गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

लोकलाज छोड़ने वालों के पास अवसर हीं अवसर होता है

अवसर की कमी उसके लिए  है जिसकी प्रतिभा औसत दर्जे की है या उससे भी कम है। जिसके पास प्रतिभा का विस्फोट है उसको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। चाहे कितनी बड़ी मंदी क्यों न आ जाए। आप यह कह सकते कि यह कैसे जाना जाए कि किसके पास प्रतिभा का बिस्फोट है। तो मेरा कहना है घोटाले करने वाले और अपहरण करने वाले या कराने वालों के पास प्रतिभा का बिस्फोट होता है।
मंदी से अवसर की कमी हम क्यों मान लें। क्या मंदी के दौरान अपराध में गिरावट आ जाती है। क्या तस्करी रूक जाती है। क्या मानव अंगों का व्यापार नहीं होता है। क्या जाली नोटों का कारोबार रूक जाता है। क्या चोरी- चमारी, छीना -झपटी बैंक डकैति आदि में गिरावट आ जाती है। नहीं न, तो फिर कैसे मान लिया जाए कि मंदी से बेरोजगारी बढ़ जाती है। अर्थ व्यवस्था तबाह हो जाती है। क्या मंदी से अपहरण उद्योग में जान नहीं आ जाती है? हां यह जरूर कर्मचारियों की अदला-बदली जरूर हो जाती है। तस्करी, अपहरण और जाली नोटों के कारोबार वाले उद्योगों में लोगों का विष्वास जरूर बढ़ जाता है। जो लोग नैतिकता की बात करते हैं या ईमान की इजाजत नहीं देने की बात करते हैं। वे भूखों मरते है। ये परिवर्तन को जल्दी नहीं स्वीकार करने वाले लोग होते हैं। ये लोग मल्टीटास्क कतई नहीं होते हैं और बेरोजगार रह जाते हैं। और बेरोजगारी का खूब रोना भी रोते हैं।
 आज के दौर में जब आॅलराउण्डर नहीं बनेंगे तो रोजगार क्या खाक मिलेगा। जब हर जगह मल्टी टाॅस्क की मांग हो। छिनैती जब फायदे का धंधा न रह जाये तो अपहरण उद्योग में षिफ्ट हो गये, उसमें भी अवसर न दिखे तो जाली नोटों का कारोबार करने लगे।
परंपरागत उद्योगों में रोजगार ढ़ूढोगे तो काम कहां मिलने वाला है। कुछ हट करना होगा। इसके लिए आपको संकोच छोड़ना होगा। लोकलाज को तिलांजली देनी होगी। जो इस बात का छोड़ दिया कि, लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे उसको फिर अवसर हीं अवसर है। फिर वह भीख मांग कर भी अपने तथा अपने परिवार का भरण-पोड्ढण कर लेगा। फिर उसे दुनिया कि कोई ताकत आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
इसी प्रकार मानव अंगों की तस्करी करने वाले को भी कहां कानून का डंडा रोक पाता है। प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर जूता चलाने वाले जांबाज भी आखिरकार तमाम बाधाओं एवं विरोध के बीच अपना स्थान हैं। उनकी राह कोई आसान नहीं होती। लोक निंदा जैसे बाधा उन्हें कहां रोक पाती है।
प्रेरक प्रसंग हर जगह मौजूद हैं। आवष्यकता है उसको पहचानने की। घोटाला करने को हीं ले लें। क्या सामान्य मनोदषा वाला व्यक्ति घोटाला कर सकता है। घोटाला को वहीं खराब कहता है, जिसके पास इसे करने की हिम्मत नहीं होती। इसी प्रकार
भ्रष्ट्राचार करने के लिए भी अदम्य साहस एवं दृढं इच्छा षक्ति की आवष्यकता होती है। इसलिए मैं भ्रष्ट्राचारियों को सर्वोच्च सम्मान देने की वकालत करता हूं। सामान्य मानसिक दषा वाले व्यक्ति को घोटाला करने की सोचने मात्र से नानी याद आ जाएगी। हार्ट अटैक हो जायेगा। सीबीआई एवं जेल जाने का भय सताएगा। इसके समर्थन में लफुआ एण्ड कंपनी ने मेरे नेतृत्व में एक रैली भी निकाली है। जिसको संबोधित करते हुए मैंने सरकार से इसे लीगलाइज करने की मांग उठायी है। लफुओं को संबोधित करते हुए मैंने कहा कि भ्रष्ट्राचार सरकार की अर्कमण्यता के चलते आज गैरकानूनी है। परिणामस्वरूप करोड़ो रूपये पानी की तरह जांच के नाम पर बहाना पड़ता है।
मेरे नेतृत्व में एक षिष्टमंडल अन्ना हजारे से भी मिलेगा और उनसे राष्ट्र को गुमराह नहीं करने की अपील करेगा।

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