कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं।
यानी माहौल को वेवजह खराब कर रहे है
काल्पानिक अनहोनी से हमें सावधान कर रहे हैं।
देष को वेवजह बदनाम कर रहे हैं।
भय भूख बेरोजगारी का नाम जप रहे हैं।
यानी जानबूझकर वे सावन के अंधे बनने का काम कर रहे हैं।
लोक परलोक की चिंता किए बिना सफेद झूठ बोल रहे हैं
लाखों लोग भूख से मर रहे हैं कहते फिर रहे हैं।
जबकी हकीकत है कि लाखो टन आनाज
आज भी सरकारी गोदामों में सड़ रहा है।
आदमी क्या जानवर भी उसे नहीं पूछ रहा है
किसान कर्ज के चलते नहीं
मुक्ति के लिए जन्नत की सैर कर रहा है
क्योंकि दुखों से निवृत्ति का
सरकार की ओर से यहीं हरदम ऑफर पा रहा है।