मैं एक दिन फेसबुक पर चैटिंग कर रहा था। खुशनुमा माहौल था स्क्रीन पर एक मैडमजी का हो रहा दीदार था। पर हमदोनों के बीच एक अनचाहा सा दीवार था। मैंने हिम्मत कर के दीवार तोड़ दी। हैलो मैम कहकर कनेक्शन जोड़ दी। मैने कहा हैलो मैम इन दिनों क्या चल रहा है। उन्होने कहा कि इन दिनों भारत-पाक में वार चल रहा है। एक बार नहीं सौ बार चल रहा है। क्योंकि कवि सम्मेलन धुआंधार चल रहा है। मैंने का कहा कि यह तो किसी समाचारपत्र में नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब लोगों के पास दूरदृष्टि नहीं है। भविष्य जानने के लिए कवि होना पड़ेगा। जहां जैसा वहां वैसा गाना पड़ेगा ।
फिर उन्होंने बात को मोड़ा और शिकायत भरे लहजे में बोला। आप तो कभी मेरी कविता की तारीफ भी नहीं करते। मैंने लिख भेंजा सुन्दर रचना। उधर से जवाब आया अगली बार मत बकना। वरना मुश्किल पड़ जाएगा मेरे पति से बचना। मैने कहा क्या मै कुछ गलत कह दिया। उन्होंने कहा नहीं सिर्फ सही वक्त का चयन तूने नहीं किया। वैसे तेरा कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। अभी तुम्हारा मेरे पति से मार नहीं हुआ है। मैने कहा कि मैडमजी ये आप क्या कह रही हैं। क्यों नेकी करने पर ब्रम्हहत्या का पाप दे रहीं हैं।। मुझे क्या पता था कि आप मेरे साथ विश्वासघात कर देंगी। चैटिंग मेरे साथ करेंगी और साथ अपने पति का देंगी। वैसे भी मैने आपकी कविता की तारीफ की थी। आपकी नहीं। क्या आपके पति को आपकी तारीफ करना भी पसंद नहीं है?
उन्होंने कहा कि तुम इतना अपसेट क्यों हो। दरअसल तुम्हें मालूम नहीं रचना मेरा नाम है। मेरा नाम कोई प्यार से ले उन्हें पसंद नहीं है। ये उनका मेरे प्रति यह प्यार है।
वैसे तारीफ करके तुमने कोई अपराध थोड़े किया है। सुन्दर को सुन्दर नहीं कहोगे तो क्या कहोगे। मेरी सुन्दरता को देखकर बड़े-बड़े मेरी तारीफ करने से अपने आपको नहीं रोक पाते। मैने कहा कि मैडम- मैडम ये क्या बक रही हैं।
मैने पूछा कि अच्छा बताइए मुझे आपकी रचना की तारीफ करना था। अगर मैं सुन्दर रचना कहकर तारीफ नहीं करता तो भला किस तरह करता। तब उन्होंने मुझे बताया कि तुम मेरी कविताओं की इस प्रकार तारीफ कर सकते थे - आपकी श्रीगांर भरी रचनाओं को सुनकर मुझमें वीर रस का भाव जग गया। रही मेरी बात तो मुझे जो अच्छा लगता वह समझती।
वैसे सच बताऊं आपकी तारीफ करना मुझे बहुत अच्छा लगा। लेकिन आपहीं बताइए किसी के पति के सामने अगर आप उसकी पत्नी की तारीफ करेंगे तो क्या उसे अच्छा लगेगा।
फिर मैने संभलते हुए कहा कि मानलीजिए मैंने आपकी हीं तारीफ की है तो मैंने आपकी तारीफ हीं न की है कोई गाली तो नहीं दी है। उन्होंने कहा कि तुम्हारे बातों में दम है। पर इसे समझने वाले दुनिया में बहुत कम हैं। मैने कहा कि फिर अपने पति भैंसासुर से बचने का उपाय बताओ। अबकी बार वह खुशी से चहक उठीं और कहने लगीं कि तुम कोई भविष्यवक्ता तो नहीं। मैंने कहा नहीं-नहीं मैं एक सीधा-साधा इंसान हूं। मुझे फिर किसी मुसीबत में मत डालो। उन्होंने कहा दरअसल तुमने मेरा और मेरे पति का नाम एकदम सही बताया है। मैं भी उन्हें प्यार से भैंसासुर हीं कहती हूं। तुम्हें हम दोनों का नाम कैसे मालूम हुआ।
