शनिवार, 3 सितंबर 2011

ये है दिल्ली मेरी जान



मैं गीता की षपथ लेकर कहता हूं कि जो कहंूगा सच कहूंगा सच के सिवा कुछ भी नहीं कहूंगा। मैं भी राजनेताओं की तरह सत्यनिष्ठ हूं। और वे सत्य का जितना पालन करते हैं। मैं भी सत्य का उतना हीं पालन करता हूं। इसमें एक प्रतिषत भी संदेह की गुंजाईष नहीं है। जिसको हो सीबीआई जांच करवा ले या कमीषन बैठवा ले। मैं रोकूंगा नहीं। राजा हरिष्चन्द्र के बाद सत्य का पुजारी मैं हीं पैदा हुआ हूं। यकीन न हो तो फेसबुक या टृवीटर पर जाकर मेरी विष्वसनीयता जांच ले। उसके बाद भी अगर संदेह कायम हो तो आंदोलन की राह अपना लें। लोकतंत्र है मै किसी को रोकने वाला कौन होता हूं। मैं सरकार की तरह किसी को अनषन करने से नहीं रोक सकता हूं। यकीन मानीए रामदेवजी की कहानी भी आप पर नहीं दोहरायी जाएगी। इतनी भूमिका काफी है। अब मैं अपने विड्ढय पर आता हूं। हर बार की तरह मैं आपको नयी कहानी सुुनाऊंगा । आज बारी है दिल्ली की।। चूंकी मेरी रोजी-रोटी दिल्ली से हीं चलती है। इसलिए मैं दिल्ली का हीं गुण गाऊंगा। नमक हरामी नहीं करूंगा। यकीन मानीए जिसका मैं खाता हूं उसका गुण गाता हूं। कुछ लोगों को मेरे इस विषेड्ढ गुण पर गहरी आपत्ति है। उनका कहना है कि मैं जहां भी जाता हूं गाने बजाने लगता हूं। आपहीं बताइए आज के युग में कौन किसका गुण गाता है। तो गाना-बजाना मेरी बुराई हुई की विषेड्ढता। कुछ लोगों का कहना है कि मुझे अपना मुंह मिठठू बनने की आदत है। इसपर मेरा कहना है कि आप मेरी प्रषंसा करने का ठेका लें तो मैं अपना गुण नहीं गाऊंगा। अगर ठेका नहीं ले सकते तो कृपया मुझे सलाह न दें। आपसे मैं पूछता हूं कि आज के युग में आप किसी से प्रषंसा की आषा कर सकते हैं। जमाना सेल्फ प्रमोषन का है। अगर आप अपनी प्रषंसा खुद नहीं गाऐंगे तो प्रषंसा सुनने के लिए तरस जाएंगे। लेकिन लोगों को कौन समझाये। लेकिन आप लोगों की बातों में न आएं और गाने बजाने का गुण विकसित करें। आने वाले दिनों में इस गुण के चलते आपको भारी रकम मिलेगी। लोग पैसे देकर आपसे अपने गुणों का गुणगान करायेंगे। जैसा कि पहले के जमाने राजा-महाराजा करवाते थे।
एक बार फिर मैं विड्ढयांतर हो गया। हम बात कर रहे थे दिल्ली के बारे में अपने अनुभव की।
तो अगर आप आप पहली बार दिल्ली आ रहे हैं तो सावधान हो जाइए। क्योंकि खांटी दिल्लीवालों की प्यार भरी बातें आपको गाली जैसी लग सकती है। जबकी हकीकत मैं वे आपसे प्यार कर रहे होते हैं। हालांकि ऐसा अनुभव आपको ज्ञान की नगरी वाराणसी में भी हो सकता है। जहां दोस्त अपने प्यार का इजहार गाली-गल्लौज से करते मिल जाएंगे। हालांकि मेरे जैसे इज्जतदार पुरूड्ढ के साथ ऐसा होने पर आपको बुरा लग सकता है। लेकिन आपके साथ ऐसा होने पर मुझे बुरा नहीं लगेगा। क्योंकि जब मेरे साथ ऐसा हो सकता है तो आप किस खेत की मूली ठहरे। दिल्ली के बारे में मेरा खास अनुभव है कि पार्क हो या मेट्रो सब जगह आप स्वचालित हो जाते हैं। अब मैं दिल्ली मैंट्ो की कथा सुनाता हूं जिस