सोमवार, 16 मई 2011

उनसे हमको गिला नहीं

उनसे हमको गिला नहीं
जिनको अबतक कुछ मिला नहीं
पर उनसे हम नाराज है
जो अकेले हीं आबाद हैं
राजनीति में जो कंगाल हैं
अब तक जो फटेहाल हैं
हाथ मलते रह गए बेचारे
पर दाल उनका गला नहीं
उनसे मेरा दिल जला नहीं
अहसान मानूंगा न मैं
जब मेरा भी सत्कार हो
मेरे गले में हार हो
दारू का कारोबार हो
और तूने मुझको अबतक
एक पाई दिया नहीं
मेरा घर अबतक बना किला नहीं
तेरे दरवाजे पर अबतक हमने
चायपानी तक किया नहीं
क्या समझते हों
अकेले खाओगे तो हम आपका गुन गाएंगे
और जुबान नहीं चलाएंगे
जुबान मैंने बंद किया नहीं
क्योंकि पोकेट तुमने मेरा गर्म किया नहीं
जेल हीं जाओगे जब अकेले खाओगे
मेरी दुआ न पाओगे
क्योंकि मालोमाल मुझको किया नहीं
मुफ्त की रोटियां तोड़ना चाहते हो अकेले
कार्य संस्कृति बदलना चाहते हो अकेले
तिजोरियां भरना चाहते हो अकेले
मिल बांटकर खाने वाला
भाईचारा अब तो रहा नहीं।

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