गुरुवार, 26 मई 2011

जो अपने आका का परिक्रमा लगाएगा

राजनीति में
जो अपने आका का परिक्रमा लगाएगा
कभी नही तो कभी पूजा जाएगा
और जो अकडन दिखलाएगा
अवसर को गंवाएगा
फिर पीछे पछताएगा
हांथ मलता रह जाएगा
बाप-बाप चिलाएगा
बीबी से बेलन खाएगा
उसे सारी रात मनाएगा
पर पास फटकने न पाएगा
मेवा मिश्री खाने सं
वंचित हीं रह जाएगा
भईया राजनीति में थोड़ी सी जीहजूरी
फिर होगी मन की मुराद पुरी
तना पेड़ आंधी में जड़ से उखड़ जाता है
झुका हुआ बचकर निकल जाता है
सिद्वान्तों पर जो अकंड जाता है
उसका जनाजा निकल जाता है
सत्तासुख भोग नहीं पाता है।
दरदरकी ठोकर खाता है
जिलाबदर हो जाता है
जो पार्टी हाईकमान के चरणों में लोट जाता है
खुद का माईबाप बताता है
आगे-पीछे दूम हिलाता है
त्वमेव माता चपिता त्वमेव गाता है
वह अपना जीवन ऐष में बिताता है।
हर जगह कैष हीं पाता है

6 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीति पर चलने और बढने का सही मार्ग :)




    कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया!
    बर्ड वेरीफिकेशन लगा है कमेंट् देने के लिए!
    इसलिए पुनः कमेंट देना सम्भव नहीं होगा।
    मगर आपकी रचनाएँ पढ़लिया करेंगे!
    क्योंकि बार-बार भाषा बदलने में अनावश्यक देर लगती है!

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

    जवाब देंहटाएं
  4. पूरा भारतीय समाज जी हजूरी से तो चलता है ... अच्छी व्यंग्य कविता ...

    ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?

    जवाब देंहटाएं
  5. पूरा भारतीय समाज जी हजूरी से तो चलता है . अच्छी व्यंग्य कविता ...

    जवाब देंहटाएं