पर हम सबों को गर्व है। दिल्ली मेट्रो के बारे में मै बस इतना हीं कहूंगा कि बस आप लाइन में लग जाइए सब काम अपने आप हो जाएगा। अपने आप आप ट्रेन में पहुंच जाएंगे। अपने आप स्टेषन पर उतर जाएंगे। सबकुछ स्वचालित ढंग से। थोड़ी भी मेहनत नहीं लगेगी। हां आपमें पायलट बनने कि योग्यता होनी चाहिए यानी षत प्रतिषत स्वस्थ्य होना। कमजोर लोगों की गंुजाइष यहां नहीं है। अब बात करते हैं दिल्ली की बसों के बारे में । दिल्ली की बसों के बारे में मेरा कहना है कि दिल्ली की बसें आपको आपकी वीरता साबित करने की मौंका देती है। बसों में इनती भीड़ आपको मिलेगी की आपको आगे बढ़ने के लिए वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो गाना पड़ेगा। जहां तक सीट पाने का सवाल है तो मेरा आपको सुझाव है कि आप विधायक की सीट पाने का प्रयास करें। दिल्ली के बसों में सीट पाना इतना आसान नहीं। वैसे दिल्ली की बसों में यात्रा करके आप तंदरूस्त हीं होंगे। दिल्ली के बारे में मैं एक बात और कहूंगा कि जिसकी अपनी पत्नी के साथ अनबन हो वो आकर दिल्ली में रहना षुरू कर दे। अगर महाभारत की जगह रासलीला न होने लगे तो मूंछ मोड़वा दूंगा। कारण की आप बसों में यात्रा करके इतना थक गये होंगे कि पत्नी गाली क्या अगर ढोल भी बजायेगी आप नहीं जगने वाले हैं। हां जो कार की सवारी करेंगें उनके घर में पति पत्नी में झगड़ा होगा क्योंकि वे लोग स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ तो श्रम करेंगे न।
दिल्ली के बारे में मेरा स्पेषल अनुभव यह भी है कि आपको आतंकवादी आक्रमण से ज्यादा डायबीटीज के आक्रमण का भय सताएगा। इसके अलावा आपको चिकनगुनिया का भय सतायेगा मलेरिया का भय सतायेगा। आप सोंच रहें हैं साफ- सुथरा जगह पर मलेरिया और चिकनगुनिया के वायरस क्या करेंगे तो उत्तर है कि वे थोड़ा सभ्य हो गये हैं और सभ्य लोगों को की तरह वो भी बड़ी एवं साफ-सुथरी बस्तियों में रहना पसंद करने लगे हैं। दूसरी बात जहां गांव में समय काटे कटता नहीं वहीं यहां पेट पूजा के लिए भी समय बचता नहीं है। अब बात करते हैं दिल्ली पुलिस की। गांव में जहां पुलिस अपराध के वक्त सोयी रहती है। वहीं दिल्ली में पुलिस जागकर भी खोयी रहती है। अपराध के बारे मेरा मानना है कि अपराधी या तो हिन्दी फिल्मों से अपराध के तरीके सीखते हैं या फिर फिल्मों वाले दिल्ली से अपराध के कांसेप्ट लेते हैं। इसके अलावा दिल्ली में मैने लोगों को पषुओं के दरबे में रहते देखा। प्रकृति की गोद में सड़कों पर सोते देखा।
वैसे दिल्ली के बारे में मेरी रिर्पोट गलत भी हो सकती है। क्योंकि मुझे दृष्टि दोष भी हो सकता है। वैसे भी इन दिनों मुझे पीलिया की षिकायत है। कुछ लोगों की नजर में सावन के अधें वाली कहावत मुझपर ठीक बैठती है। फैसला आपको करना है मैं कोई मनोवैज्ञानिक थोड़े हूं। मैं कोई इतना छोटा आदमी भी नहीं कि अपना आकलन स्वयं करूं। मुझपर रिसर्च तो कोई दूसरा हीं न करेगा ।

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