सब लोग टीवी पर नजर गड़ाए हंै। टीवी पर खबरें प्रसारित हो रही है। खबरें भगवान विष्णु को व्यग्र कर रही है। भगवान ंिचंता के मारे कमरे में चहल कदमी षुरू कर दिए हैं। लोगों को यह नहीं समझ में आ रहा है, कि भगवान इतना व्यग्र क्यों हो रहे हैं। समाचारवाचक ने ऐसी कौन सी खबर सुना दी, जिससे भगवान व्यग्र हो गये। श्री श्री रथ हीं तो निकाल रहे हैं। आडवाणी जी ने भी तो रथ निकाला था, रामदेवजी ने भी तो निकाला था तब तो भगवान इतना व्यग्र नहीं हुए थे। श्री श्री तो उनके भक्त हैं। उनके लिए तो यह खुषी की बात होनी चाहिए , कि श्री श्री रथ पर सवार होकर उत्तर प्रदेष का भ्रमण कर रहे हैं। उनका एक भक्त तरक्की कर रहा है। आॅलराउंडर बन रहा है। उपलब्धि हासिल कर रहा है। क्या भगवान भी सामान्यजन की तरह ईष्या एवं द्वेष के वषीभूत हैं? क्या भगवान को भी अपने भक्त की तरक्की पसंद नहीं है? वे तो भक्तों के कल्याण के लिए षरीर तक धारण कर लेते हैं। फिर श्री श्री का रथ पर सवार होना उनको क्यों नहीं सुहा रहा है। भगवान को यह रोग कब से लग गया? क्या मृत्युलोक के लोगों का प्रभाव उनपर पड़ रहा है।
अब भगवान के पदचाप के सिवा कमरे मंे एकदम सन्नाटा छाया है। कोई कुछ नहीं बोल रहा है। अन्ततः भगवान ने हीं चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि देखो न नारद आखिर श्री श्री भी माया के अधीन हो हीं गए। मुझे उनसे यह उम्मीद नहीं थी। अब भला बताओं ना नारद जब श्री श्री रथ की सवारी करेंगे तो अन्ना हजारे एवं सरकार में सुलह कौन कराएगा। रामदेवजी को कौन जूस पिलाएगा। अन्ना एवं सरकार में सुलह कराने के लिए श्री श्री ने कितना प्रयास किया था। सरकार की रूख तो तुम देख हीं चुके हो। निगमानंदजी का क्या हश्र हुआ तुम जानते हीं हो। मुझे उन लोगों की चिंता है जो अनषन कर रहे हैं या भविष्य में करने वाले हैं। आखिर मै हीं तो सबका भरण-पोषण करता हूं। सबके हित में सोचता हूं। कहीं ऐसा न हो कि अनषनकारियों की कोई खोज- खबर हीं न ले। उनके अनषन तोड़वाने के लिए कोई पहल हीं न करे। श्री श्री निगमानंद जी का अनषन तोड़वाने का पहल नहीं किए तो थे तो क्या हुआ ? वीआईपी का अनषन तोड़वाने का जिम्मा तो ले हीं चुके हैं न। नहीं तो वो काम भी मुझे हीं करना पड़ता। वैसे भी मुझपर यह आरोप लग रहा है कि मैं पालकी वाले भक्तों का ज्यादा सुनता हूं। उनको कौन समझाये अगर मैं उनकी नहीं सुनुंगा तो क्या वे मेरी सुनेंगे। आखिर उनके पास किस चीज की कमी है। जो मुझे भाव देंगे। सामान्य भक्त मजबूर हैं मुझे याद रखने के लिए । लेकिन वीआईपी भक्तों की आखिर क्या मजबूरी है।
नारद तो श्री श्री का जगह ले नहीं सकते। क्योंकि उनको तो मैं पहले हीं उत्तर प्रदेष चुनाव की रिर्पोटिंग की जिम्मदारी सौंप चुका हूं। उनके बिना तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। आखिर कौन मिर्च मसाला लगाकर खबरों को सुनाएगा।
मैं श्री श्री को भी दोड्ढ नहीं दे सकता। आखिर सब बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं, तो उन्होंने धोकर कौन सा अपराध कर दिया है। मैं श्री श्री को रोकने वाला भी कौन होता हूं। जो वो रथयात्रा निकालने से पहले मुझसे पूछते। क्या श्री श्री रथ निकालने में समर्थ नहीं है। जो समर्थ होता है कहां मुझसे पूछता है। क्या रामदेव ने मुझसे पूछा था। क्या मैं रामदेव को रोक पाया था।
अगर मेरी बात रामदेव माने होते तो क्या उन्हें सलवार कमीज पहननी पड़ती। एक हीं झटके में वे गेरूवा वस्त्र को उतार फेंके होते । क्या उन्हें यह भान नहीं होता कि आत्मा अजर-अमर अविनाषी है। उसे कोई मार नहीं सकता, पानी गला नहीं सकती अग्नि जला नहीं सकती। उनका डर तो यहीं बता रहा है न कि वे अभी भी अपने को षरीर हीं मान रहे हैं। अगर उन्हें मेरे उपर भरोसा होता तो न तो वे तम्बू के नीचे छूपते। न हीं औरतों एवं बच्चों की सुरक्षा घेरा बनाने की बात करते । हां मैं स्वामी अग्निवेष को अपना सच्चा षिष्य मानता हूं जो मेरे आदेष से इन दिनों बिग बाॅस में प्रवचन कर रहे हैं। वे श्री श्री का जगह ले सकते हैं।
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