शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

ऋण लेकर घी पियो

सबका सब दिन एक सामान नही होता है कभी किसी का सितारा बुलंद होता है तो किसी का गर्त में बेचारे कर्ज को ही ले लीजिये यह मारा- मारा फिर रहा था जिस किसी के पाले में गया उसी को कलंकित कर दिया लेकिन अब इसके दिन बहुर गए हैं आज ऋण लेना अस्सम्मान की बात नहीं बल्कि शान का प्रतिक है आज कर्ज स्टेटस सिम्बल बन गया है अख़बारों के पन्ने लोनों के गुणगान से भरे पड़े हैं देश की नामी गिरामी हस्तियाँ टीवी चैनलों पर ऋणी होने का उपदेश पिला रही हैं बैंक वाले करोणों रुपया विज्ञापन पर खर्च कर रहे हैं वैसे सरकार भी चाहती है की देश का कोई भी घर ऋणी होने से वंचित न रहे इसके लिए उसने वाकायदा रिबेट दे रखी है जिसपर लोग बेवजह डिबेट कर रहे हैं लोन के किस्मों की सूची किसी बड़े रेस्टुरेंट के मीनू से भी लम्बी चौड़ी है आकर्षक पन्च लाइनों से युक्त जुमले एवं लोन बांटती अर्धनग्न माडल किसको नहीं अपने ओर आकर्षित कर लेगीं आज ऋण लेने को जो बुरा समझ रहा है वह अपना जीवन कठिनाई में गुजार रहा है और जो ऋण को उपहार समझ रहा है वो मालोमाल हो रहा है जब वैश्विकरण के इस युग में हर चीज परिवर्तनशील है सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की परिभाषा तेजी से बदल रही है तो ऋण के सन्दर्भ में पुरातन धारना क्योंआज जो जितना ऋणी है समाज भी उसका उतना ही ऋणी है देश ऋणी है राज्य ऋणी है संगठन एवं समाज ऋणी है तो ऋण लेना असम्मान की बात कैसे हो सकती है आखिर कर्ज लेकर कार की सवारी करनेवाले को दुनिया सम्मान से देखेगी की पैदल चलनेवाले को बहती गंगा में हाथ नहीं थोना कहाँ की बुद्धिमानी है जब सरकार मंत्रियों एवं संतरियों की सुख सुविधावों के लिए कर्ज ले सकती है तो आप कहा के नबाब ठहरे क्या आप सरकार से भी बड़े हैं वैसे कर्ज के विरोधियों की लाबी भी काफी मोटि- तगड़ी है मंदी ने कर्जखोरों पर लोगों को व्यंग्य वान छोड़ने का नया मौका दे दिया है कर्ज के विरोधियों का कहना है की अमेरिकी मंदी वहां के बैंकों की दरिया दिली का नतीजा है और बचत को महत्व देने के कारण भारतीय अर्थव्वस्था मंदी के प्रभाव से अछूती रही है हालाँकि मुझ जैसा कर्जखोर कभी भी इस तर्क को नहीं स्वीकार करेगा ऋण के विरोधियों को बिचौलियों के बीबी बच्चों का भी ख्याल नहीं ऋण का कारोबार बंद हो जाने पर बेचारे बिचौलियों के बीबी बच्चों को कौन पूछेगा कमीशन लेने वाले बैंककर्मियों की क्या दशा होगी तो आइये २२१२ के प्रलय से पहले हम अपनी अतृप्त इछाओं को कर्ज लेकर पूरा कर लें सुख सुभिधाओं का भोग कर लें फिर क्या पता दुनिया रहे या न रहे

7 टिप्‍पणियां:

  1. आज कल लोग कर्ज लेना सम्मान समझते हैं|

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  2. कल का क्या भरोसा...इस चक्कर में कहीं आज ही न बिगड़ जाए...ऋण चुकाने के लिए भी अपनी चादर देख लेनी चाहिए....

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  3. सहज सटीक और सार्थक - बहुत अच्छा लगा

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  5. ब्‍लागजगत पर आपका स्‍वागत है ।

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  6. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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