रविवार, 10 जुलाई 2011

महाजनो येन गतः स पन्था।

कोई जब मुझसे पूछता है कि किसमें कितना है दम तो मैं हमेशा कनफ्यूज्ड हो जाता हूं। कारण कि अगर नेताओं की बात जाए तो उनकी लोकप्रियता का आकलन उनपर फेंके जाने वाले जूते के आधार पर किया जाय या उनके घोटाला करने की क्षमता के आधार पर। आज के जमाने में कोई किसी को नहीं पूछता है चाहे जूते हीं क्यों न चलाने हों। ऐसे में नेताओं पर जूता चलना समाज में उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।
गौर से देखा जाए तो अभी तक जिसको भी जूते पड़े हैं वे सबके सब महान हस्तियां थी। जूते खाने के लिए भी भाग्य जरूरी है ऐसे थोड़े किसी पर जूते पड़ जाएंगे। आज बड़े- बड़े लोग भी जूते खाने के लिए तरसते हैं। किसी ऐरू-गैरू की बात हीं क्या? जहां तक मेरी बात है मैं तकदीर का शुरू से छोटा हूं। हर बार अवसर मेरे हाथ से फिसल जाता है।
आज जूता अपमान सूचक नहीं रह गया है यह सम्मान सूचक हो गया है। आज जूता केवल पैर में हीं नहीं रहता यह सर पर भी इठलाता और इतराता है। जबसे बड़ी हस्तियों के सर पर शोभायमान होने लगा है उसके तेवर देखते हीं बनते हैं। देश और दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियों पर जूते पड़े हैं। और पड़ रहे हैं। इतनी बड़ी हस्तियों पर जूते पड़ते देखकर मेरा भी लार टपकने लगता है। क्यों न हो- आखिर महाजनो येन गतो स पन्था।
आश्चर्य तो देखीए जमाने के साथ जूते ने भी अपने रंग बदले। यह पहले कमजोर एवं अशक्त लोगों पर पड़ता था अब यह अमीरों पर पड़कर इठला रहा है। क्या करें भाई जमाने का दस्तूर यहीं है। उगते सूर्य को सलाम करना और डूबते को राम-राम करना। जो लोग सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं। वे जूते खाने में भी पिछुड़ गए। और हर बार की तरह अवसर का लाभ इस बार भी बड़े लोगों ने उठा लिया।
जब भी मेरा मन कहता है आ जूते मुझे मार तो वह चला जाता है किसी और के द्धार। मैं जूता चलाने वाले जाबांजों से कहता हूं कि भाई मुझपर जूते चलाकर अपनी वीरता साबित करो। मुझपर जूते चलाने के कई फायदे हैं। मसलन आपको जेल की हवा नहीं खानी पड़ेगी। आप पर पुलीस के डंडे नहीं बरसेंगे। बल्कि इसकी जगह आप पुरस्कृत हीें होंगे। रही बात मीडिया कवरेज की तो मैं उसकी भी व्यवस्था करा दूंगा।
मुझे तो निमंत्रण देने पर भी जूते कोई नहीं मारता। यकीन मानीए अगर इसी तरह मेरी जूते खाने की लालसा अधूरी रही तो मैं भाड़े के लोगों से जूते फेंकवाकर अपनी इच्छाा पूरी कर लूंगा।
जब जूते किसी दूसरे पर पड़ जाते हैं और मैं इससे वंचित हो जाता हूं तो अपने भाग्य को कोसने लगता हूं। आखिर ईश्वर मेरे साथ हीं नाइंसाफी क्यों करता है। क्या मैं उनकी नजर में जूते खाने लायक भी नहीं हूं।
आशा है भविष्य में जूते सदाबहार ढंग से पड़ते रहेंगे। अगली बार जूते मुझे हीं पड़ें। इसके लिए मैं अपने पंडितजी से मिला हूं। उन्होंने मुझे ग्रह अशांति का पाठ कराने को कहा। उन्होंने कहा है कि बेटा जबतक तेरे ग्रह शांत रहेंगे । तुम्हें जूते नहीं पड़ने वाले। इसलिए कुछ ऐसा उलट-पूलटा करो कि तुम्हारे ग्रह अशांत हो जाएं।
सच है संभावनाएं कभी नहीं मरती। इसलिए मेरी भी जूता खाने की संभावनाएं बनी हुई हैं। पर इसके लिए पुरूषार्थ तो मुझे हीं करना होगा न। हाथ पर हाथ धरे रहने से तो सफलता मिलेगी मिलेगी नहीं।
हमारे यहां अध्यात्म में कहा गया है कि अगर इस जन्म में किसी की कोई इच्छा नहीं पूरी होती तो वह संस्कार रूप में मौजूद रहती हैं। और व्यक्ति को इच्छा की पूर्ति के लिए दूसरा जन्म लेना पड़ता है। मेरी भी इस जन्म में जूता खाने की इच्छा अधूरी रह गई लगता है यह दूसरे जन्म में हीं पूरी होगी।

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