मेरा दिल नहीं माना और मैने फिर एक बार उनसे पूछा मैडमजी क्या आपको अब भी लग रहा है कि मैने आपकी हीं तारीफ की थी। उन्होंने कहा कि किसी की तारीफ करना क्या अपराध है क्या ? तुमने जीवन में पहली बार किसी की तारीफ किए थे क्या ? क्या तुम नहीं जानते सौन्दर्य ईश्वर का हीं रूप है। सुन्दरता अपने आप में एक गुण है। उनके इस प्रकार के तर्कों को सुनकर चुप रहना हीं बेहतर समझा। लेकिन कान पकड़ा चैटिंग ना बाबा ना।
फिर उन्होंने बात को मोड़ा और शिकायत भरे लहजे में बोला। आप तो कभी मेरी कविता की तारीफ भी नहीं करते। मैंने लिख भेंजा सुन्दर रचना। उधर से जवाब आया अगली बार मत बकना। वरना मुश्किल पड़ जाएगा मेरे पति से बचना। मैने कहा क्या मै कुछ गलत कह दिया। उन्होंने कहा नहीं सिर्फ सही वक्त का चयन तूने नहीं किया। वैसे तेरा कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। अभी तुम्हारा मेरे पति से मार नहीं हुआ है। मैने कहा कि मैडमजी ये आप क्या कह रही हैं। क्यों नेकी करने पर ब्रम्हहत्या का पाप दे रहीं हैं।। मुझे क्या पता था कि आप मेरे साथ विश्वासघात कर देंगी। चैटिंग मेरे साथ करेंगी और साथ अपने पति का देंगी। वैसे भी मैने आपकी कविता की तारीफ की थी। आपकी नहीं। क्या आपके पति को आपकी तारीफ करना भी पसंद नहीं है?
उन्होंने कहा कि तुम इतना अपसेट क्यों हो। दरअसल तुम्हें मालूम नहीं रचना मेरा नाम है। मेरा नाम कोई प्यार से ले उन्हें पसंद नहीं है। ये उनका मेरे प्रति यह प्यार है।
वैसे तारीफ करके तुमने कोई अपराध थोड़े किया है। सुन्दर को सुन्दर नहीं कहोगे तो क्या कहोगे। मेरी सुन्दरता को देखकर बड़े-बड़े मेरी तारीफ करने से अपने आपको नहीं रोक पाते। मैने कहा कि मैडम- मैडम ये क्या बक रही हैं।
मैने पूछा कि अच्छा बताइए मुझे आपकी रचना की तारीफ करना था। अगर मैं सुन्दर रचना कहकर तारीफ नहीं करता तो भला किस तरह करता। तब उन्होंने मुझे बताया कि तुम मेरी कविताओं की इस प्रकार तारीफ कर सकते थे - आपकी श्रीगांर भरी रचनाओं को सुनकर मुझमें वीर रस का भाव जग गया। रही मेरी बात तो मुझे जो अच्छा लगता वह समझती।
वैसे सच बताऊं आपकी तारीफ करना मुझे बहुत अच्छा लगा। लेकिन आपहीं बताइए किसी के पति के सामने अगर आप उसकी पत्नी की तारीफ करेंगे तो क्या उसे अच्छा लगेगा।
फिर मैने संभलते हुए कहा कि मानलीजिए मैंने आपकी हीं तारीफ की है तो मैंने आपकी तारीफ हीं न की है कोई गाली तो नहीं दी है। उन्होंने कहा कि तुम्हारे बातों में दम है। पर इसे समझने वाले दुनिया में बहुत कम हैं। मैने कहा कि फिर अपने पति भैंसासुर से बचने का उपाय बताओ। अबकी बार वह खुशी से चहक उठीं और कहने लगीं कि तुम कोई भविष्यवक्ता तो नहीं। मैंने कहा नहीं-नहीं मैं एक सीधा-साधा इंसान हूं। मुझे फिर किसी मुसीबत में मत डालो। उन्होंने कहा दरअसल तुमने मेरा और मेरे पति का नाम एकदम सही बताया है। मैं भी उन्हें प्यार से भैंसासुर हीं कहती हूं। तुम्हें हम दोनों का नाम कैसे मालूम हुआ।
मेरा दिल नहीं माना और मैने फिर एक बार उनसे पूछा मैडमजी क्या आपको अब भी लग रहा है कि मैने आपकी हीं तारीफ की थी। उन्होंने कहा कि किसी की तारीफ करना क्या अपराध है क्या ? तुमने जीवन में पहली बार किसी की तारीफ किए थे क्या ? क्या तुम नहीं जानते सौन्दर्य ईश्वर का हीं रूप है। सुन्दरता अपने आप में एक गुण है। उनके इस प्रकार के तर्कों को सुनकर चुप रहना हीं बेहतर समझा। लेकिन कान पकड़ा चैटिंग ना बाबा ना।
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