शुक्रवार, 2 सितंबर 2011
चीन हमसे कितना प्यार करता है
पड़ोसी हो तो चीन जैसा नही तो न हो। कारण कि चीन अपने परायेपन का भेद मिटा चुका है। और वसुधैव कुटुम्बकम् हीं उसका आदर्श वाक्य हो गया है। यहीं कारण है कि कभी वह अरूणाचल को अपना भाग कहता है तो कभी किसी और देश के भूभाग को। पर संकीर्ण राष्ट्रवाद के चलते लोग उसके हर कदम का गलत अर्थ निकाल लेते हैं। और उसे आक्रमणकारी आदि क्या-क्या समझ लेते हैं। आखिर विष्व में अनेक राष्ट्र की क्या आवष्यकता है। क्या सभी राष्ट्र या खासकर एषिया के राष्ट्र चीनी छतरी के नीचे नहीं आ सकते। और वह भी तब जब वह गा रहा हो मेरी छतरी के नीचे आ जा। क्या अनेक राष्ट्रों का सिद्वान्त विष्व बंधुत्व में बाधक नहीं है।
ऐसा नहीं कि चीन की नेक नीयति पर हर कोई षक करता हो। उसकी भावनाओं को समझने वाले मुझ जैसा लोग भी इस धरती पर हैंैं। और चीन की भावनाओं को समझने वाले लोगों के बल पर हीं देष में हिन्द-चीन भाई भाई का स्पिरिट समय-समय ऊफान मारता है। लेकिन इस स्पिरिट को कुछ भाईजी लोग समाप्त करने पर तुले हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद यह भाव मौजूद है। चीन पहले भी हिन्द-चीन भाई-भाई के विष्वास पर खरे उतरा था और भविष्य में भी खरा उतरेगा ऐसा मेरा विष्वास है। इसमें एक प्रतिषित भी संषय करने की गुंजाइष नहीं है।
लेकिन कुछ भाईजी लोग मेरे विष्वास का माखौल उड़ाने में भी पिछे नहीं रहते हैं। और मुझे कल्पना लोक में जीने वाले प्राणी आदि उपमाओं से विभूषित करते हैं। लेकिन उनका यह व्यवहार मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगता। कारण कि वो अपना क्या जो इस प्रकार का अपनापन न दिखाये। जब लोग मेरे विष्वास पर हसते हैं तो मुझे उनपर दया आती है कारण कि वे मेरे जैसा ज्ञानी थोड़े हैं।
भारत ने विष्वास के महत्व को षुरू से समझ लिया था। उसने यह जान लिया था विष्वास के द्वारा असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। सफलता के लिए आत्मविष्वास बहुत जरूरी है। विष्वास के द्वारा हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। दूसरी तरफ हर किसी पर अविष्वास करना भी एक बिमारी है। खासकर चीन जैसे पड़ोसी पर। सबपर अविष्वास करना व्यवहारिकता के दृष्टिकोण से भी उचित नहीं कहा जा सकता। क्योंकि फिर लोक व्यवहार कैसे चलेगा।
अगर आपको लगता है कि चीन अरूणाचल में घुसर रहा है तो यह आपकी भूल है। मान लीजिए घुसर हीं रहा है तो अगर अपना अपनों पर हक नहीं दिखायेगा तो भला कौन दिखायेगा। दूसरी बात चीनी षासक अरूणाचल को चीन का हिस्सा इसलिए साबित करना चाहते हैं क्योंकि उनको ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है यानी वह संपूर्ण पृथ्वी को हीं अपना परिवार मानने लगे हंै। और देषों को अभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है। क्या भारत चीनी सैनिकों के अरूणाचल में दिखाये गये सद्भाव का विरोधकर संकीर्णता का परिचय नहीं दे रहा है। चीन इस तरह का सद्भाव कई देषों के साथ दिखाता है। या दिखाने की कोषिष करता है। लेकिन आष्चर्य है कि सभी देष उसके सद्भाव को बैर भाव की तरह लेते हैं। जहांतक ब्रम्हपुत्र नदी पर बांध बनाने का सवाल है तो सरकार को चीन के इस कदम का स्वागत करना चाहिए। क्योंकि सरकार क्या चाहती है कि लोग ब्रम्हपुत्र नदी की धारा में बह जाएं। आखिर जो काम सरकार को करना चाहिए। उसे चीन की सरकार ने मुफ्त कर दिया तो इसमें रंज होने की क्या जरूरत है। आखिर करोड़ो की फसल ब्रम्हपुत्र नदी की बाढ़ में बरबाद हो जाती है। चीन ने भारत के हित के लिए विष पी लिया है। और लोग हैं कि समझते हीं नहीं।
पुत्र पिता की संपत्ति को अपनापन के चलते हीं न अपना समझता है। चीन अगर भारत की संपत्ति को अपना समझ रहा है तो निष्चत तौर पर भारत के प्रति उसका अपनापन ज्यादा है। वरना ऐसे हीं किसी की संपत्ति कोई अपना थोड़े समझने लगता है। वह न्यूयार्क और मास्को को अपना थोड़े कहता है। आष्यकता है मेरे जैसे समझदार लोगों की जो चीन के इस भाव को समझ सके।
मेरा मानना है कि भारत को अपनी सुरक्षा जिम्मेदारी चीन को सौंप देना चाहिये। क्योंकि चीन जैसा आपको हितैषी पड़ोसी नहीं मिलेगा। अगर चीन हथियारों का जखीरा तैयार कर रहा है तो वह भारत की सुरक्षा जरूरतों को घ्यान में रखकर हीं ऐसा कर रहा है। वरना वह इतने बड़े पैमाने पर हथियार बनाकर क्या करेगा। आखिर पड़ोसी-पड़ोसी के काम नहीं आयेगा तो कौन आयेगा। पहले अमेरिका अन्य देषों के सुरक्षा जरूरतों का ध्यान रखता था और पूरे विष्व के लिए हथियार बनाता था। अब चीन बनाना चाह रहा है।
वैसे तो मुझे चीन की नेक नीयति में कोई संदेह नहीं है। लेकिन जिसको संदेह है और चीनी आक्रमण का भय सता रहा हैै। वह हिन्द-चीन भाई-भाई मंत्र का जाप कर सकते है। कहते हैं मंत्रों में बड़ी ताकत है। भाव के साथ मंत्रों के जाप करने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। फिर चीन की क्या विसात है।
मेरा तो कहना है हिन्द-चीन भाई-भाई स्तोत्र का पाठ देषवासियों के लिए अनिवार्य कर देना चाहिये। इसका कारण यह है कि मंत्र विज्ञान के अनुसार मंत्रों का सामुहिक पाठ से चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न होता है। अगर हिन्द-चीन भाई-भाई का सामुहिक पाठ किया जाय तो उसकी ध्वनियां चीन तक पहुंच जायेगी और चीनी के सत्ताधीषों के मति को षांत कर देगी।
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भई तिवारी जी, आपके चाइना प्रेम को नमन.......वैसे हम भी कुछ कम चाइनीज़ प्रेमी नहीं हैं अपना तो खाने से लेकर लगाने तक सब कुछ चाइनीज़ हो चुका है......वे जो भी माल भेजते हैं.....हम लोग दिल से अपना लेते हैं.......बाकी आप चाइना की तरफदारी कर रहे हैं तो आपको बता दें कि वे लोग बोलते कुछ हैं करते कुछ.....वे अरुणांचल प्रदेश को कब से अपना बता रहे हैं, लेकिन अपनाया नहीं.........जबकि हमारे भाई लोग बीजिंग - शेंघाई को अपनाने वहाँ पहुँच चुके हैं......वहीँ घर - द्वार भी बसा चुके हैं.......अरे हमारा बस चले तो हम उनकी दीवार भी यहाँ तक खींच लायें....लेकिन वे पंच - फुटे ऐसा करने दें तब न........साले नाम लो तो चाऊँ - चाऊँ करने लगते हैं.......अब आप ही एक बार ज़रा जाके समझाइये अच्छी तरह........
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