शनिवार, 2 अप्रैल 2011

नीतीश हीं विकास पुरूष क्यों?

वैसे तो विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों में खुद को विकास पुरूष के रूप में साबित करने की होड़ मची हुई है, इस दौड़ में कभी चंद्रबाबू नायडू रहे तो कभी अशोक गहलोत एवं दिगविजय सिंह। कई मुख्यमंत्रियों को विकास पुरूष का तमगा हजम नहीं हुआ जैसे कि चंद्र बाबू नायडू, दिग्विजय सिंह एवं अशोक गहलोत आदि। फिलहाल विहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और गुजरात के मुख्यमंत्री के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस बीच मेरे द्वारा किए गए एक स्टिंग आॅपरेशन में यह बात खुलकर सामने आयी है कि पिछले वर्ष पटना में बीजेपी कार्यकारणी मीटिंग के दौरान नीतिश ने बीजेपी नेताओं को अंग्या देकर जो बीजे गायब किया था वह मोदी के साथ फोटो वाला विज्ञापन न होकर इसी प्रतिस्पाद्र्धा का नतीजा था।
वैसे मैं विहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की प्रतिभा का कायल हूं। कारण की राज्य की जनता उनके चलते खूब फिल गुड कर रही है। ऐसा फिल गुड तो अटल जी के भी जमाने में भी देखने को नहीं मिला था। हालांकि उनदिनों फिलगुड का ढ़ोल खूब बजा था। नीतीश जनता को तो पांच साल से फिलगुड करा हीं रहे थे अपने दूसरे कार्यकाल में विधायकों को भी फिल गुड करा दिया। दरअसल देखा जाए तो मंत्री तो संत्रियों के सलाम और उपहार से फिलगुड कर लेते हैं लेकिन बेचारे विधायकों को हीं कोई नहीं पूछता, यहां तक की बीबी के फीलगुड से भी उन्हें वंचित रहना पड़ता है। कारण यह है कि प्याज, टमाटर एवं पेट्रोल की मंहगाई ने न केवल आम लोगों का बिगाड़ा है विधायक जी जैसे कुछ खास लोगों को भी इस कारण बीवी के कोप का भाजन होना पड़ा है। नीतीश ने विधायकों दर्द को समझा और विचार किया कि विधायकों के समर्थक वैसे हीं साथ छोड़ते जा रहे हैं। अगर बीवी ने भी साथ छोड़ दिया तो वे क्या करेंगे। समर्थकों का साथ छोड़ने का कारण यह था कि नेताजी ने मंहगाई के चलते समर्थकों को चाय-पान कराने और मोटर पर घुमाने की क्षमता खो दी थी। राज्य विकास करे और नेता गरीब रहें यह विरोधाभास क्या राज्य की छवि को धूमिल नहीं करेगी? नीतीश ने इसको समझा और इस कमी को वेतन में तीनगुना वृद्धि कर दूर किया। यानी नेताजी वेतन भत्ते सहित करीब एक लाख पाएंगे और बदले में मुख्यमंत्री के गुण गाएंगे।
वैसे वेतन वृद्वि की खुशी विधायकों से ज्यादा उनके समर्थकों में अधिक देखी जा रही है। उनके समर्थक यह सोंचकर खुश हैं कि पहले नेताजी यह कहकर टरका देते थे कि जब इतने पैसे में वे बीवी की डिमांड नहीं पूरी कर सकते तो तुम लोग की कैसे कर सकते हैं। अब नहीं कर पाएंगे।
मैं वर्षों पहले कांग्रेस के एक नेता का एक आर्टिकल पढ़ा था जिसमें उन्होंने विधायकों एवं सांसदों के वेतन वृद्धि की घनघोर वकालत की थी। उन्होंने विदेशी सांसदों की उच्च वेतन का हवाला देते हुए कहा था कि कैसे इससे वहां के सांसदों में इससे भ्रष्टाचार कम हुआ है। वैसे सांसदों की वृद्धि की वकालत नहीं भी करते तो भी वेतन वृद्धि तय थी। क्योंकि हमारे नेताओं में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर भले हीं अनेकता दीखती हो लेकिन वेतन वृद्धि के मुद्दे पर गजब की एकता देखने को मिलती है। यह बात भविष्य में हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ साबित होने जा रही है।
उक्त नेता के तर्क का निष्कर्ष यह है वेतन वृद्धि से हमारे नेता अधिक ईमानदार हो जाएंगे। इसका निष्कर्ष यह भी है कि पैसे वाले अधिक ईमानदार होते हैं। जैसा कि तेलगी, हर्षद मेहता आदि।
वैसे आपको मैं एक बात बता देता हूं क्योंकि आप अपने आदमी है। मुझे कुछ लोग सावन का अंधा कहते हैं क्योंकि नीतीश के काल में भी मुझे राज्य में कोई विकास नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि मेरे क्षेत्र की सड़कें चकाचक है। रात को मैं निश्चिंत घूम सकता हूं और मेरी बेटी साईकिल से स्कूल जाकर बहुत खुश है, पहली बार राज्य के लोगों में यह विश्वास जगा है कि विहार तरक्की कर सकता है। ऐसे में पाठक हीं बताएं क्या इसी को विकास कहते हैं ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें