाई हो आपको
जवाब देंहटाएंकृपया शब्द पुष्टिकरण हटा दे तो और भी अच्छा होता क्योंकि कई बार टिप्पणीकर्ताओं को दिक्कत आती है तो वे टिप्पणी चाह कर भी नहीं करते है
बहुत प्रेरक उम्दा पोस्ट ..
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुति ...गोपाल जी
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती हुई पोस्ट
जवाब देंहटाएंअब हमारा न मानना बेमानी है। स्वयं अमरीकी ही वालस्ट्रीट पर कब्जे के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुतीकरण के माध्यम से खूब झकझोरा है लोगों को।
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