बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

स्वर्णीम युग लौट रहा है

जबसे मैं स्पेषल एयरक्राफट में सैंडिल की हवाई यात्रा की बात सूना हूं। मानो मेरे उम्मीदों को पंख लग गए हैं। मन सुनहरे ख्वाब बुनने लगा है। अब मुझे भी लगने लगा हे कि मेरे भी ख्वाब एक दिन पूरे होगें। कुछ लोगों को सैंडि़ल के हवाई यात्रा पर आपत्ती हो सकती है। लेकिन मुझे नहीं। क्योंकि मुझमें इसमें संभावना दिख रही है। लाखों के ख्वाबों को पूरा होने के। इसके सकारात्मक पक्ष को देखने वाले इस तरह सोंचते हैं। स्पेशल एयर का्रफ्ट में सैंडिल के सफर का अर्थ है कि देष में इतनी खुषहाली आ गई है कि जड़ जगत तक को हवाई यात्रा का मौका मिल रहा है। यानी देष सचमुच तरक्की कर रहा है। इंडिया सायनिंग कर रहा है। गरीब- अमीर की खाई मिट चुकी है। भारत पुरी तरह इंडिया में बदल चुका है। गरीबों की बस्तियां आबाद हो चुकी है। बस कुछ लोग षौकिया भूखे पेट सो रहे हैं। खुली आसमान में सड़कों पर सोकर डायटींग कर रहे है । जब मैं आकाष में उड़ते हवाई जहाज को देखता हूं तो सोंचता हूं कब होंगे ख्वाब मेरे पूरे। फिर दिल के किसी कोने से आवाज आती है कि तू ट्रेन के स्पेषल क्लास में तो यात्रा कर नहीं सकता। फिर हवाई जहाज में उड़ने का ख्वाब देखना क्या ठीक होगा। हवाई जहाज में यात्रा करने वाली सैंडिल ने भी मुझे चेताया औकात में रहकर ख्वाब देखो। बीवी की पूरी डिमांड तो तुम पूरी कर नहीं सकते और चले हो। हवाई जहाज पर उड़ने का ख्वाब देखने। सच बताऊ मेरी स्पेषल क्या जनरल में भी हवाई यात्रा करने की औकात नहीं। ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में मजबूरन में यात्रा करता हूं। अगर तृतीय क्लास होता वहीं सीट पाने का मेरा प्रयास होता। सैंडिल की स्पेषल जहाज में यात्रा के बाद सैंडिल और जूते में जुबानी जंग भी षुरू हो गई है। जूते कह रहे हैं अभी उनका वर्चस्व बना हुआ। वहीं सैंडिल कह रही है कि ख्वाब देखना छोड़ो मैं स्पेषल विमान में यात्रा करके आई हूं। मैं हवाई जहाज में आ जा रही हूं। मुझे बुलाने स्पेषल विमान में भेंजा जा रहा है। भाई मैं तो भाग्यवाद में विष्वास करने वाला ठहरा। मेरी सैंडि़ल के भाग्य पर जलन नहीं हुआ बल्कि मैं अपने भाग्य का कोस रहा हूं। और अपने भाग्योदय के लिए पूजा-पाठ कर रहा हूं। मैं स्पेषल एयर का्रफ्ट में सैंडिल की यात्रा को देष में स्वर्ण युग के लौटने के रूप में भी देख रहा हूं। यानी एक बार फिर देष सोने की चिडि़या कहलाएगा। और एक बार फिर राजाओं महाराजाओं का युग आयेगा। और वे अपने प्रजाओं पर उसी प्रकार स्नेह बरसायेंगे। जैसे कि वे पहले जमाने बरसाते थे। वैसे सैडिल को हवाई यात्रा का सुख देने वाला पर्याप्त दयालु होगा। जड़-जगत के प्रति उसका प्रेम देखते हीं बनता है। मुझे विष्वास है कि एक दिन मुझपर भी उसको दया आएगी। एक दिन मुझपर भी उसका स्नेह बरसेगा। उत्तर प्र्रदेष चुनाव के दौरान मैं विषेड्ढ रूप से आषान्वित हूं।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों को के बाद इतनी सुन्दर प्रस्तुति पढ़ने को मिली. इसे बनाये रखियेगा

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर .....विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्छा लगा| क्या खूब लिखते हैं !! आप मेरे पोस्ट पे आकर मेरा हौसला बढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ! आप को बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक दशहरा पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाएं एवं बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. शायद भविष्य कुछ ऐसा होगा -
    "हम से तो अच्छी तेरी ... गोरी, जो ....."
    अच्छा व्यंग्य

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  6. sundar vyangya.

    achchi prastuti ke liye aabhar.

    vijayadashmi ki haardik shubhkamanayen.

    mere blog par aap aaye,iske liye bhi aabhari hun.

    जवाब देंहटाएं
  7. काश मै सेंडिल ही होता । जोरदार व्यंग ।

    जवाब देंहटाएं
  8. अत्यधिक रोचक लेख...व्यंग का तड़का क्या खूब लगाया है.,..वाह

    नीरज

    जवाब देंहटाएं