साहब क्यों गुर्राए
जब जी हुजूरी कम हो जाए
जब पड़ोसी उनसे आगे बढ़ जाए
जब वो बकवास पुराण सुनाएं
और कोई न उसपर ध्यान लगाए
या फिर कोई असहमति जताए
या फिर कोई विसंगती दिखाए
या फिर कोई न दरबार लगाए
या फिर ना जयजयकार लगाए
या फिर ना स्तुतिगान सुनाए
या झोला ढोने से कतराए
जब कोई रोनी सूरत नहीं बनाए
ज्ब कोई अपनी लाचारी नहीं सुनाए
जब कोई अपनी उपलब्धि गिनाए
जब कोई ना दूम हिलाए
जब कोई नहीं अपना दीन ईमान डोलाए
जब कोई अपना स्वाभीमान बचाए
या जब कोई कुत्ते पर उनके दोष लगाए
भौंकने पर उसके रोक लगाए
सुबह -शाम जब वे पार्क को जाएं
टहलता हुआ कोई उनसे आगे निकल जाए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें